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तुमने इसे क्यों मारा ?

V2...Value and Vision
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घटनाएं उत्थान …परिवर्तन…विनाश …के क्रम में ही आगे बढ़ती हैं और इतिहास इस बात का गवाह है कि विरोधात्मक शक्तियां ही इसे रूप भी देती हैं .प्रत्येक घटना वाद ,प्रतिवाद और सवाद और पुनः वाद प्रतिवाद संवाद के चक्र का ही प्रतिफल है .

जैसा कि कार्ल मार्क्स ने लिखा है
“मानव समाज का संपूर्ण प्राचीन और वर्त्तमान इतिहास वर्ग संघर्षों का इतिहास है.स्वतंत्र व्यक्ति तथा दास , भद्र पुरुष और साधारण पुरुष , नवाब तथा गुलाम ये सब अत्याचार करने वाले और अत्याचार सहने वाले एक दूसरे के विरोधी रहे हैं .इनके मध्य संघर्ष कभी गुप्त तो कभी स्पष्ट हमेशा विद्यमान रहा है.इस संघर्ष के फलस्वरूप या तो संपूर्ण समाज के ढाँचे में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं या संघर्ष के अंतिम परिणाम के रूप में विरोधी वर्ग का विनाश हुआ है.”

पर प्रश्न यह भी उठता है कि क्या विरोध के कारण ही किसी वस्तु में गति , शक्ति या प्रभाव उत्पन्न हो सकता है ??

ौतिक विज्ञान की माने तो समान दिशा में प्रवाहित शक्तियां गति देती हैं जबकि विपरीत दिशा से आई शक्तियां रूकावट उत्पन्न करती हैं .

यह निश्चय ही विचारणीय इसलिए भी है कि संसद से सड़क तक हमने परस्पर विरोध और संघर्ष को हथियार बना लिया है .जो समय श्रम धन की बर्बादी कर समुचित विकास को अंजाम नहीं दे पा रहा .
क्या हम इतिहास को छोड़कर एक बार भौतिक विज्ञान के सिद्धांत “FORCE IN THE SAME DIRECTION  “पर विश्वास कर विकास की कहानी लिखने का प्रयास करें ??

दोस्तों ,आज लगभग सभी क्षेत्र में सहयोग और सहअस्तित्व के साथ काम करना आवश्यक हो गया है .वर्ग,जाति,धर्म ,के संघर्ष से ऊपर उठना होगा .आज मैं ऐसे ही एक संघर्ष की तरफ आप सब का ध्यानाकर्षित करना चाहती हूँ.घर में काम करने वाले सहायकों/सहायिकाओं (domestic help ) के अधिकारों को लेकर कई संगठन सामने आ रहे हैं .घरेलू सहायकों/सहायिकाओं के साथ रिश्ता कभी परिवार के सदस्य सा हुआ करता था .आज भी कई घरों में यह बरकरार है पर उपभोक्तावादी सोच,जल्दी से सब कुछ पाने की भौतिक चाह , अपने अधिकारों का अधिकाधिक ज्ञान , संवेदनशीलता के अभाव ने आज इन रिश्तों पर एक मज़बूत प्रश्न चिन्ह लगा दिया है .जिसका उत्तर तलाशना अत्यंत ज़रूरी है.

