Menu
blogid : 9545 postid : 357

ज़िंदगी मोड़ पर गुज़री,मैं सो न सका

V2...Value and Vision
V2...Value and Vision
  • 259 Posts
  • 3039 Comments

मेरे प्रिय पाठकों/ब्लोगेर्स
यमुना का सप्रेम नमस्कार
महत्वपूर्ण दिवसों की श्रंखला में मैं अन्तराष्ट्रीय वृद्ध दिवस (1 october)के अवसर पर आप सब से रु-ब-रु हूँ.आज इस ब्लॉग के ज़रिये मैं आपको एक ऐसे बुजुर्ग से परिचित करने जा रही हूँ जो कोई चर्चित शख्शियत नहीं है फिर भी अनजाने में हुई उनसे एक छोटी सी मुलाकात ने मुझे खासा प्रभावित किया.यूँ भी मैं आम लोगों की सहज सोच और जीजिविषा से परिपूर्ण विचारों को जाने-माने शख्शियतों के अलंकृत विचारों से ज्यादा तवज्जो देती हूँ,उनके विचारों को आम ज़िंदगी में शामिल कर उन्हें स्वयं के लिए बेहद ख़ास मानती हूँ.

दोस्तों,आपको बता दूँ कि हर बच्चे की तरह मुझे भी बचपन से ही घूमने-फिरने का बहुत शौक रहा है .हाँ,अन्य बच्चों से मैं एक बात पर अंतर रखती थी. मुझे रेल यात्रा से अधिक सड़क यात्रा  और प्रत्येक बच्चों के खिड़की के नज़दीक बैठने की शगल से अलग मुझे चालक के पास वाली सीट भाती थी.इसकी एक खास वज़ह यह थी कि दौड़ते-भागते दृश्यों से भी ज्यादा मुझे वाहनों के पीछे लिखे सन्देश आकर्षित करते थे.आजकल ये सन्देश इक्का-दुक्का वाहनों में ही नज़र आते हैं. शायद यह सुरक्षा के दृष्टिकोण को रखकर लिया गया निर्णय हो क्योंकि पीछे के वाहन का चालक उस सन्देश को पढ़ने के मोह में पथ से विचलित हो कर दुर्घटना ना कर बैठे.पर मुझे लगता है कि कम से कम उस सन्देश को पढ़ने के लोभवश ही वाहन चालक अपने आगे की गाडी को overtake नहीं करता और दुर्घटनाएं कम होती.खैर………
बचपन की रोचक आदतें हमारी शेष ज़िंदगी में भी ज्यों की त्यों शामिल हो जाती हैं.वाहन के पीछे लिखे सन्देश के इस विलुप्त होते प्रचलन के बीच ही दो महीने पूर्व मुझे एक यात्रा के दौरान ट्रक के पीछे लिखा एक बहुत ही संजीदा सन्देश पढ़ने को मिला…

