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“सात फेरे;सात वचन” महिला प्रतीक चिन्ह-दासता के ……पहचान(jagran junction forum)

V2...Value and Vision
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“स्त्री स्वतन्त्रता में सबसे बड़ा अवरोध उनके साथ आबद्ध प्रतीक चिन्हों का होना है जो नारी दासता के परिपोषक होने के साथ उन्हें खुले वातावरण में सांस लेने से रोकते हैं “इस विचारधारा के पक्ष या विपक्ष के पूर्व हमें‘ प्रतीक चिन्हों के महत्व’ और ‘नारी स्वतन्त्रता’ दोनों को ही गहनता से समझना होगा.

प्रतीक चिहन समाज द्वारा बनाई गयी पवित्र व्यवस्था ‘विवाह सूत्र’की देन है जो १६ संस्कारों (गर्भाधान,पुंसवन,सीमंतोंनयन,जातकर्म,नामकरण,निष्क्रमण,अन्नप्राशन,चूडाकर्म ,कर्णछेदन,विद्यारम्भ,उपनयन,वेदारम्भ,समावर्तन,विवाह,वानप्रस्थ,अंत्येष्टि )में से एक है.संस्कार का अर्थ ही है परिमार्जन या शुद्धिकरण.प्राचीन समाज ने व्यवस्थित विधि से जीवन प्रत्याशा 100 वर्ष की मान कर इसे चार आश्रम -ब्रहमचर्य,गृहस्थ,वानप्रस्थ और संन्यास में बाँट दिया था.विवाह गृहस्थ आश्रम से जुड़ा संस्कार है और सिंदूर,मंगल सूत्र आदि प्रतीक इससे जोड़े गए हैं ‘.मंगल’ अर्थात शुभ और ‘सूत्र’ यानि धागा या बंधन.इस तरह दो अलग-अलग रक्त संबंधों को मर्यादित रूप से संतानोतापत्ति,यौन संतुष्टि,की सामाजिक सहमति प्राप्त होती है.सिंदूर का लाल रंग रक्त का रंग है जो जीवन को शक्ति देता रहता है ,यह ऊर्जा तथा प्यार का भी रंग है जो सात फेरे,सात वचन के साथ ताउम्र उसकी रक्षा का वचन लेते हुए पुरुष स्त्री को पहना देता है जो उसके जीवित रहने तक पत्नी धारण करती है .मंगल सूत्र के मोतियों का काला रंग (मान्यता है कि काला रंग बुरी नज़रों से बचाता है) हर अला-बला से उसकी रक्षा करता है.कहा जाता है कि विवाह सात जन्मों का बंधन है और जोडियाँ स्वर्ग में बनती हैं .एक सत्संग में पंडित जी की बात याद आती है.उन्होंने कहा,” जिन दम्पति में बहुत लड़ाई होती है वे प्रथम जन्म के विवाह बंधन में बंधे होते हैं और जिनमें बिलकुल लड़ाई नहीं होती, समझ लो, ये उनका सातवें जन्म का विवाह बंधन है.”दरअसल ये बात सांकेतिक है .

पति-पत्नी का एक दूसरे की ज़िन्दगी में होना ही संगीत और नृत्य (उल्लास) उत्पन्न करता है,विवाह सात फेरे एक दिन में ले लेने मात्र से ही पूर्ण नहीं हो जाता,हम धीरे-धीरे व्यवस्था में जाते हैं ,एक-दुसरे को समझने की राह में और प्रतीक चिन्ह एक आत्मीय सम्बन्ध की दिशा में कड़ी का काम करते हैं.किसी एक व्यक्ति से इतना अपनापन कि उसके लिए सजना संवारना और एहसास करना कि कोई मेरा है और मैं किसी की हूँ ,यह हमसफ़र को भी एहसास दिलाता है कि कोई ऐसी है जो उसके नाम से समाज में पहचानी जाती है और उसके दायित्वों से वह बंधा हुआ है ;यह आत्मीयता स्वतः अनैतिक संबंधों के सारे दरवाजे बंद कर देती है पर इसके लिए इन सारी चीज़ों को दिल से महसूस करना होता है.महिला के द्वारा इन प्रतीकों को धारण करना उसकी दासता का प्रतीक कभी नहीं है यह उसका गौरव है .

कुदरत में गणितीय सिद्धांत नहीं है कि १=१ या स्त्री=पुरुष . यहाँ जैविक तौर पर स्त्री ,पुरुष से अलग है क्योंकि उसे सृजन करने की शक्ति है और इसका अंजाम वह भोग्या के रूप में पुरुष द्वारा शोषित होकर पाती है .इसलिए उसे किसी एक के जीवन से जोड़ा जाना ज़रूरी समझा गया और प्रमाण के तौर पर सिंदूर,मंगलसूत्र जैसे कुछ प्रतीक चिन्ह दिए गए ताकि एक सुव्यवस्थित और नैतिक रूप से सुदृढ़ समाज की स्थापना हो सके.

