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एक बात जो मुझे हमेशा सालती है वह यह कि इंसान विकास के क्रम में गगनचुम्बी इमारतों, विशाल भवनों को देखता है; ओह! उफ़! आह! कर विस्मित होता है;उनकी संरचना,बनावट की प्रशंसा के कसीदे काढता है पर इस पूरे अवलोकन में नींव के उस पत्थर(सृजन के मूल ) की अवहेलना कर जाता है जिस पर उस भवन का अस्तित्व आरम्भ हुआ.आज हम सब की यही मनोवृति है.बड़े होकर अपने माता-पिता को भूल जाना,उच्च शिक्षा प्राप्त कर अपने गुरुजनों को भूलना,दूसरे शहर या परदेश जाकर अपनी मूल संस्कृति को विस्मृत करना.हर बार,हर जगह उस प्रथम स्त्रोत को भूलना,उसकी अवहेलना करना जो हमारे विकास रूपी भवन के नींव की प्रथम ईंट थी.
समाज बड़े-बड़े नेताओं को,संस्थान महत्वपूर्ण लोगों को सम्मानित करने,प्रतिभाओं की खोज में शहर दर शहर भटकने की कवायद में ऐसे अनेक अनदेखे सितारों को भूल जाता है जो नित्य रोशन हो रहे हैं या यूँ कहिये कि अगर वे सितारे अपनी टिमटिमाहट के साथ नभ में ना दिखें तो नभ सिर्फ काले शामियाने के सिवा कुछ ना दिखे. इसका भान उन्हें नहीं हो पाता.विकास के आरंभिक स्त्रोत,समाज के अग्रदूत,नित्य बिना किसी प्रचार-प्रसार की चाह रख कर समाज हित में सेवा देने वाले, ऐसे लोगों को ही समाज हाशिये पर रख देता है और मुख्य पृष्ठ पर दिखते हैं सिर्फ वे चेहरे जो देश की संपत्ति, सत्ता ,शक्ति के बल-बूते सब कुछ बदल देने का बस दावा करते रहते हैं
विकास के आरंभिक बिंदु की अवहेलना हर देश,काल में की जा रही है.वह सुक्ष्म ज़रूर है पर उसकी सूक्ष्मता ने ही विकास की आधारशिला रखी हैआइये हम सब उस सुक्ष्म प्रथम कण ,नींव की प्रथम ईंट के प्रति कृतज्ञ हों उनका भी सम्मान करें उन्हें विस्मृत ना करें.
(सुख के सुखद स्त्रोत के साथ मुझे दुःख के स्त्रोत की भी तलाश है.मैंने यहाँ पांचवे stanza में समस्या के मूल या जड़ को पहचान कर समाधान प्राप्ति की प्रवृति का भी संकेत देने की छोटी सी कोशिश की है .)
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सृजन के हर क्रम में
हाँ ,मुझे तलाश है…
1………
उस प्रथम ईंट/प्रस्तर की
जिसने नींव भवन की रखी
उस मधुर प्रथम सरगम की
जिससे स्वर लहरी गूंजी
2 …………
उस प्रथम सुसुप्त बीज की
जिसकी जागृति से वृक्ष बना
माटी के उस प्रथम कण की
जिस पर विशाल पर्वत खडा
3 …………..
जल के प्रथम उस नन्हे बूंद की
जिसमें अथाह जलनिधि बसा
जीवन के उस प्रथम स्त्रोत की
है जिसने समस्त ब्रह्माण्ड रचा
4 ………………..
ओस के उस प्रथम कण की
जिसने पर्ण दल पवित्र किया
सूर्य की उस प्रथम किरण की
जिससे जग में उजास बिखरा
5 ……………….
दर्द के उस पहले एहसास की
जो बन आंसू नयन से छलका
गरल के उस तिक्त घूंट की भी
जिसके आस्वादन ने मृत किया
6…………..
चमकते स्वेद बूंद की जो
श्रमिक के माथे से ढलका
प्रेम के प्रथम प्रस्फुटन की
जो भावावेग से मचला
7 …………
विचारों के विशाल सागर में
क्या थी चिंतन की प्रथम कड़ी
विकास के इस उन्नत शिखर पर
भुला मनुज वह प्रथम सीढ़ी
8 …………
पर मैं बेसब्र,व्याकुल हूँ बस
सोचती रहती यही घड़ी घड़ी
विशाल भवन दिखता सबको
नींव की ईंट क्यों दिखती नहीं ?
9 ………..
कहाँ है सृजन का प्रथम कण
हाँ,मुझे है तलाश उसकी
ताकि आरम्भ कर सकूँ
ऐसी सुन्दर एक नयी कृति
10 …………
नए सृजन,नए निर्माण की
जिसमें दिख सके वह प्रथम कड़ी
विकास की अनंत यात्रा में जो
जग के लिए हुई भूली-बिसरी .
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