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‘तलवार’ की जगह ‘कलम’ ही उठाती हैं क्यों नारी ?

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उसके सबसे बड़े शत्रु समाज के वे दुर्योधन हैं जिन्होंने महाभारत काल से लेकर आज तक अपने वंश को चिरंजीवी बना कर रखा है .नव रात्रि में शक्ति रूपेण नौ दुर्गा की पूजा वर्ष में एक नहीं दो -दो बार वह भी नौ रूपों में होती है .स्पष्ट बात है मनुष्य नारी को ना + अरि के रूप में ही देखता है फिर चाहे भयवश या चाहे भक्ति से वह शक्ति की उपासना धन और,विद्या बुद्धि से अधिक करता है क्योंकि सरस्वती पूजा ,लक्ष्मी पूजा वह वर्ष में सिर्फ एक दिन और देवी के एक रूप में ही करता है .यूँ भी समाज में बुद्धि ,विद्या,दक्षता ,प्रज्ञा का प्रमाण देती कई स्त्रियां मिल जाती हैं पर सही अर्थों में शक्ति प्रदर्शन की मिसाल विरली ही कायम कर पाती हैं पर क्यों ……???यह विचारणीय है …

हाल की मूवी एनएच 10 में नायिका जब शक्ति प्रदर्शन करती है तब उसके पीछे भी ठोस वज़ह होती है स्त्री बदलते परिस्थितियों की नृशंशता में कभी कभी ही कठोर और नृशंष हो पाती है .आम ज़िंदगी में नारी ऐतिहासिक लक्ष्मीबाई ,रज़िया सुल्ताना या फिर इस मूवी की किरदार मीरा सी हिम्मत नहीं जुटा पातीं .

क्रान्ति और बदलाव हेतु
तलवार की जगह कलम ही
उठाती हैं क्यों नारी ??
तुम पर ; तुम्हारे पूर्वजों पर भी
यही प्रश्न पड़ा है भारी .
देखा है तुमने समाज में
सीता,राधा,द्रौपदी सुभद्रा
गार्गी ,मैत्रेयी ,यशोधरा
और महादेवी ,महाश्वेता
इंदिरा प्रतिभा सरीखी
एक नहीं बल्कि कई कई
पर रज़िया ,लक्ष्मी बाई सरीखी
दिख सकी कोई विरली ही

‘ नारी शक्ति का रूप है ‘
कहते हुए इस सच को
काँप जाते हैं होंठ तुम्हारे
जुबाँ अटक जाती हलक में
मानते हुए यह सच
भूकम्प आ जाता मस्तिष्क में .

.
जबकि परिचित हो तुम
स्त्री शक्ति से बखूबी
उपासना लक्ष्मी शारदा की
करते हो वर्ष में एक दिन ही
कितने भयभीत हो शक्ति से
कि सर झुकाते करते उपासना
एक वर्ष में दो बार भक्ति से
नौ दुर्गा नौ रात्रि की रीति से
यह भय है या भक्ति ???
मानते हो तुम यह भी कि
भय बिनु होऊ ना प्रीति

इतिहास गवाह है
मिला हर बार जीवन दान तुम्हे
कलम की स्नेह शक्ति से

क्योंकि ……
स्वयं जैसी निरीह,देखना
चाहती नहीं कोई स्त्री,स्त्री को
बख्श देती हर बार तुम्हे
रखती ध्यान न तलवारों का
नहीं चाहती वह संख्या वृद्धि
विधवाओं और बेसहारों का

शक्ति का शंखनाद तो नारी
कर सकती है बारम्बार
पर नहीं चाहती रक्तरंजित
कहानियों का वह व्यापार .Desktop

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