राहों पर दुःख लाख देखे,पर मैं रो न सका
ज़िंदगी मोड़ पर गुज़री,और मैं सो न सका

चूँकि पिछले दो वर्षों से उस राह पर महीने में एक बार जाना हो जाता था इसलिए मुझे यह अंदाज़ा लगाना आसान था कि ठीक आधे घंटे बाद एक चाय की दूकान पर यह ट्रक अवश्य रुकेगी.मेरा अंदाज़ा बिलकुल सही था. हम उस दूकान पर रुके, मेरी बेसब्र निगाहों ने चैन की सांस ली जब पुनः वही सन्देश दिखाई दिया.मैंने अपने पतिदेव से उस ट्रक के चालक से औपचारिक बात करने की आज्ञा ली.अमूमन मेरी ऐसी किसी भी खोज और भावनाओं से वे पूर्णतः वाकिफ होते हैं और इसका मान भी रखते हैं.उन्होंने सहमति में सर हिलाया और चाय की चुस्कियां लेने में व्यस्त हो गए.मैंने उन बुजुर्ग चालक (सरदारजी) की आँखों में कार्य के प्रति गौरव और संतुष्टि की तेज चमक देखी.मैंने उनका अभिवादन कर कहा,”भैया,आपके वाहन के पीछे लिखे सन्देश ने मुझे बेहद प्रभावित किया है,क्या ये शब्द आपके हैं?”उन्होंने कहा,”शब्द की भावनाएं और गाडी दोनों मेरी हैं,मैं पिछले कई दिनों से घर से बाहर हूँ.”फिर बेहद संजीदे लहजे में बात की,”मैडम हम ट्रक चालक भी किसी सभ्य की तरह रोटी कमाने के लिए घर से निकलते हैं,हमें भी अपने बच्चों और परिवार की बेहद फ़िक्र रहती है पर मुझे अत्यंत दुःख होता है जब छोटी गाड़ियों,दो पहिया वाहनों और कभी-कभी पैदल चलने वालों की असावधानी और सड़क नियमों की अवहेलना का खामियाजा हम बड़े वाहनों के चालकों को भुगतना पड़ता है.नियमबद्ध होने के बावजूद किसी भी दुर्घटना होने के बाद हमारे साथ मार-पीट की जाती है,हमारे वाहन जला दिए जाते है.और हमें एक घृणित टैग और लेबल दे दिया जाता है“पियक्कड़”.(मुझे यह सुन कर बेहद दुःख हुआ क्योंकि समाज के प्रति संवेदनशील होने की वज़ह से मैं कहीं भी और किसी भी व्यक्ति,समाज,कम्युनिटी को किसी विशेष तरह के नकारात्मक लेबेल या टैग देने की प्रवृति की सख्त विरोधी हूँ) मैं तो शराब भी नहीं पीता,राह में कई बार घायल को देख कर रो भी नहीं पाता. हाँ,अन्य वाहनों से दुर्घटनाग्रस्त ,सड़क पर पड़े घायलों को अगर देख पाता हूँ तो हॉस्पिटल पहुँचाने में मदद ज़रूर करता हूँ .ऐसे कई चालक मेरे साथ हैं जो मेरी बहुत मदद करते हैं.कुछ महीनों बाद मैं ट्रक चलाना छोड़कर स्थाई तौर पर गाँव में बस जाउंगा और मेरा भतीजा यह काम करेगा.उनकी बातों में आत्मगौरव के साथ घर परिवार से दूर रहने की पीड़ा,सड़क पर असमय काल के ग्रास बनने वालों के परिजनों की वेदना की प्रतिध्वनि सुनी जा सकती थी.उनके अंतिम शब्द ने जीवन को एक  सीख दे दी. “मैडम,सच कहूँ,हमारी ज़िंदगी मोड़ और सड़क पर ही व्यतीत हो जाती है.”पतिदेव की चाय खत्म हो चुकी थी और वे तनिक जल्दी में थे अतः मुझे अनिच्छा से बातचीत को विराम देना पडा.मैंने उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा,”भैया,मैंने स्वयं आप की कही बातों को पिछले कई यात्राओं में एहसास किया है.”

