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“दूध का दूध ;पानी का पानी “

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दोस्तों,राजनीति पर लिखना मुझे पसंद नहीं;यह नापसंदगी तब तक रहेगी ज़ब तक इसका नाम और अर्थ दोनों ही ‘राजनीति’से परिवर्तित होकर ‘जननीति’ नहीं हो जाता. जैसा मैंने अपने ब्लॉग “अजी!नाम-वाम में क्या रखा है”के माध्यम से जन-जन तक इस सम्मानित मंच द्वारा पहुंचाना चाहा था.अब आप सब सोच रहे होंगे यमुना जी!फिर अन्ना टीम के बयान पर इतना लंबा-चौड़ा आलेख क्यों लिख डाला ? दोस्तों, उस आलेख के माध्यम से भी मैंने जो बात कहनी चाही है उसका राजनीति से कम जननीति से ज्यादा करीब का रिश्ता है एक बार पुनः गौर से “उनके घर के अँधेरे……भयानक हैं” का एक-एक शब्द पढ़िए और ध्यान से समझिये कि मैं क्या सन्देश दे रही हूँ .खैर,उस लेख और उस पर मिली प्रतिक्रियाओं को पढ़कर जब रात निद्रा देवी के शरण में गयी तो एक स्वप्न से रु-ब-रु हुई.

इस स्वप्न को अजीबोगरीब तो नहीं कहूंगी क्योंकि आप में से कई इस के कुछ अंश से वाकिफ हैं.आप सब ने उस राजा की कहानी अवश्य सुनी होगी जिसने अपने राज्य में एक कुआं खुदवा कर उसे दूध का कुआं बनवाने के लिए जन-जन में आदेश फैलाया कि हर व्यक्ति अपने घर से एक लोटा दूध उस कुएं में डाल दे.चलिए;मेरे सपने में भी बिलकुल ऐसा ही हुआ कि ज़ब अगले दिन राजा ने कुएं का निरीक्षण किया तो उसमें एक बूंद भी दूध ना था;बस पानी ही पानी दिखाई दिया.मैं सपने में अत्यंत खुश होती हूँ “चलो,अच्छा हुआ ‘एकतरफा निष्कर्ष’ तो निकला.सब ने पानी से ही कुएं को भर दिया.फिर विचारों के मंथन से प्रश्नों के चार रत्न मेरे सामने थे:-

१:- यह किस राजा के समय की कहानी है?

२:-क्या कुएं में पानी डालने की कोई पूर्वनियोजित योजना थी या स्वभाव वश सबने ऐसा किया?

३:- क्या पहले जमाने में भ्रष्टाचार अपने संपूर्ण रूप में विद्यमान था ?क्या सभी भ्रष्टाचारी थे?

४:- क्या जनता राजा की तुलना में अधिक समझदार थी जिन्होंने पानी के कुएं का निर्माण दूध के कुएं से ज्यादा महत्वपूर्ण समझा और उस राजतंत्र में भी राजा को अवगत किये बिना ही सर्वसम्मत से एकजुट होकर वही किया जो वे जनहित में सर्वोचित समझते थे?

चलिए,अब मेरे सपने वाली कहानी में एक पेंच आ गया है.दरअसल यहाँ कुएं में थोड़ी मात्रा में दूध के भी अंश मिल गए हैं.लोग बेचैन हैं आखिर दूध किसने डाल दिया?.ज्यादा दिन यह रहस्य छुप ना सका.चार दिनों बाद १० व्यक्तियों की लाशें (एक मेरी भी थी) राज्य के अलग-अलग स्थानों से कोतवाल ने बरामद कर ली.लोगों में कानाफूसी बढ़ गयी——- ये शायद दूध डालने वालों की ही लाशें हैं.पर सबूत क्या था ? एक सप्ताह बाद कुछ भोले-भाले लोग राजा के दरबार में पहुंचे; जिन्हें देखते ही राजा को एक मशहूर शेर याद आया——————

“कितने मुश्किल हैं पहचानने, मुझे ही,मेरे प्रांत के लोग

कितने मासूम से चेहरे हैं,पर कितने मनहूस मनसूबे हैं”

भोले-भाले चेहरों में से एक ने आगे बढ़ कर फ़रियाद की,“राजन ,कुएं में हम सब ने दूध ही डाला था पर रात बारिश बहुत ज्यादा हुई और हमारे द्वारा डाले गए दूध का अंश पानी में ही कहीं घुल गया.“महाराजा ने उन्हें दरबार से जाने का आदेश दिया.उनके जाने के बाद दरबारियों में से एक ने राजा से कहा,“राजन सिनेमा में होने वाले कृत्रिम बारिश की तकनीक से शायद ये लोग वाकिफ नहीं हैं.” राजा विस्मित हो सोच रहा था, अगली बार जो मैंने दूध का कुआं बनाने का आदेश दिया तो इस कृत्रिम बारिश तकनीक के इन विशेषज्ञों पर विशेष नज़र रखनी होगी. फिर अचानक वह राजा बहुत मायूस हो गया; उसके दिमाग में एक और आशंका का कीड़ा कुलबुलाया “अगर उस दिन प्राकृतिक बारिश हो गयी तो ?????????????????” कमबख्त!ये दरबारी, ईश्वर भी तो ऐसे लोगों के साथ हो जाता है.जाने कितना गुप्तदान कहाँ-कहाँ कर के भोले-भाले ईश्वर को भी पटा लेते हैं.”

आँख खुली तो मेरी आँखें नम सी थीं निश्चय ही ये बारिश का असर नहीं था फिर क्या था ? ये उन १० लाशों के घरों में पसरे मातम की तस्वीर की पीड़ा थी , जिसमें से एक खुद मेरे ही घर की थी . शायद आपके चेहरों पर भी नमी आँखों की राह उतर गयी है; यकीन नहीं तो खुद ही अपने चेहरे को छू कर देख लीजिये ………………..smile

और दोस्तों ,एक बात और ,हमेशा आशावाद से परिपूर्ण यमुना के इस आलेख ने अगर आपको वास्तव में दुखी कर दिया हो तो वह क्षमाप्रार्थिनी है.यमुना हमेशा ईश्वर से यही प्रार्थना करती है कि“ज़ब नदियाँ के कगारों की भी हरियाली सुख गयी हो,निराशा के काले बादल धरती को आसमान के अश्कों से भिगो रहे हों;कुदरत की सारी नाराजगी हर चेहरे को उदास और मायूस करने पर अमादा हो ,तब भी मेरे अधरों में स्मित की एक छोटी सी रेखा विद्यमान रहे ताकि मैं अपने आस-पास के लोगों की ज़िन्दगी को उस मुस्कान की हल्की सी चमक से ही प्रकाशित कर सकूँ “पर दोस्तों ऐसा हमेशा संभव नहीं हो पाता.यह लेख इस बात का साक्षात उदाहरण है.

मेरी एक ख़ास गुजारिश है कि” कृपया इस आलेख के लिए कोई प्रतिक्रिया ना दें “

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