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गुफा युग ( cave ) से ग्राफ़िक युग ( computer ) तक के सफर की राह क्या इतनी पथरीली ,खुरदरी ,उबड़ खाबड़ रही कि
इस विकास की छद्म यात्रा में इंसानी रिश्ते ही सर्वाधिक लहूलुहान होते गए .
पर आज कुछ कुत्सित मानसिकता के लोग अपने खाली वक़्त को वेल्थ वाइन और वीमेन (wealth,wine,women )के प्रति वीकनेस (weakness )में ज़ाया करते हैं और यह वीकनेस उनके वॉलेट,विल और विजडम (wallet,will ,wisdom)से भी ज्यादा स्त्रियों के हालात को बद से बदतर worse कर समाज का सर्वाधिक अहित करती है.
शराब,शवाब और स्वर्ण की चाहत उसे इस कदर मदांध कर देती है कि प्रत्येक चीज़ पर प्रयोग कर उसे आज़माना बहुत सुकून देता है .और उसे इस गलती का पश्चाताप तक नहीं होता .
भारतीय समाज की छवि इस डोक्युमेंटरी से विश्व में किस तरह प्रतिरूपित होगी यह …बी बी सी के इंटरव्यू की इज़ाज़त देने के पूर्व सोचना था .अब बवाल मचाने से कोई फायदा नहीं.इंटरव्यू लेकर कोई उसे तहखाने में नहीं रखता वह लोगों के लिए प्रसारित भी किया जाता है ताकि जनता समझे और विचार करे .भारत सरकार के गृह मंत्री राजनाथ सिंह जी ने आश्चर्य किया कि इंटरव्यू लेने की अनुमति कैसे मिली तिहाड़ जेल के डायरेक्टर अलोक कुमार वर्मा को समन भी जारी किया गया .लोगों का मानना है इंटरव्यू की इज़ाज़त देना निर्भया के अभिभावकों का अपमान है .
( Enough is Enough ) की आवाज़ के साथ आना प्रेरक लगा और उसने डोक्युमेंटरी बनाना शुरू किया .
मुकेश (बस चालक अभियुक्त )ने वही कहा जो उसके दिल दिमाग में चल रहा था ,है और चलेगा ???उसने महिलाओं को रात में घर से बाहर निकलने ,दुष्कृत्य का विरोध करने की वज़ह से निर्भया को जान से मार देने की दलील देकर अपने दुष्कृत्य को इतने दिन जेल में रहने के बाद भी सही ठहराया वह बेहद निंदनीय है.उसने यह भी कहा कि दुराचार के बाद महिलाओं को जान से मार देना चाहिए ताकि दुष्कृत्य का कोई गवाह ही ना रह पाये.यह निंदनीय जुबान उसके परवरिश की परिणति है और परिवेश का प्रतिफल.मुकेश से मिलते जुलते बयान कई खाप पंचायत ,देश के कुछ इन गिने नेता भी दे चुके हैं .यह भी सच है कि देश की सड़कें गलियाँ बाज़ार महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं हैं .वकील ए पी सिंह से भी जब रेडियो जॉकी गिन्नी ने यह जानना चाहा कि ऐसे दुष्कृत्य में लिप्त अभियुक्त का केस क्यों कर ले रहे हैं तो उन्होंने भी महिलाओं को ही जिम्मेदार ठहराया और कहा कि अच्छे चरित्र वाली महिलाओं के साथ दुष्कृत्य नहीं होते .अब उन्हें कौन बताये कि देश में छोटी कन्याओं से लेकर वृद्धा तक सुरक्षित नहीं हैं.उन्होंने पहले भी एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर उनकी बहन बेटी का चारित्रिक पतन हुआ उन्होंने खानदान की मर्यादा भंग की तो वे फार्म हाउस लेजा कर पूरे परिवार के सामने उन पर पेट्रोल छिड़क कर उन्हें ज़िंदा जला देंगे .
ज़रुरत मुकेश और वकीलों के बयान की भर्तसना इस पर मंथन , वाद विवाद के साथ इस बात पर भी मंथन स्वस्थ बहस और सही क्रिया कलाप की भी है कि देश के कोने कोने में छुपकर बैठे पोर्न वीडियो देख शराब पीकर अपने यौनेच्छा को दमित कर शिकार ढूंढने और फिर इसे व्यवहारिक रूप देने वाले दिशाहीन दिग्भ्रमित युवाओं की मानसिकता का परिष्करण कैसे किया जाए ???
