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चिराग तले अँधेरा (शिक्षक दिवस पर विशेष)

V2...Value and Vision
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शिक्षा जब विसंगतियों के रंगीन पैकेट में बंद होकर राजनीतिकरण और व्यवसायीकरण का हिस्सा बन जाए तो फिर कैसी शिक्षा और क्या शिक्षक दिवस !!!

आज मैं बचपन में ‘क ख ग घ ‘ से बड़े तक अर्थशास्त्रयीय नियमों तक पढ़ाये गए शिक्षा की बात के साथ उस शिक्षा की भी बात कर रही हूँ जो जाने अनजाने तत्कालीन वातावरण ने मुझे सिखाई थी .तब की शिक्षा से आज की शिक्षा में बदलाव हुआ है ऐसा अमूमन सभी का मानना है .पर शिक्षकों की हालत आज भी वैसी ही है.स्वेच्छा से शायद ही कोई व्यक्ति शिक्षण की तरफ ध्यान दे कर उसे जीविकोपार्जन का माध्यम बनाता है.’चिराग तले अँधेरा ‘मुहावरा शिक्षकों के लिए बिलकुल सटीक बैठता है.इंजीनियर डॉक्टर वैज्ञानिक आदि बनाने वाला शिक्षक समाज में आदर तो पाता है पर घर गृहस्थी की गाड़ी सुगमता से खींचने लायक धन नहीं कमा पाता है.शिक्षा के नाम पर बड़े बड़े कोचिंग संस्थान ,tution केंद्र के बाज़ारीकरण और शिक्षा की गुणवत्ता निम्न रहने का यही कारण है .आज भी मेधावी युवकों को यह व्यवसाय आकर्षित नहीं कर पाया है. कुछ सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का स्तर अत्यंत निम्न कोटि का है.

शिक्षा से जुडी दूसरी बड़ी समस्या यह है कि सशक्त शिक्षा को भी आरक्षण के वज़ह से पंगु बन जाना पड़ रहा है. शिक्षा के समान अधिकार का पालन कर इसे मज़बूत करने वाली व्यवस्था आरक्षण की बैसाखी की व्यवस्था कर समाज को पंगु बना देती है. आज जब दूर दराज के इलाकों में भी विद्यालय खुल गए हैं तो शिक्षण के साधनों का विस्तार कर कमजोर विद्यार्थियों की मदद करनी चाहिए ना कि शिक्षा और नौकरी में आरक्षण देकर उन्हें पंगु बनाना चाहिए .

मेडिकल इन्जीनीरिंग सिविल सर्विसेज जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं से जुडी शिक्षाओं में आरक्षण की बैसाखी ने मेधावी बच्चों के हौसलों को पस्त कर दिया है.इरा सिंघल जैसे बच्चे विरले ही होते हैं .साधारणतः अनारक्षित बच्चे आरक्षण को अपनी सफलता की राह में बड़ा रोड़ा मानते हैं. समानता की बात करने वाला समाज आरक्षण के बेसुरे राग अलाप कर स्वयं ही विकास के पैरों में कुल्हाड़ी मार रहा है.अनारक्षित अच्छे मेधावी बच्चे शिक्षा के लिए विदेश चले जाते हैं उनकी मेधा का कोई लाभ देश को नहीं मिल पाता और जो बच्चे आर्थिक अभाव की वज़ह से विदेश नहीं जा पाते हैं वे अपनी मेधा से निम्न पर देश की सेवा करने को विवश हो जाते हैं .दोनों ही हाल में देश प्रतिभा के उपयोग से वंचित होने के संकट से रूबरू होता है.अर्थात चिराग तो जलते हैं पर देश अंधकार में ही रह जाता है.

शिक्षकों और शिक्षण का मान सम्मान बढ़ाना है …..देश को विकास की राह पर लाना है तो उसे शिक्षा नौकरी के क्षेत्र में आरक्षण की बैसाखी से निजात दिलाना होगा . कुछ आरक्षित विद्यार्थी आर्थिक दृष्टि से कुछ अनारक्षित विद्यार्थी से बहुत अच्छी स्थिति में होते हैं पर मेधा होने के बावजूद अनारक्षित विद्यार्थी तुलनात्मक रूप से उचित शिक्षा लेने से वंचित हो जाते हैं.किसी भी आधार पर आरक्षण को बंद कर देना ही समाज में शिक्षा को उन्नत कर सकता है.शिक्षा की ऐसी भिक्षा देश के युवाओं को शिक्षा के सही अर्थ से कोसों दूर ले जाती है . वे समझ नहीं पाते एक ही छत के नीचे उन्हें भेद भाव की शिक्षा क्यों दी जा रही है.
आरक्षण का सुर आधुनिक समाज की देन है ….प्राचीन समाज ने शायद ही इसकी कोई पैरवी की हो….संदीपन ऋषि के आश्रम में कृष्णा और सुदामा आर्थिक और सामाजिक दोनों ही दृष्टि से समान नहीं थे पर दोनों को एक सी शिक्षा ही दी गई थी. देश के युवाओ में आपसी वैमनस्य और भेद भाव मिटाना है तो आरक्षण शब्द को ही तिलांजलि दे उसका अंतिम संस्कार कर देना चाहिए. कोई राजनीति भी नहीं होगी ना ही दंगे फसाद होंगे .ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी. .

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