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हिन्दी की हरीतिमा,ज़र्द मत होने दो(जागरण जंक्शन फोरम)

V2...Value and Vision
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ब्लॉग लिखने की शुरुआत करते ही एक बात मस्तिष्क में विद्युत् सी कौंधी-“क्या मोहम्मद इकबाल की लिखी पंक्तियाँ ‘हिन्दी हैं हम वतन हैं हिन्दोस्तान हमारा’ राष्ट्रीय पर्व पर गाये जाने वाले गीत या फिर मोबाइल की रिंग टोन बन कर ही रह जाएगा ? हिन्दी,हिन्द और हिन्दुस्तान में हिन्दी दिवस मनाने की ज़रूरत क्यों पडी ? हिन्दी अपनी ज़मीन पर ही परायी कैसे और क्यों हो गयी ? यह विचार मात्र ही प्रत्येक भारतीय को ग्लानि से भर देता है.
वह देश जहां हिन्दी भाषा पर सर्वाधिक फिल्में बन रही हैं,हिन्दी अखबार सर्वाधिक लोगों द्वारा पढ़ा जाने वाला समाचार पत्र है,हिन्दी विश्व में दूसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है,टी.वी पर हिन्दी भाषा पर बने धारावाहिकों की भरमार है जिनमें कुछ तो शुद्ध परिष्कृत हिन्दी भाषा में हैं(देवों के देव महादेव सरीखे धारावाहिक ),मीडिया,पत्रकारिता,विज्ञापनों की दुनिया में हिन्दी की धूम है वहां हिन्दी की अस्मिता का प्रश्न क्या महज़ एक विसंगति है ?
इस प्रश्न का ज़वाब हासिल करने के लिए हम सभी को प्रत्येक बिंदु पर विश्लेषण करना ही होगा.यह सत्य है कि अंग्रेज़ी माध्यम के विद्यालयों की संख्या भयावह ढंग से बढ़ रही है,उच्च शिक्षा में नियमित पाठ्यक्रम में वर्चस्व हिन्दी का नहीं बल्कि अंग्रेज़ी भाषा का है,फ़िल्मी सितारे अपने हिन्दी भाषा के संवाद को देवनागरी लिपि में नहीं बल्कि रोमन लिपि में लिखे जाने पर आसानी से पढ़ पाते हैं.ये तो हिन्दी की बेचारगी की महज़ एक बानगी है,सत्य तो इससे भी ज्यादा विचारणीय है.
आइये, हिन्दी भाषा के घटते वर्चस्व का कारण जानने के लिए भावाभिव्यक्ति और सम्प्रेषण के रूप में भाषा के प्रयोग पर विचार करते हैं . इसे हम मुख्य रूप से तीन नज़रिए से देख सकते हैं-:
प्रथम मातृभाषा (निज भाषा) जो स्थानीय बोलियों से लेकर अलग-अलग राज्यों की भाषा तक विस्तृत है.जब मैं “निज भाषा उन्नति अहै,सब उन्नति के मूल”के अर्थ पर वर्त्तमान me scenario ,सेल्फ focussed संस्कृति जिसमें me फर्स्ट का ही बोलबाला है में गौर करती हूँ तो राजभाषा हिन्दी की हरीतिमा ज़र्द होने का एक अन्य कारण भी स्पष्टतः देख पाती हूँ .

विविधता में एकता का प्रमाण देती,संपूर्ण जन मानस को एक सूत्र में पिरोती हिन्दी के विकास में ग्रहण लगाने का कार्य कुछ हद तक इस निजत्व की संकीर्णता ने भी किया है जो मैं,मेरा राज्य,मेरी भाषा में सिमट गयी है.ज़रूरत है कि प्रत्येक राज्य निज भाषा से जुडी आत्मीयता के साथ राजभाषा हिन्दी की श्रेष्ठता का एहसास भी शिद्दत से करे.आज संचार और आवागमन क्रान्ति की वज़ह से प्रत्येक राज्य स्वयं में ही एक लघु भारत साबित हो रहा है. इस बदलते परिदृश्य में प्रत्येक राज्य द्वारा हिन्दी का प्रचार-प्रसार उनके संपूर्ण विकास में अवश्य सहायक साबित होगा.