पुस्तकालय,खेल के मैदान,अखाड़े ,जिमखाना थियेटर ,नुक्कड़ सब कुछ मोबाइल में कैद हो गए है एक क्लिक पर अवांछनीय और अनैतिक कही जाने वाली सामग्री सहज उपलब्ध है.मुकेश और उसके साथ के अभियुक्तों ने भी स्वीकारा था कि दुष्कृत्य को अंजाम देने से पूर्व उन्होंने अश्लील वीडियो क्लिप्स देखे थे और शराब पी थी .कल ही fb पर छह वर्षीय बच्ची के साथ पाशविक तरीके से अनाचार की खबर पढ़ी .गलत मानसिकता वाले ऐसे किसी भी क्लिप्स को देख कर उसे प्रायोगिक रूप से करना चाहते हैं .अब ऐसे में उन्हें किस तरह इन अनैतिक बर्ताव से दूर रखा जाए .घर परिवार समाज को यह जिम्मेदारी लेनी होगी .रचनात्मक कार्यों में रूझान विकसित करना ज़रूरी है .पर जहां जनसँख्या का एक विशाल तबका अशिक्षित अभावग्रस्त है वहां यह पहल कोरी कल्पना ही होगी.मुश्किल यह भी कि पहले माना जाता था कि ऐसे अपराध गरीबी की वज़ह से होते हैं क्योंकि ‘अभाव में स्वभाव बदल जाता है .पर आज तो अमीर मध्यम गरीब सभी वर्ग के बुरी मानसिकता वाले पुरुष ऐसे दुष्कृत्य से संकोच नहीं करते .
‘बदनाम होंगे तो क्या नाम ना होगा ‘ पर ऐसा प्रचार संवेदनशील जनता बहुत गंभीरता से लेती है दीमापुर की घटना इस बात का ताज़ा उदहारण है.मुकेश जैसे लोगों के लिए न्याय करने में जनता को तनिक भी देर नहीं लगती है. यह अलग बात है कि इस तरह के जनता न्याय को भी सभ्य समाज में उचित नहीं ठहराया जा सकता है.परन्तु सुखदेओ जी की इस बात से सहमत हुआ जा सकता है कि ऐसी घटनाओं को बहुत महत्वपूर्ण न बनाया जाए , ना ही बहुत वाद विवाद कर इसे हाइप दिया जाए .यह समाज के लिए अच्छा नहीं है.
फिर घर परिवार समाज में किसी भी निडर स्त्री का सामना उसे स्वस्तित्व के लिए भयभीत करता है और जो पुरुषत्व उसे स्वयं को और निखारने के लिए अपेक्षित है उसे वह स्त्रियों के व्यक्तित्व को बिगाड़ने में दुष्प्रयोग करता है.और यही इस अपराध के पीछे शर्मनाक कड़वी पर बेहद सच वज़ह है.
मुझे कई प्रश्न रह रह कर चुभते हैं ….
1) प्रत्येक वस्तु ,परिस्थिति में स्वानुशासन और अनुशासन का पाठ मोबाइल मूवी और कंप्यूटर के प्रयोग में भी क्यों नहीं है ?
2) शराब,तेज़ाब की सहज उपलब्धता को क्यों नहीं रोका जाता ?
3) परदेश में पड़ोसी हमदर्द क्यों नहीं बनते ?
4) व्यक्ति में रचनात्मकता विकसित करने की जिम्मेदारी किसकी है …स्वयं व्यक्ति की ,परिवार की ,समाज की या फिर तीनों की ?
5) लड़कों को जिम्मेदार विहीन बनाने की सामाजिक परंपरा के लिए जिम्मेदार कौन है ?
6)पुरुष महिलाओं के निर्णय, रहन सहन ,व्यक्तित्व को अपने फ्रेम में ढलने को कब तक विवश करता रहेगा ?
सच है…
काचौंध के जंगल में मानव
राह मनुष्यता की भूल रहा
मरे फूल संवेदनाओं के सारे
बचा सिर्फ अब शूल रहा
तार तार हुई इंसानियत अब
काल कोठरी में सिसक रही
अब कहावत नहीं कहने को कि
जमीन पाँव से खिसक रही
विवेकहीन संवेदना लूटा मानव
गोश्त अपनों के ही है खा रहा
गुफा युग से चल ग्राफ़िक तक आ
है इतिहास भी अब शर्मा रहा
कहते जिन्हे हम पशु वे भी नहीं
अनायास बेवज़ह करते हैं वार
पशु से भी हुआ बदतर आदमी
कर हत्या लूट और व्याभिचार .
नोट : कुछ जानकारियां नेट से ली गई हैं .शेष स्व विचार
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