अब बात करते हैं स्वतन्त्रता की,जिसका वास्तविक अर्थ है जो हम वास्तव में होना चाहते हैं वह होने की शक्ति,अपने मूल व्यक्तित्व इच्छा के साथ होना,वही सोचना जो हम चाहते हैं,वही बोलना जो हमारा अंतर्मन कहता है वही करना जो हमारी आत्मा गवाही दे.पर इन सब स्वतंत्रता के साथ शुरू होता है एक विवेकपूर्ण चिंतन कि हम वास्तव में जो चाहते हैं क्या वह विवेकसंगत है? उसकी प्राप्ति के साधन क्या हैं?उस स्वतन्त्रता का हम क्या मूल्य चुका रहे हैं ?

आज से कुछ दशकों पूर्व नारी स्वातंत्र्य की राह में प्रतीक चिन्ह अवरोध हैं ये सोच ही कल्पनातीत थी पर आज नारी meal maker से deal maker हो रही है और कुछ संस्थानों के परिवेश के तहत मंगल सूत्र या सिंदूर लगाना असुविधाजनक हो सकता है. मसलन अगर कोरपोरेट क्षेत्र में कार्यरत महिलाएं पश्चिमी वेश भूषा में इसे असुविधाजनक मानती हैं तो उन्हें जोर ज़बरजस्ती से इन प्रतीकों को पहनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता ये उनके भावनात्मक जुड़ाव से सम्बन्ध रखता है क्योंकि इनके प्रति उनकी श्रद्धा और जुड़ाव होने पर वे अल्प मात्रा में ही सही पर इनको पहनती अवश्य हैं..परिवेश,वेश भूषा के साथ समायोजन में उन्हें अत्यधिक श्रृंगार बंधन लग सकता है पर ऐसी विचारधारा वाली महिलाओं की संख्या आज भी बहुत कम है.अगर कोई स्त्री इन प्रतीकों को धारण नहीं करती तो ये मानना भी गलत है कि उसकी आत्मीयता अपने हमसफ़र से नहीं है क्योंकि यह अक्षरसः सही कहा गया है …..

Husband is with  his wife as the sun is with  the colour and wife is with her husband as fragnance is in a flower .
A successful married life depends upon fidelity,trust,love,understanding and mental capability.If there is love between the couples ,all other adjustments are easy and the best proof of love is TRUST .It comes in the form of a sense ,a well being,peace ,contentment,and the feeling that”I BELONG TO SOMEONE AND SOMEONE BELONGS TO ME.”

हम किस तरह की नारी मुक्ति की बात कर रहे हैं  ? क्या आधुनिक वेश-भूषा से सुसज्जित होकर ही कोई स्त्री आधुनिक होने का दंम्भ भर सकती है ?क्या प्रतीक चिन्हों का प्रयोग उसे समाज में परम्परावादी स्त्री के रूप में प्रतिस्थापित करता है ?मेरा मानना है कि ऐसा बिलकुल नहीं है . स्त्री अपनी सोच और प्रतिभा के बल पर ही स्वयं को समाज में प्रतिस्थापित करती है.विकास की राह में इन चिन्हों के साथ ही कई महिलाएं आगे बढ़ रही हैं.अपने अस्तित्व ,अपनी पहचान बना पा रही हैं ,प्रतिभा पाटिल जी को देश का बच्चा बच्चा जानता है पर उनके पति को कितने लोग जानते हैं?

सिंदूर,बिंदी धारण करने से अगर स्वतंत्रता हटती है तो फिर हमारे देश की प्रथम महिला आज उस पद पर कैसे होती ?दरअसल यह दासता और आज़ादी की बात ही बेमानी है .प्रतीक चिन्ह स्त्री की किस सीमा का निर्धारण करते हैं ?जो सीमा विवाहित स्त्री के लिए है वह तो अविवाहित लड़कियों के लिए भी है. नैतिक मर्यादा,पारिवारिक संबंधों की गरिमा,आपसी आत्मीयता की रक्षा यह तो पुरुष पर भी उतना ही लागू होता है.फिर देखा जाए तो इन चिन्हों को पहनाने वाला पुरुष तो खुद नैतिक सीमाओं में बंध जाता है वह तो अपनी कई आज़ादी खो देता है उसे भी विवाहोपरांत कई नियमों का पालन करना होता है. मसलन ; देर रात तक घर से बाहर रहने पर प्रतिबन्ध ,दोस्त भी जांच परख कर बनाना ,अपनी महिला मित्रों की सूची पत्नी के मस्तिष्क में पाक साफ़ रूप से अंकित कर देना वगैरह वगैरह………….