दुसरे श्रेणी में मैं गली-मुहल्लों में आपस में बोली जाने वाली संवाद की भाषा पर विचार करती हूँ.इसका विस्तार स्थानीय बोली,राज्यों की भाषा,हिंदी,अंग्रेज़ी और हिंगलिश तक है.इस श्रेणी में हिन्दी भाषा के प्रसार की बहुत ज्यादा अपेक्षा इसलिए नहीं की जा सकती क्योंकि युवा वर्ग आज भाषा के खिचदीकरण(khichadisation ) को ज्यादा तरजीह दे रहा है slang भाषा के साथ हिन्दी का अंग्रेज़ी और हिंगलिश के बीच sandwichification हो गया है और युवा इस भाषा के प्रयोग में ही सहजता अनुभव करता है अतः इस वर्ग को हिन्दी भाषा की शुद्धता का महत्व समझाना टेढ़ी खीर है.

तीसरे श्रेणी में शामिल है औपचारिक भाषा जिसका दायरा विद्यालयों के पठन-पाठन,कार्यालयों के कार्य संपादित करने से लेकर देश-विदेश में प्रतिनिधित्व करने तक विस्तृत है.
हिन्दी के वर्चस्व और अस्मिता का प्रश्न सर्वाधिक रूप से इसी तीसरी श्रेणी से ताल्लुकात रखता है.स्वयं को सुशिक्षित सुसंस्कृत साबित करने के लिए लोग धड़ल्ले से अंग्रेज़ी का प्रयोग करते हैं.इसे status symbol का झूठा दंम्भ समझा जाए या ग्लोबल village की अवधारणा का तकाजा, ये कहना मुश्किल है.पर सत्य यही है कि इसी श्रेणी ने अघोषित रूप से हिन्दी भाषा को दोयम दर्ज़ा दिया है.
देश की आजादी की लड़ाई हमने हिन्दी भाषा की ओजपूर्ण हुंकार भरती कविता,कहानियों और भाषणों संग लड़ी.पर आज स्वयं को अंग्रेजियत की बेड़ियों में भी तो हम ने ही जकड़ा है.
भाषा के प्रयोग में इसकी शुद्धता का ध्यान जितना अंग्रेज़ी पर दिया जाता है उतना हिन्दी पर नहीं दिया जाता है. शायद इसीलिये गलत व्याकरण के साथ अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग हमें हंसी का पात्र बना शर्मशार करता है जबकि यह भाव गलत हिन्दी बोलने पर नहीं होता.मुझे याद है मेरे एक मित्र का अंग्रेज़ी माध्यम के विद्यालय में बतौर शिक्षक साक्षात्कार था .शर्त यह थी कि सवालों के ज़वाब सिर्फ इंग्लिश भाषा में देने होंगे.पहला ही प्रश्न पूछा गया,”are you able to communicate in english.?उसने कहा,yes sir,little,little.”सभी हंस पड़े,वह मित्र भी जोर से हंसा.बोर्ड में से एक ने पूछा,why are you laughing?”उसने कहा ,”क्योंकि आप सब laugh रहे हो,अगर मैंने गलत बोला तो मुझे भाषा का सही प्रयोग सिखाइए.” खैर, उसकी बेबाकी और स्पष्टतावादिता की वज़ह से उसकी नियुक्ति हुई और वह आज धाराप्रवाह हिन्दी के साथ-साथ कुशलता से अंग्रेज़ी का भी प्रयोग करता है.

