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तपती दुपहरी में दहकते अंगार सा गुलमोहर

V2...Value and Vision
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SDC13532जागरण मंच की दुनिया के प्रिय दोस्तों,यमुना का प्यार भरा सलाम………. .
इन दिनों व्यस्तता की वज़ह से मंच पर सक्रिय नहीं हो पा रही हूँ पर दूर भी तो नहीं रह पा रही, इसलिए थोड़े अंतराल से ब्लॉग पोस्ट कर रही हूँ ।पर ब्लॉग ज्यादा से ज्यादा पढ़ने की कोशिश करती हूँ।आज जे.एल.सिंह सर का ब्लॉग “उफ़ ये गर्मी”पढ़ा,बहुत अच्छा लगा और बस एक विचार ज़ेहन में उभरा……………… कुछ दिनों पूर्व ही एक पार्टी में एक महिला ने शिकायती लहजे में कहा,ओह! कितनी गर्मी है!”मुझे हंसी आयी,अरे भाई गर्मी के मौसम में गर्मी ही तो महसूस होगी,सवाल है कि गर्मी की इस विभिषीका को ना बढ़ने देने के लिए क्या सामूहिक रूप से हमने तैयारी की है?हम में से कितने लोग वृक्षारोपण कर वातावरण को हरा-भरा बनाने में मदद कर रहे हैं?कितने लोग जल का विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग कर रहे हैं?कितने लोग बिजली बचाने का उपक्रम कर रहे हैं?
इन सब के अलावा एक और महत्वपूर्ण बात यह कि…………….
ज़िन्दगी में अच्छे -बुरे का निर्धारण हम कैसे करते हैं यह एक विचारणीय विषय है।घटनाएं प्राकृतिक नियमों के तहत घटती रहती हैं .हम वक्त,स्थिति और समझ के अनुसार उन्हें अच्छे /बुरे की श्रेणी में रख लेते हैं, जैसे बारिश होती रहे तो कृषक के लिए अच्छी घटना है,उसके फसल अच्छे होंगे पर कुम्हार के लिए धुप निकलना अच्छी घटना है,क्योंकि तभी उसके बनाए बर्तन सुख पायेंगे .किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की मृत्यु पर विद्यालय में अवकाश हो जाए तो कभी-कभी विद्यार्थी बहुत खुश हो जाते हैं पर यह उस परिवार या देश के लिए दुःख की घटना होती है।बाँध बन रहा हो तो उद्योगपतियों के लिए बहुत अच्छी खबर होगी क्योंकि उन्हें विद्युत् उत्पादन का लाभ मिलेगा पर वहां के स्थायी निवासियों के लिए यह स्वागत योग्य नहीं होगा क्योंकि वे विस्थापित हो जायेंगे.

पर फिर भी कुछ घटनाएं सार्वभौमिक रूप से अच्छी या बुरी होती हैं जैसे घर पर बच्चे का जन्म,उपवन में फूलों का खिलना, अच्छी नौकरी का मिलना ,विवाह समारोह में शरीक होना आदि लगभग सभी के लिए अच्छी घटनाएं हैं और इसके ठीक विपरीत किसी प्रियजन की मृत्यु,पतझड़ का मौसम,नौकरी का छुट जाना,तलाक हो जाना वगैरह सामान्यतः बुरी घटनाएं हैं।

इसी संयोग का नाम ज़िन्दगी है ;अच्छी घटना पर तो खुश होना स्वाभाविक है पर बुरी घटना से उबरना भी उतना ही ज़रूरी है .सुकून तलाशने के लिए नशे में डूबना ,आगे की ज़िम्मेदारी से मुंह मोड़ लेना, उन घटनाओं के काले साए से वर्त्तमान पलों को स्याह करते रहना ,ज़िन्दगी को और भी बोझिल बना देता है।

मैंने बहुत वर्ष पहले कहीं पर चार पंक्तियाँ पढी थी ………

अगर कोई उम्मीद ना हो ,तो नाउम्मीद न होना

जीने के हज़ारों तरीके हैं, फिर काहे का रोना

ज़िन्दगी ईश्वर का दिया एक अनमोल तोहफा है

रोकर इसे न गुजारो, कल कहाँ किसने देखा है !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

इसलिए ऐसे में सहजता से जीवन जीने की कोशिश करनी ही पड़ेगी।

एक दृष्टिकोण जो उदासी में भी सुकून तलाश करे ,कुछ इस तरह घटनाओं से सामंजस्य बिठाए कि ज़िन्दगी बोझ सी कभी ना बने।

दोस्तों अन्धकार के पीछे ही उजाले का सूर्य छुपा रहता है।इसलिए मुझे हर हालात पर मुस्कराना अच्छा लगता है और उदास से लम्हों में भी कुछ अच्छा,बहुत अच्छा ढूंढ़ निकालना एक शगल बन गया है……………………………

कड़कती दामिनी संग बरसती बूंदें
निहारना बहुत अच्छा लगता है,
अकेलेपन में यूँ ही उब जाना भी
कभी-कभी बहुत प्यारा लगता है. .
………………………………….
ग्रीष्म की तपती दुपहरी में मुझे
साया तो नहीं घना लगता है,
दहकते अंगार सा गुलमोहर फिर भी
दिलकश और लुभावना लगता है।
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तपती धरा भी है शीतल हो जाती
यूँ चक्र मौसम का चला करता है,
एक शहर तज दुसरे शहर जाना
मुझे एक सही फैसला लगता है.
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हर जगह इंसान की वही कहानी
अपने काम में ही उलझा रहता है,
नयी जगह ,नए लोग,कुछ नयापन
ये बदलाव कितना भला लगता है .
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सवाल ज़वाब के मकडजाल में
फंस छटपटाना अच्छा लगता है,
क्या खोया;क्या पाया,गुमसुम हो
आकलन करना भला लगता है.
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इस छली ,फरेबी, मायावी जग में
कहीं कुछ तो सच्चा लगता है,
ठोकर खा -खा कर सम्हलना
कभी किसी क्षण प्यारा लगता है .
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हर्ष -विषाद की जीवन तिजोरी में,
संचय ग़मों का भी सयाना लगता है,
खुशी भरे दो पलों के जाम से ही
भरा साकी का पैमाना लगता है .
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द्रवित होकर मन की व्यथा लिए
बेजुबान फिरना बावला लगता है,
भीगे पलकों को कहीं कोने में छुप
पोंछ लेना बहुत भला लगता है.
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चलते -चलते जब मैं थक जाऊं
मन छाँह यादों के खोजा करता है,
तन्हाई जब भी संग हो मेरे बस
कविता लिखना प्यारा लगता है.
…………………………………….
भावों के बंद पड़े पटों को खोल
शब्द रु-ब-रु पन्नों से हुआ करता है,
फिर जीवन के छुए-अनछुए लम्हे
हर पहलु जाना पहचाना लगता है.
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जाने अनजाने चेहरों के हुजूम में
वो चेहरा इतना प्यारा लगता है,
उस अज़नबी संग उम्र भर का साथ
हर लम्हा कितना अपना लगता है.
………………………………………
जीवन संगीत का सुर सरगम फिर
बस रोम -रोम में यूँ बसा करता है,
हर साज,हर आवाज़, हर नज़्म
सब कुछ बहुत अपना लगता है.
…………………………………………
” Train the brain to see beauty and goodness in each & every thing.

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