SDC14246शेष मार्ग तय करते वक्त दिल को छू लेने वाली उन दो पंक्तियों के सन्देश के हर लब्ज़ सरदार जी के कहे लब्जों के साथ मिश्रित होकर असरदार औषधि बन, मस्तिष्क की कई स्मृतियों को चलचित्र की भांति प्रस्तुत करने लगे……अलसुबह साईकिल पर कोयले की बड़ी-बड़ी बोरियों को ले जाते लोग जो कोयले के बोझ से कई बार असंतुलित हो जाते थे, तेज गति से बाइक चलाते युवा,सड़क यातायात को बाधित करते रेस लगाते मनचले,overtake करते माचिस की डिब्बी जैसी छोटी-छोटी गाड़ियां जो बारिश के बाद अचानक निकले पतंगों सी लहरा कर भागती थी, क्षमता से भी ज्यादा सवारियों को बिठाये वाहन(संलग्न चित्र में देखा जा सकता है) ….ऐसी कई स्मृतियों के बीच यात्राओं के दौरान 95%  स्थितियों में हमारी गाडी को आगे बढ़ने का इशारा देते नियम बद्ध ट्रक चालक मुझे तीव्रता से याद आये. इन स्मृतियों के बीच एक गहन चिंतन ने भी दस्तक दी .चूँकि सफ़र की वे राहें बेहद जानी पहचानी थी इसलिए कुछ नयेपन को पा लेने की आशा पर वह दस्तक भारी पडी.मैं सोच रही थी हम सब की ज़िंदगी का सफ़र भी तो ऐसे कई मोड़ों से गुज़रता है….करियर बनाने का मोड़,नौकरी पाने का,प्रोन्नति का,विवाह सूत्र में बंध गृहस्थी बसाने का मोड़,संतान प्राप्ति का;फिर उन संतानों की शिक्षा और करियर बनाने का मोड़ .हर मोड़ के बाद एक नए की प्रतीक्षा और फिर उसे हासिल करने के बाद भी चैन की नींद नहीं .ज़िंदगी यूँ ही चलती रहती है और हम जीवन की सांध्य बेला में कदम रख लेते हैं
.किसी ने सच ही कहा है-
ये दुनिया अजीब सरायेखानी देखी
हर चीज़ यहाँ की आनी-जानी देखी
जो आकर ना जाए वह बुढापा देखा
जो जाकर न आए वह जवानी देखी

पर एक बात गौरतलब है ; इन मोड़ों पर एक अहम् बात हमसे अनजाने ही छुट जाती है वह है अपने नात-रिश्तेदारों के साथ आत्मीय सम्बन्ध की निरंतरता, जिसकी परिणति जीवन की सांझ बेला में एकाकीपन के रूप में परिलक्षित होती है.आजकल संतान की संख्या एक या दो ही होती है वे भी अपने करियर ,नौकरी चाकरी के चक्रव्यूह में फंसे दूर बस जाते हैं,सहकर्मियों के भीड़ में से कुछ चेहरे ही रिटायर्ड होने के बाद खोज-खबर लेते हैं.इन सभी बातों के मद्देनज़र जीवन की सांध्य बेला के लिए कुछ बातें स्मरणीय हो सकती हैं:-

1) हमेशा सक्रिय रहना . प्रातःकालीन भ्रमण,हलके योगासन,अच्छी पुस्कें पढ़ना,किसी ज़रूरतमंद को यथासंभव मदद करना ,अपने आस-पड़ोस को स्वानुभव से लाभान्वित करना और अपनी उपयोगिता समाज में बनाए रखना आवश्यक है.सर्वाधिक ज़रूरी है ,अपने कार्य को संतुष्टि के साथ निभाना ताकि अच्छे स्वास्थय का लाभ सदैव मिलता रहे;ठीक उन बुजुर्ग चालक,सरदारजी की तरह.

2) अपने करियर की कामयाबी को पारिवारिक रिश्तों की मजबूत डोर पर कभी हावी ना होने देना.समय-समय पर इन संबंधों की जड़ों को
प्यार और स्नेह भरे मुलाकाती जल से सिंचित करते रहना ताकि जीवन की सांध्य बेला के एकाकीपन की तपिश में ये विशाल दरख्त हमें भरपूर साया दे सकें.

3) जो संस्थाएं पालना घर का (creche ) का सञ्चालन करती हैं वे ज़रूरतमंद बुजुर्गों को सलाह-मशवरा तथा दिशानिर्देशन विभाग में रख कर उनके अमूल्य अनुभवों का लाभ उठाने के साथ उन्हें आर्थिक मदद भी कर सकती हैं.

4)वैसे तो आजकल गाँव की चौपाल संस्कृति भी विलुप्तिकरण के कगार में है पर इसी तर्ज़ पर शहरों में चलने वाले बुजुर्ग क्लब की सदस्यता लेकर बुजुर्ग लाभान्वित हो सकते हैं.अपने जैसे कई अन्य लोगों के साथ उन्हें उमंग और उत्साह के संग जीवन जीने की प्रेरणा मिलेगी.