मुझे याद है जब अपने विवाह के अल्बम में सिंदूर दान की तस्वीर देखकर मैंने पूछा,”आप इस तस्वीर में क्यों अत्यंत गंभीर लग लगे हैं ?”उन्होंने ने कहा,पता नहीं सिंदूर पहनाते ही मुझे ऐसा एहसास हुआ कि कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी है आज से एक अनजानी सी लडकी की ज़िम्मेदारी मुझे सिर्फ मुझे लेनी है .”सच कहूँ तो निष्कर्ष तो यही है कि प्रतीक चिन्हों से या विवाह व्यवस्था से दोनों ही मर्यादा और सीमा के दायरे में अपने अस्तित्व का विकास करते हैं .किसी की स्वतन्त्रता का हनन इससे नहीं होता .

‘quality of लाइफ’ के एक session में एक दम्पति ने कहा उनका रिश्ता ३६ के आंकड़े (एक दूजे से बिलकुल विपरीत)पर आधारित है,दुसरे ने कहा ६३ पर(हर बात पर आमने सामने)तीसरे ने कहा ३३ पर(पत्नी पति की अनुगामिनी) और चौथे ने कहा कि उनका रिश्ता ६६ के आंकड़े (पति पत्नी का अनुगामी )पर आधारित है.मैं एक बात स्पष्ट तौर पर कह सकती हूँ कि ये सभी आंकड़े ही दासता और स्वतन्त्रता की बहस जारी रखेंगे.इसलिए ज़नाब, मेरी मानिए तो २२ का आंकड़ा रखिये “दो कदम तुम भी चलो,दो कदम हम भी चले”जहां न कोई बंधन न कोई आज़ादी ………बस विवाह व्यवस्था में होना ही सबसे बड़ी बात है.एक आदर्श समायोजन,एक आदर्श स्थिति. यह सही है क्यों कि एक सुखद दाम्पत्य ,जीवन के हर कठिन पल में मजबूती के साथ टिके रहने का हौसला देता है .परम्पराएं छोटी-छोटी होती हैं पर सुन्दर संबंधों की आधारशिला का काम भी करती हैं.

प्राकृतिक गतिविधियाँ कभी संघर्ष नहीं करती ,नदियाँ अपने सहज भाव से प्रवाहित होती हैं;सूर्य,चाँद,सितारे सहजता से नभ में चमकते हैं;प्रकृति में पुष्प का खिलना भी सहज भाव से होता है.इसी प्रकार वैवाहिक सम्बन्ध और उससे जुडी मान्यताएं और परम्पराएं कभी संघर्ष नहीं करते ,ये पवित्र सम्बन्ध अपने सहजता से प्रवाहमान होते हैं.

मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह है कि मैं प्रतीक चिन्हों को धारण कर गौरवान्वित होती हूँ क्योंकि यह मेरी सबसे सुदृढ़ शक्ति के रूप में मुझे भावनात्मक रूप से अपने हमसफ़र के संग जोड़े रखता है.जहां तक मेरी स्वतन्त्रता की बात है ,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो विवाह के बाद और निखर गयी क्योंकि मुझे सदा इनकी प्रेरणा मिलती रही.समाज पति-पत्नी को एक साथ सम्मान के नज़र से देखता है पर एक मर्यादित और गरिमामयी सम्बन्ध की भी सदैव अपेक्षा करता है.मैं इन चिन्हों को पहन कर सदा सुहागन रहने की ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ क्योंकि एक ग़ज़ल की इन चंद पंक्तियों पर मेरी अटूट आस्था है…….

“सब कुछ तो मिल गया है तुझे मांगने के बाद

उठते नहीं हैं हाथ मेरे इस दुआ के बाद ”

और यह सत्य भी है कि मैंने माँगी थी जो दुआ वो कबूल हो गयी .

प्रतीक चिन्ह जैसे सिंदूर,मंगलसूत्र,सुहाग चूड़ियां इत्यादि धारण करने से स्त्री की लावण्यता में एक निखार आता है यह अवश्य ही आत्मीय भावना की प्रेरक शक्ति का प्रभाव होता है .इनका खो जाना एक स्त्री के जीवन का सबसे बुरा वक्त होता है.हमारे समाज की व्यवस्था ऐसी है कि आज भी विवाहिता सम्मान की दृष्टि से देखी जाती है.किसी भी शुभ कार्य में पति-पत्नी का साथ उपस्थित होना अच्छा माना जाता है.

सौभाग्य प्रतीक काला मंगल सूत्र
विवाहिता की गरिमामयी शोभा है
रक्तिम लाल रंग के सिंदूर ने ही तो
चमकाई दुल्हन के मुख की आभा है

सात फेरे और सात वचन संग वह
साथ सात जन्म का ही तो चाहती है
हर विवाहिता स्वयं के लिए वरदान
एक बस, सदा सुहागन का मांगती है.

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