virgin spring मूवी देखी .यह इिंगमर बर्गमैन ingamar bergman द्वारा निर्देशित और उल्ला ििकासन ulla isakssan की लिखी 1960  की स्वीडिश फिल्म है .मध्यकालीन स्वीडन में एक बेहद सम्पन्न ईसाई दंपत्ति की कहानी है. वे अपनी एकमात्र पुत्री करीन को बहुत प्यार करते हैं .उसी घर में काम काज के लिए इंजरी नामक घरेलू सहायिका ( maid ) भी रहती है .जिसका दंपत्ति बेहद ख्याल रखते हैं और उसे किसी भी ज़रुरत से महरूम नहीं रखते पर फिर भी वह करीन के ठाट बाट ,दंपत्ति द्वारा उस इकलौती बच्ची की देखभाल से बहुत ईर्ष्या करती थी और बेहद गुप्त ढंग से करीन के बुरे के लिए नॉर्स गॉड ओडिन से प्रार्थना करती है.एक दिन करीन को चर्च में मोमबत्ती लगाने के काम के लिए चुना जाता है .वह इस पवित्र काम के लिए चुने जाने पर बहुत खुश होती है .उसकी माँ उसे अपने हाथों से तैयार कर इंजरी के साथ चर्च भेज देती है.घर से निकलने के पहले इंजरी ने करीन के लिए पैक किये लंच सैंडविच के बीच में मेढक डाल दिया था. इस बात से अनजान वह इंजरी के साथ घर से निकल पड़ती है .थोड़ी दूर जाकर इंजरी उसे आगे अकेले जाने को कहती है .कुछ कदम चलने पर ही करीन को चरवाहे मिलते हैं जिनमें दो वयस्क और एक किशोर है वे उसे अपने साथ भोजन करने को कहते हैं .वह राज़ी हो जाती है और जैसे ही सैंडविच निकलती है मेढक कूद पड़ता है .मासूम करीन खिलखिला कर हंस पड़ती है पर चरवाहे इसे उस संभ्रांत किशोरी का बेहूदा मज़ाक समझ क्रोध से पागल हो उससे दुराचार करते हैं और उसे मार कर ज़मीन में दफना देते हैं.यह सब झाड़ियों में छुपी सहायिका देखती है पर उसे बचाने नहीं आती और करीन के इस तरह अंत पर खुश होती है.
दोनों चरवाहे अपने साथ वाले किशोर के भरोसे भेड़ बकरी छोड़कर करीन के कीमती कपडे लेकर आगे बढ़ जाते हैं और अनजाने में करीन के पिता के फ़ार्म हाउस में आकर शरण मांगते हैं .अकेला किशोर अपने किये दुष्कर्म पर बहुत ग्लानि करता रहता है स्वभाव से ही मददगार और नेक दम्पति उनके खाने पीने और सोने की व्यवस्था कर देते हैं.जब वे सो जाते हैं तो अनायास ही करीन की माँ की नज़र उनके थैले में जाती है.करीन के कपडे देख वह आशंका और शोक से भर उठती है.चरवाहों को वहीं बंद कर देती है.करीन के पिता के सामने वे अपराध कबूल लेते हैं .पिता उन्हें मार डालते हैं .सहायिका भी करीन के प्रति अपनी ईर्ष्या और गैरजिम्मेदारी को स्वीकार कर उन्हें उस स्थान पर ले जाती है जहां चरवाहों ने दुष्कर्म के बाद करीन को दफना दिया था .िता ज़मीन खोद कर जैसे ही अपनी फूल सी प्यारी बच्ची का सर उठाते हैं वहां से एक झरना फूट पड़ता है .रोते पिता बच्ची के चेहरे का कीचड उस झरने के जल से धोते हैं और एक चर्च बनाने का वादा करते हैं ताकि इंसानियत ज़िंदा रह सके .

आपसी संघर्ष जीवन स्तर की असमानता से उपजता है .हम शत प्रतिशत बराबरी की कल्पना भी नहीं कर सकते .हाँ ,अपने साथ और आस पास के ज़रूरतमंदों की मदद ज़रूर कर सकते हैं पर किस हद तक . ज़रुरत हम सब को सचेत सजग और संवेदनशील होने की है .हम अपने घरेलू सहायक/सहायिकाओं को किस हद तक मदद करें ,उन्हें घर पर कितनी जिम्मेदारी कितनी स्वतंत्रता दें ,उनके सामने अपने और अपने परिवार के जीवन स्तर को लेकर कितना सजग और संवेदनशील रहे यह सोचना होगा .हम उनके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती विरोध और संघर्ष से काम नहीं ले सकते हैं.उनके साथ एक सीमा तक मिल कर और उनसे अपने निजी संबंधों के लिए दूरी बना कर ही अपेक्षित रिश्ते सुरक्षा के साथ कायम रख सकते हैं.

इस उम्र के बच्चे बेहद संवेदनशील और अपरिपक्व होते हैं और मालिक के घर के हमउम्र बच्चों से अनायास ही तुलना करने लगते हैं .ऐसे में अपने प्रति हल्की सी भी उपेक्षा और अपमान उन्हें उन मासूम बच्चों का विरोधी बना देता है जिससे वे उनके प्रति आपराधिक हो जाते हैं . इस लिए यह ज़रूरी है कि उन बच्चों को काम में ना रखा जाए ताकि वे अपने घर परिवार में अपने जीवन स्तर के साथ तालमेल बिठा कर जी सकें .उनके बचपन को जीने का अधिकार मिल सके .

Desktop00जहां एक ओर समानता की चाह मालिक और सहायिकाओं के बीच अवैध सम्बन्ध को बढ़ावा देते हैं जिनका अंजाम हत्या पर ख़त्म होता है , या फिर कभी-कभी घर की किशोरी पर घरेलू सहायक की बुरी नज़र उस बच्ची का सदा के लिए अंत कर देती है ..वहीं दूसरी ओर कई घरेलू सहायक/सहायिकाओं के साथ कुछ मालिक बहुत ही कठोर और असंवेदनशील हो जाते हैं कुछ यौन शोषण ,मानसिक शारीरिक अत्याचार का भी शिकार होते हैं ..इसका खामियाज़ा भी कभी -कभी मालिक/मालकिन को भुगतना पड़ता है.

और संवेदनशीलता ही हमें सुरक्षा और बच्चों किशोरों को घरेलू काम काज के दौरान छीन गए बचपन और किशोरावस्था को उन्हें वापस देकर उन्हें जी भर स्वातंत्र्य और अधिकार के प्रति सजग रह कर जीने का अवसर दे सकें प्रदान कर सकती है.

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