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सावन के इस महीने में यादों से तर मस्तिष्क की ज़मीन पर वह सारी हरियाली सजीव हो उठती है जिनके साए तले मेरे हंसते-खेलते बचपन ने, झंझावातों से भरे किशोरावस्था और फिर चुपके -चुपके संजीदगी भरे युवावस्था की ओर कदम बढाया था.वर्त्तमान फ्लैट culture में रहते हुए उषा से निशा तक का वक्त,शीत से वसंत और फिर ग्रीष्म से वर्षा ऋतू का सफ़र मुझे हर पल पिता के घर की खुली वादियों में ले जाता है जहां की हरियाली में गज़ब सा मन मोहक आकर्षण था जिसने आज भी मुझे अपने मोह पाश में बाँध कर रखा है.
घर के पीछे एक नीलगिरी (euclyptus ) का विशाल वृक्ष था उसकी धरा पर गिरी सूखी पतियों से बड़ी भीनी खुशबू फैलती थी.बड़े होकर ज्ञात हुआ यही वह वृक्ष है जो भूजल के स्तर को कम कर देता है पर जीवन के उस वसंतकाल में तो बस अपने घर के आँगन में आराम कुर्सी में बैठ उस नीलगिरी के पीछे रुई से बादल और उन बादलों के पीछे लुकते-छिपते चाँद को निहारना मुझे बेहद अच्छा लगता था.ऐसा प्रतीत होता था मानो कोई रमणी घूँघट की ओट से निहार कर अपना चाँद सा चेहरा छुपा ले रही हो और लुका-छीपी की यह मनमोहक क्रीडा देखते -देखते मैं कब निद्रा देवी की गोद में समा जाती, एहसास ही नहीं होता था.माँ आकर जगाती और अपने कमरे में सोने को कहती जिसकी खिड़की के पीछे से आती रात रानी की भीनी मदहोश खुशबू पुरे कमरे को अपनी रूमानियत से सराबोर कर जाती थी. आँगन में कुछ समय तक एक इमली का वृक्ष भी रहा पर पड़ोस की दादीजी ने भूत-प्रेत के डर से पापा को उस वृक्ष को कटवाने का आदेश दे दिया था.मैं भूत वगैरह तो मानती नहीं थी और उस अल्हड उम्र में पर्यावरण संरक्षण जैसे विषयों से पूर्णतः गाफिल थी पर वृक्ष कट जाने पर फिर भी बहुत रोई थी,क्योंकि इमली खाने की पुरी चटोरी थी.घर के विशाल बागान में आम,अमरुद,शरीफा(सीताफल)सहजन के साथ कनेर फूल के भी पेड़ थे.एक वृक्ष और था जिसके पीछे मान्यता है कि वह हमेशा दो घरों के बीच ही उगता है और अपने नाम के अनुरूप पड़ोसियों से शत्रुता करवा बैठता है.हाँ, ठीक पहचाना–बेर का पेड़; जिसके विषय में कहते हैं कि यह वृक्ष बैर कराता है .ये बात और है कि उस बेर के पेड़ को साझा करने वाले बंगाली परिवार से हमारे हमेशा ही मधुर सम्बन्ध रहे.मुख्य द्वार (लोहे की मजबूत gate ) की दाईं ओर एक टेसू (ढ़ाक,पलाश)का वृक्ष था जो हमारे घर को दूर से ही अलग पहचान देता था.जिसके फूलों के आकर्षण से होली के त्यौहार में सारे बच्चे कट्टी- मिठ्ठी की भावना छोड़ मेरे घनिष्ठ मित्र बन जाते हम सब दो दिन पहले से ही टेसू के फूल रंग बनाने के लिए एकत्रित करने लगते थे.माँ बागान के अधिकाँश हिस्सों में kitchen गार्डेन विकसित करती जिसमें उगाई मौसमी सब्जियों से भोजन की थाली महक जाती थी.वह सारी हरियाली हमारे पीहर के आशियाने की ही नहीं ;;हमारी ज़िंदगी का भी श्रृंगार थी .हरा रंग आँखों को कितनी ठंडक देता था,हरी सब्जियां और ताजे फल की वज़ह से हमें कभी डॉक्टर के पास जाने की नौबत नहीं आती थी.
इन सबके बीच सर्वाधिक लुभावनी थी प्यारी सी एक लता जिसे “मधुमालती” से संबोधित किया जाता है.आज भी अगर कहीं मधुमालती की लता दिख जाती है तो ख्यालों में मायके की वह हरियाली,पेड़ पर लगे झूले ,द्वार पर मधुमालती की तोरण ,रसोई की मौसमी सब्जियों,बागान के पके ताजे फल से रचे बसे सुखद और भीनी यादों के झोंकों के संग इस मरू में मरूद्यान का आभास जगा कर अंतर्मन को महका जाती हैं .मैं अपने फ्लैट की छत पर लगे गमलों और उस में उगाये पौधों को देख अपनी उसी मधुमालती से धीमे से कह जाती हूँ ,”देख,मधु, वृक्ष,पौधे,लता की हरियाली बोनसाई बन कर गमलों और छतों में सिमट आयी है. मधुमालती,सच कहूँ;तुम बहुत याद आती हो .”
प्रातः पलकें खुलते ही जब
खिड़की के बाहर देखा
मधुमालती मुख्य द्वार पर
शामियाने की छतरी ताने
एक मृदुल सुवास लिए अपने
गुलाबी सफ़ेद धारी दार
गुच्छेदार फूलों को हिलाकर
मानो अभिनन्दन कर रही थी………………
धीरे-धीरे सूर्य की किरणें
चहुँ ओर उजास फैलाने लगी
मधुमालती के छाँह तले
घर और आस-पास की औरतें
छोटे-मोटे काम निबटाने लगीं
दुनिया जहां की बातों के साथ
मानो उनकी समस्या का हल
उसकी सुवास के बगैर दुष्कर था ……………
दोपहर होते ही माँ की
आँख बचाकर घरों से निकले
नन्हे बच्चों की किलकारियों से
मानो यह निस्तब्ध बेला भी
गुले-गुलज़ार हो जाती
मधुमालती भी खुश हो कर
अपने दो-चार पुष्प बच्चों की
टोकरियों में उपहार दे जाती…………….
सांझ होते ही इधर देखती
आसमान में तारे टिमटिमाते
उधर मधुमालती के सितारों से
चमकते फूलों के नीचे
युवकों,बुजुर्गों की दुनिया सिमटती
उनके कहकहे और ठहाके
रात के सन्नाटे में भी
कितना उल्लास भर जाते …………
मधुमालती की मादक खुशबू से
उनकी नींद से बोझिल
पलकें मुंदने सी लगती
रात्रिभर पवन के झोंकों में
समाई उसकी भीनी खुशबू
सारे वातावरण को पवित्र करती…………….
सोचती हूँ काश!!आँगन में
तुलसी के बिरवे की तरह
द्वार पर मंगल सूचक
मधुमालती का तोरण
घर-घर में सजा होता
हरियाली सुख समृधि का
प्रतीक तो है ही
पर्यावरण के संरक्षण का
खुला एक एलान है
मधुमालती को गृह द्वार पर
खूबसूरती से सजाने वालों
हरियाली आज भी बचाने वालों
आप सब को यमुना का सलाम है..
The tree is our teacher,imparting to us the lesson of nature that if we seek to progress outwardly we must first strengthen ourselves inwardly;we must begin from the base of our own selves before we can hope to build society a new. (a quote )
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