5)एकाकी रहने वाले बुजुर्गों को आस-पास से बहुत अच्छे सम्बन्ध बना कर रखने चाहिए,उनके किसी भी एक सदस्य से रोज़ मुलाकात अवश्य करनी चाहिए .कहीं भी बाहर जाने से पूर्व अच्छे पड़ोसियों को सूचना देनी चाहिए ताकि वे उनके प्रति और घर के प्रति सजग रहे.पड़ोसियों को भी “अकेले हम;अकेले तुम”के आधुनिक फलसफे के कोकून से बाहर निकल कर बुजुर्गों के साथ आत्मीय सम्बन्ध रखते हुए उनकी यथासंभव मदद करनी चाहिए.यह privacy में दखल नहीं बल्कि “मैं हूँ ना”का अटूट भरोसा विकसित करता है.

6) युवाओं तथा बच्चों को अपने घर,परिवार,समाज के बुजुर्गों के अच्छे अनुभव से लाभ लेने के लिए सदा तत्पर रहना चाहिए.जो शिक्षा हमें उनसे मिल सकती है वह कोई इन्टरनेट या सोसिअल नेट वोर्किंग sites नहीं दे सकती क्योंकि वे अनुभव उन्हें ज़िंदगी के सफ़र में न जाने कितने ठोकरों और अनुभवों के बाद मिले होते है.ज़रूरत है उन्हें सम्मान प्यार और महत्व देकर अपने जीवन में शामिल करने की ताकि हम वे गलतियां ना दोहराएं जो उन्होंने की और उनके द्वारा किये गए सारे अच्छे कार्य और भी परिष्कृत और परिमार्जित रूप में सम्पादित कर समाज को लाभ पहुंचाएं.

7) युवावस्था में ही उम्र के अंतिम पड़ाव के लिए आर्थिक सुरक्षा की योजना बना लेनी चाहिए ताकि किसी का मोहताज़ बन कर ना जीना पड़े.

८)सरकारी कर्मचारियों को बुजुर्गों के द्वारा उनकी जमा धनराशि निकालने के दौरान उन्हें यथोचित सहायता करनी चाहिए,सरकारी योजनाओं का लाभ उन बुजुर्गों तक पहुँचाने के क्रियान्वन की जांच परख समयांतराल में होती रहनी चाहिए.

9) आर्थिक दृष्टिकोण से सक्षम युवा और बुजुर्ग विपन्न तथ निर्धन वर्ग के बुजुर्गों की सहायता के लिए संगठन बना कर उन्हें स्वस्थ तथा सम्मानित जीवन देने की दिशा में अमूल्य योगदान दे सकते हैं.

10)युवाओं तथा बच्चों के अभिभावकों को एक महत्वपूर्ण शिक्षा अवश्य ही देनी चाहिए कि वे बिना शर्त (आर्थिक अपेक्षा) के अपने रिश्तों को मजबूत बनाएं.लोगों की मदद सिर्फ इस लिए करें कि ईश्वर की अनुकम्पा से उन्हें इतनी सामर्थ्य मिली है और वे सिर्फ एक माध्यम और निमित्त हैं.

इस प्रकार हम प्रत्येक दिन अपने सुन्दर और विवेकपूर्ण कदमों से अपने घर,परिवार,समाज के सम्मानित बुजुर्गों को यथोचित स्थान देने के साथ स्वयं के जीवन सांध्य को भी सुरक्षित और खुबसूरत बना सकते हैं.
अंत में इस दिवस पर चंद काव्यात्मक पंक्तियाँ…..

ना रहो युवाओं अमर जवानी के भ्रम में
क्यों कुदरत के नियम को झुठला रहे हो ?
किसके कन्धों का कहो तुम लोगे सहारा
जो आज जवानी के जोश में इठला रहे हो.
बुजुर्ग हैं अनुभवों की खान,साए दरख्त के
कथन यही सदियों से हर जुबां कह रही है

क्यूँ पारंपरिक लीक से भटक रहे हो युवाओं
सचेत करती हर बुजुर्ग की सदा पूछ रही है.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply