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स्त्री की आत्मकथा

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पता चलता है …

समाज विवेकी होता है तो बच्चों से पता चलता है
आज़ाद होती हैं औरतें तो रस्मों से पता चलता है.
मौसम जब बदलता है तो पत्तों से पता चलता है .
दर्द होता है गहरा तो सूखे अश्कों से पता चलता है

जड़ें गहरी हैं कितनी हरे दरख्तों से पता चलता है
शहंशाह थे कैसे यह खाली तख्तों से पता चलता है .
इबारतों के सच का पीले पन्नों से पता चलता है
खामोश रिश्तों के दर्द का अपनों से पता चलता है .

२)

स्त्री की आत्मकथा

इस धरती पर अब भी स्त्री
जीती है कई कई किरदार
समाज ने कुछ माने दागी
हैं कुछ प्रामाणिक बेदाग़
कभी मर्यादा की मूरत बन
होती वह सीता सावित्री
कभी प्रज्ञाबुद्धि मेधा संग
बन जाती गार्गी ,मैत्रेयी
कभी पुत्र मोह में अंधी बन
गांधारी सी बेबस हो जाती
कभी अनजाने ही शापवश
अहल्या सी पत्थर हो जाती
कभी- कभी बनती है स्त्री
हीर,सोहनी या फिर लैला
जीवन संजीवनी छीन लेता
तब समाज यह मैला कुचला
कभी अनजाने है जग जाती
राधा बनने की प्यास भी
अबोध प्रेमवश लग जाती
मीरा सी कृष्ण की आस भी
कुछ होती दफ़न अंतर्मन में
कुछ उभर बाहर आ जाती
मज़बूत बन किरदार कोई
बन जाती जीवन की थाती
आज तक स्त्री चरित को
है पुरुष ने ही गढ़ा लिखा
नहीं लिखी स्त्री ने अब तक
कोई भी एक आत्मकथा .

3)

दीप्त सूर्य के सपने

नन्ही नन्ही बेटियां
देखती हैं सपने
चमकते दीप्त सूर्य की
घर से स्कूल
और स्कूल से घर तक
कुलांचे भरती हैं
भागते हैं
नन्हे नन्हे पाँव
निगाहें होती हैं
आसमाँ के सूर्य पर
पर अफ़सोस …..!!!!
कभी हाथ ही पहुँच नहीं पाते
दीप्त सूर्य तक
और कभी
सूर्य ही अटक जाता है
दरख़्त की टहनियों पर .

4)

जब कभी मन तन्हा होता है

जब कभी मन तन्हा होता है
खुद में जीना अच्छा होता है
………………….
कितनी खामोशी; कितने दस्तक
कुछ होते नूपुर से झंकृत
कुछ सन्नाटे से व्यथित
ख्वाहिश नहीं …
कानों को हाथों से बंद करने की
फड़कते होठों को सील देने की
हर अनुभव निचोड़ना होता है
जब कभी मन तन्हा होता है
खुद में जीना अच्छा होता है
……….
वर्त्तमान को साँसों में भर
भविष्य के धागों में उलझ
अतीत के गर्म रेत में
बोये बीजों को निकाल
अस्तित्व के मर्म को समझना होता है
जड़ से अलग हो जाना
वृक्ष की स्वतंत्रता नहीं
इस संस्कार को जीना होता है
जब कभी मन तन्हा होता है
खुद में जीना अच्छा होता है .

५)

स्वतंत्रता …एक जिम्मेदारी

खुले मज़बूत पंख मिल भी जाएं
ऊंची उड़ान अगर भर ली भी जाए
फिर भी…आगाज़ से अंजाम तक
होती है तस्वीर ज़ेहन में हमेशा
अपनी मर्यादाओं के सरहदों की
कुछ जवाबदेही के शिखरों की
क्योंकि …स्वतंत्रता …
एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है .

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