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“अकेली हूँ”यह शीर्षक पढ़कर कहीं आपका रुख मेरे प्रति सहानुभूतिपूर्ण तो नहीं हो गया?वैसे ये अक्सर होता है कि अकेलेपन को हम बेचारगी से जोड़ लेते हैं.पर इस अकेलेपन की सही परिभाषा क्या है?कभी-कभी तो इंसान भीड़ में भी बिलकुल तनहा होता है और कभी-कभी तन्हाई में भी विचारों,यादों का इतना शोर कि तन्हाई का वजूद ही ख़त्म हो जाता है.कल ही एक ब्लॉग पढ़ा”काश मैं अकेली होती” इसे पढ़कर मुझे ऐसा लगा कि ये दुआ कभी कोई ना मांगे.परिवार,मित्र,रिश्तेदार हमारी आवश्यकता हैं क्योंकि हम एक सामाजिक प्राणी हैं.कुछ महीने पहले आप सब ने एक समाचार बार-बार सुना था कि पिता की मृत्यु के बाद दो बहनों ने किस तरह महीनों स्वयं को घर के भीतर ही कैद कर रखा था अंततः एक की मृत्यु हो गयी और दूसरी हॉस्पिटल में ज़िन्दगी और मौत से जंग लड़ रही थी.वे दोनों ही सुशिक्षित थीं पर अवसाद ने उन्हें इस कदर घेरा कि वे उससे उबर ही नहीं सकीं.
मेरा मानना है कि अगर दुर्भाग्यवश अकेलेपन का सामना भी करना पड़े तो उसे सज़ा समझकर जीवन को बोझिल ना बनाएं आज इस आधुनिक परिवर्तित परिवेश में बुजुर्गों को इस स्थिति का सर्वाधिक सामना करना पड़ रहा है इसके अतिरिक्त विवाह में विलम्ब,जीवन साथी की असमय मृत्यु,माता-पिता का कामकाजी होना ,इन कारणों से भी अकेलेपन का एहसास होना लाजिमी है .
आज मैं इस एक कविता के माध्यम से आप को अकेलेपन को शक्ति में बदलने का सन्देश दे रही हूँ
अकेलेपन के गहन सन्नाटे में,स्वयं को पा लेने का उल्लास है
सच है शान्ति और एकाकीपन में, गिनी जाती एक-एक सांस है …………………..
ज़मीं के भीतर का बीज ,रवि की रश्मि से कितना भी वंचित है
पर संभावना एक विशाल तरु की,रखी उसने अवश्य ही संचित है ………………………
अपने एकाकीपन को बनाएं हम,एक उपयोगी और सरस क्षण
वश में सब हमारे ही तो है,भर लें जब सुविचारों से यह मन ………………………….
मन का दीप आलोकित कर, एकाकीपन की क्यों न तम हर लें
हर पल नयी ऊर्जा से भर,जग मुट्ठी में आज क्यों न हम कर लें ……………………..
औरों का अनुपस्थित होना,सम्पूर्णता से अपनी उपस्थिति है
पुरे विश्व के खालीपन को भर दे,एकाकीपन में इतनी शक्ति है ……………………………..
स्वयं के एकाकीपन में ही हम,जग का दामन भर सकते हैं
सब को प्रेरित जो कर जाए,कृति ऐसी नवीन रच सकते हैं ………………………….
आओ ,सोचें,खोजें और हों रु-ब-रु,अपने खोये हुए व्यक्तित्व से
शौक जो दफ़न पड़े हैं जगाकर,भर दें जग अपने अस्तित्व से …………………..
साहित्य की वो सर्वोत्तम कृति,अकेलेपन में ही रची गयी थी
शिल्पकार की अनुपम मूर्ति,कहीं एकांत में ही गढ़ी गयी थी
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मत हो मायूस और यूँ उदास ,क्या आये नहीं थे जग में अकेले ????
कौन देता है यहाँ साथ उम्र भर का,बस कुछ दिनों के हैं ये मेले….. ………………………………..
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