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1)
….इज़ नो मोर
…इज़ नो मोर
क्या है अर्थ इसका
एक औपचारिक घोषणा
अस्तित्व हीन होने की ।
जबकि सच तो यह है कि
हम रोज ही मरते हैं
थोड़ा थोड़ा … किश्तों मेें
अपनी टिकठी बनाते हैं
अपने जनाजे उठाते हैं
अकेले …. तनहाई मेें
खुद पर ही आंसू बहाते हैं
और अगले ही पल
तैयार हो जाते हैं
नई जिंदगी के लिए
एक बार फिर
मौत की साक्षी बनने को
चलता रहता है सिलसिला
जब तक कि क्लाइमेक्स
न आ जाए
…इज़ नो मोर की
टैग लाईन के साथ ।
2)
तलाश
हर जवाब अधूरा है
क्योंकि
हर सवाल अधूरा है
इसलिए
तलाश सम्पूर्णता की
अब तक जारी है ।
3)
चाय का कप और अखबार के पेज
रिश्ता
सुबह की चाय
और
अखबार के पेज
के बीच
कम्बख्त….
समझ ही नहीं आता
चाय की चुस्की ने
खबर को सुडक लिया
या…
खबर के गर्म मिज़ाज़ ने
चाय की कड़क बढ़ा दी
जिस भयावह हक़ीक़त को
रात स्वप्न का कफ़न था दिया
मुई चाय और अख़बार ने
सुबह उसे जीवन सा दिया
ये एक कप चाय
और
अखबार के कुछ पेज
दस्तक क्यों देते है
रोज़ सुबह के दरवाज़े पर ??
4)
लेखन … डायरी से डिजिटल तक
लेखन
सुबह की चाय
और अखबार की मानिंद
फकत तलब की बात नहीें
यह तो जज्बाती ऐलान है
जैसे …
सूरज मेें किरण
सांस मेें जीवन
फूल मेें सुगंध
दिल मेें धड़कन ।
5)
साम्य
लेखक
लिखता है
या
दीपक
सा
जलता है
लिखने और जलने मेें
एक ही साम्य है
दोनों मिट जाते हैं
अंततः
अंधकार डटा रहता है ।
यमुना
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