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एक कुरुक्षेत्र – प्रत्येक दिन

V2...Value and Vision
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1 )
तुमने कब क्या और कितना कहा
महत्वपूर्ण नहीं यह मेरे लिए
समझना चाहती हूँ बस
कहने के पीछे भाव क्या हैं
मापना चाहती हूँ गहराई
तुम्हारी अनकही संवेदनाओं की
बिखेरकर रख दो
शब्द चाहे जितने तुम
शोर में सन्नाटा बन
अभिव्यक्ति हो जाएगी गुम
महफ़िलें कितनी ही गूंजे
घुंघरूओं की आवाज़ से
मौन अश्क का ही
मुखर होता है ।
2)
एक कुरुक्षेत्र जन्म लेता है
प्रत्येक दिन हमारे भीतर
एक गीता रचनी ही होगी
हर रात अपने अंत:करण में ।
3)
ये राहें रोशन हैं
बहुत दूर तलक
ख्वाब इस कदर
झिलमिलाये हैं ।
सफ़रनामा…
दरख्तों का भी
परिन्दों का भी
दरख्तों का सफर
पाताल से आकाश
परिन्दों का सफर
ओर से छोर
सबके किस्से
अपने अपने
किसने क्या चुना
किसने क्या सहा ।

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