भाषा की शुद्धता के साथ उसका प्रचार-प्रसार आवश्यक है.एक महिला कहानीकार की कहानी में मुख्य पात्र के बाबा उर्दू भाषा के पंडित हैं और उसके उच्चारण की पवित्रता को खंडित नहीं होने देना चाहते.जब एक दिन यह खंडित हुई तो वे सदमे से मर जाते हैं.यह भाषा की शुद्धता के प्रति पूर्ण प्रतिबद्धता का संकेत है.
अब विचारणीय प्रश्न यह है कि हिन्दी भाषा के रक्त को हिन्दुस्तान की रुधिर वाहिनियों में निर्बाध रूप से प्रवाहित करने में हम क्या योगदान दे सकते हैं?क्या १४ सितम्बर को हिन्दी दिवस का आयोजन कर , महज़ एक दिन ही इसकी हिमायत कर ,हिन्दी पखवाडा का आयोजन कर ही इतिश्री कर लें या रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इसे ससम्मान शामिल हो जाने दें ?आज आवश्यकता पुरे सम्मान के साथ हिन्दी भाषा के प्रयोग की है . सुशिक्षित होने का मापदंड सिर्फ अंग्रेज़ी भाषा नहीं बल्कि सम्प्रेषण की कुशलता है जो किसी भी भाषा में संभव है तो फिर राजभाषा हिन्दी को भी इस उद्देश्य के लिए क्यों ना स्वीकार किया जाए?

1) इस सत्य से बिलकुल इनकार नहीं किया जा सकता कि विश्व में ज्ञान-विज्ञान की खोजों और उस पर आधारित पुस्तकें हिन्दी में नहीं बल्कि अंग्रेज़ी भाषा में लिखी जा रही हैं जिसने इस ज्ञान के बढ़ती दौड़ में पीछे ना रह जाने की विवशता के रूप में युवा वर्ग का रुझान अंग्रेज़ी की ओर मोड़ दिया है.विश्व में ज्ञान-विज्ञान से तारतम्य बिठाने के लिए हमें कहानी,लेख,कविता,नाटक इत्यादि को हिन्दी भाषा में लिखने के साथ खोजों और उससे सम्बंधित ज्ञान का लेखन भी हिन्दी भाषा में करना होगा.प्राचीन भारतीय भाषाओँ में लिखे सुश्रुत,चरक संहिता,अर्यभात्तीय जैसे ग्रन्थ अगर वर्त्तमान खोजों का आधार बन सकते हैं तो आज हिन्दी भाषा में भी यह संभव क्यों नहीं हो सकता?

2) उच्च शिक्षा में नियमित पाठ्यक्रम को हिन्दी माध्यम में भी उपलब्ध कराना होगा.अभी कुछ महीने पूर्व ही दैनिक जागरण समाचार पत्र में अनिल कुमार मीणा MBBS छात्र के विषय में खबर आयी थी उसने एम्स की प्रवेश परीक्षा में उत्तर हिन्दी भाषा में लिखे थे,होनहार था पर प्रवेश के कुछ महीनों बाद उसने फांसी लगा ली क्योंकि वह अंग्रेज़ी में कमज़ोर होने की वज़ह से अच्छा नहीं कर पा रहा था.अगर चयन में हिन्दी माध्यम स्वीकार्य है तो फिर आगे रेगुलर classes में क्यों नहीं है?जबकि आज कम्पुटर की सूचना क्रान्ति ने भी जन-जन में हिन्दी भाषा को लोकप्रिय कर दिया है.

3) अंग्रेज़ी माध्यमों के विद्यालय खुलने चाहिए पर वहां हिन्दी को उपेक्षित ना किया जाए.मेरी पुत्री के विद्यालय में प्रत्येक बुधवार को हिन्दी साप्ताहिक दिवस होता है.इस दिन विद्यालय में प्रार्थना सभा,प्रधानाचार्य संबोधन,पठन-पाठन सभी काम-काज में हिन्दी का प्रयोग किया जाता है.मैं वर्त्तमान परिदृश्य में विद्यार्थियों को हिन्दी भाषा से जोड़े रखने के लिए इसे अनूठी मिसाल मानती हूँ.

