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कुदरत के सरगम पर गीत गाये ज़िन्दगी

V2...Value and Vision
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इस अनुपम मंच की दुनिया के दोस्तों/पाठकों
SDC13879ऊँचे-नीचे राहों पर कल-कल बहती यमुना का आज विशेष संगीतमय प्यार भरा सलाम.अब यह विशेष सलाम क्यों यह नहीं पूछेंगे???२१ जून विश्व संगीत दिवस के रूप में पहचाना जाता है.आप सब से गुजारिश है कि इस ब्लॉग के हर शब्द को अपने मन में संजो लेने की कोशिश करें ताकि सब का जीवन हमेशा इसी तरह संगीतमय और बेहद खुबसूरत बना रहे.

“टूट गयी इस कदर मैं जीवन की क्षणभंगुरता के एहसास से
कि जोड़ लिया करीबी रिश्ता बस संगीत के ही शबाब से ”

इस धरा पर जीवन की कठोर सच्चाइयों के बीच पुरी संजीदगी के साथ स्व अस्तित्व बचाए रखना ठीक वैसा ही है जैसे कठोर बत्तीस दांतों के बीच एक कोमल जीभ का अस्तित्व  होना .कोमल जीभ कभी-कभी कठोर दांतों से कटती भी है.फिर भी यह सच्चाई है कि मनुष्य के जन्म के साथ आती है और अंत तक साथ रहती है जबकि दांत जन्म के कुछ महीनों बाद आते हैं और अगर वृद्धावस्था में मृत्यु आये तो मनुष्य का साथ नहीं निभा पाते.अस्तित्व की इस तरह रक्षा हम तभी कर सकते हैं जब तमाम कठिनाइयों के बावजूद अपनी कोमलता नष्ट ना होने दें .परम पिता परमेश्वर ने हमें जिन जिम्मेदारियों को पूर्ण करने के लिए मनुष्य योनि प्रदान कर इस धरती पर भेजा है उसे पुरी तन्मयता के साथ निभाएं.कोई काम बड़ा-छोटा,आसान-कठिन नहीं होता;सच तो यह है कि काम नहीं बल्कि काम का एहसास हमें थका देता है और ज़िन्दगी बोझिल हो जाती है.फिर हम ऐसा क्या करें कि जीवन बोझिल भी ना बने और हमारी जिम्मेदारियां भी सहजता और सफलता से पुरी होती जाएं .सबसे सरल नुस्खा है जीवन में कोमलता को स्थान देना और यह कोमलता जिस वस्तु से सीधे रूप से जुडी है वह है संगीत .जब संगीत के साथ काम किया जाता है तो संगीत की रूहानी अनुभूति काम के बोझिल एहसास को ठीक उसी तरह उड़ा ले जाती है जैसे हवा बादलों को .
यह अक्षरसः सही है कि-
“Internal and spiritual strength of music prevents us from doing  wrong and unjust things”

यह आवश्यक नहीं कि हम आई पौड,रेडियो,टी.वी या अन्य ऐसे माध्यमों पर ही संगीत सुने.संगीत तो रूह में बसा होना चाहिए,शरीर के अंग-अंग से यह इस कदर प्रस्फुटित हो ताकि जीवन संगीतमय हो जाए.संगीत के साथ इंसान का रूहानी रिश्ता है .रूह गम,खुशी से कोसों दूर होता है यही बात संगीत पर लागू होती है.संगीत के सुर ,लय गम और खुशी के कगारों को तोड़ मनुष्य को अनोखे भाव की बहाव में बहा ले जाते हैं.कुदरत की हर गतिविधि में संगीत की स्वर लहरी गूंजती है ज़रूरत है उन्हें पहचानने की और उसके साथ तारतम्य बनाने की ..संगीत की शक्ति हमें सम्पूर्णता से ज़िंदा रखती है,जीवन को मधुर बनाती है,मस्तिष्क को पंख और कल्पना को उड़ान देती है.

तो चलिए मेरे साथ इस संगीत को पहचानिए…………………

सुन्दर सुमन भरे उपवन में
मधुपों का गुंजन करना
खुले,विस्तृत,नीले नभ में
परिंदों का कलरव करना
…………..
पहाड़ों की असीम उंचाई से
निर्झर का पत्थर पर गिरना
धानी चुनरी ओढ़े मैदान से
नदियों का कल-कल बहना
………………..
झुरमुट के कहीं बीच-बीच से
आपस में बांसों का टकराना
ऊँचे गिरि श्रृंग के पीछे से
बीच दामिनी मेघों का गरजना
…………..
टिप-टिप कर वसुधा पर
बरखा की बूंदों का गिरना
हवा की हल्की गति में ही
नाजुक टहनियों का चटकना
…………
वन की गहरी खामोशी को
स्वर देती बयार का सरकना
दूर तक फैले विशाल समंदर में
ऊँची लहरों का गिरना उठना
……………..
बछड़े को दूध पिलाते ही
गाय का स्नेहवश रम्भाना
मंजरियों से लदे आम्रवृक्ष पर
छुप कर पिक का तान सुनाना
……………
कुदरत की हर गतिविधि का
जीवन के सुर में सुर मिलाना
हमारे कर्णों में चुपके-चुपके
मिश्री बन धीमे से घुल जाना
…………….
देता है संकेत हर शख्स को कि
कुदरत की सरगम वह भी सुने
मंत्र मुग्ध हो इस सुर ताल पर
तैयार
करे जीवन गीत की धुनें
…………….

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