4) हिन्दी भाषा के साहित्य के प्रति बच्चों में रूचि जगाना भी आवश्यक है.वर्त्तमान भाग-दौड़ और शोर्ट कट की राह पर चलने वाले अधीर युवाओं को रोमन लिपि में अपने विचार लिखना जितना आसान लगता है उतना देवनागरी लिपि में नहीं.और अब तो एस एम् एस की अति संक्षिप्त भाषा सर चढ़ कर बोल रही है.(अपना ध्यान रखना इतनी बड़ी बात को जब रोमन लिपि के सिर्फ तीन लैटर कह सकते हैं “tkc “)तो युवा ज्यादा लिखने और बोलने की ज़हमत ही क्यों उठाये ? इस प्रवृति में भी सुधार लाना होगा .पर कैसे ?इसके लिए युवाओं को हिन्दी भाषा के अच्छे और रचनात्मक मंच की ज़रूरत है जहां वे विचारों की जलनिधि से मूल्यों के रत्न प्राप्त कर सकें.यहाँ मैं इस ‘जागरण मंच’ की सम्मानीय पहल को अवश्य बधाई देना चाहूंगी जिसने युवाओं को एक अनुपम मंच उपलब्ध कराया जहां वे हिन्दी भाषा में अपने उत्तम विचार रख रहे हैं.साथी ब्लोग्गेर्स के ब्लोग्स पढ़ कर उनके विचारों से अवगत होने के साथ-साथ नित्य कितनी शब्दावलियों का ज्ञानार्जन कर पा रहे हैं.

5) स्थानान्तरण के क्रम में मैंने एक बात अवश्य महसूस की कि अलग-अलग राज्यों के छोटे बड़े शहरों में भी स्थानीय निवासी उस क्षेत्र की भाषा के साथ अगर कोई दूसरी भाषा समझते और बोलते हैं तो वह सिर्फ और सिर्फ हिन्दी है. अलग-अलग भाषा को समझने के साथ मेरा पूरा प्रयास होता है कि मैं जन-जन को हिन्दी भाषा का महत्व और उसके प्रयोग से अवगत कराती जाऊं.

6)  हिन्दी दिवस मनाने की वज़ह ठीक वैसे ही है जैसे प्रत्येक दिन ईश्वर आराधना के बावजूद हम शिवरात्रि,जन्माष्टमी,हनुमान जयन्ती,रामनवमी आदि मनाते हैं ताकि उस एक दिन सार्वजनिक रूप से एक केन्द्रित भाव के साथ उस विशेष के प्रति सम्मान अवश्य प्रकट करें और इस में कोई बुराई इसलिए नहीं क्योंकि उस एक दिन हम और परिष्कृत ,ज्यादा परिमार्जित होने के संकल्प से भी भर उठते है.

आज भाषा के इस वैश्वीकरण में अंग्रेज़ी भाषा को गुलामी का प्रतीक मान इससे नफ़रत नहीं किया जा सकता है.ज़रूरत इसे हिन्दी भाषा की अनुजा के रूप में स्वीकार करने की है.भाषाएँ समयानुसार बदलती रहती हैं इसके प्रवाह को बांधा भी नहीं जा सकता.आज संस्कृत पालि जैसी प्राचीन भाषों का प्रयोग बोलचाल में बिलकुल नहीं होता है.इन सभी बातों का ध्यान रखते हुए हमें अपनी राजभाषा हिन्दी को गंगा की तरह विकसित करना होगा जो अपने प्रवाह के साथ अपनी निजता और चिरकालीन शाश्वता को कायम रखते हुए हर युग में इस पावन भूखंड को सिंचित कर इस धरती को शस्य श्यामला बनाती रहे.

हिंद,हिन्दी,हिन्दुस्तान के ऊपर
छा गया इस कदर इंगलिस्तान,
जिसने बनने ही नहीं दिया कभी
हिन्दी को हिन्दुस्तान की जान.
….
पिछले कई वर्षों से तो भारतीय
मना रहे हैं यह हिन्दी दिवस,
हिन्दी की अस्मिता का रोना
रो-रो बनाया इसे रुदन दिवस.
………
हिंद के माथे पर सजाओ हिन्दी
इस बिंदी से ही यह भूमि सधवा है ,

आज हिन्दी की ये कैसी विडम्बना
मिटा इसे किया हिंद को विधवा है.
………….
अरे ओ हिंद के भटके बाशिंदों !
अपने लहू को सर्द मत होने दो ,
पराई भाषा के खिदमतगारों !
हिन्दी की हरीतिमा ज़र्द मत होने दो
..

वर्चस्व कायम रखो हिन्दी का
अंग्रेज़ी को अनुजा बन आने दो ,

इकबाल के हिन्दी का परचम
अब संपूर्ण भारत में लहराने दो.

…………

(कुछ अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग ब्लॉग की ज़रूरत और प्रभाव के लिए किया गया है)

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