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सूरज ने तोड़ा दम तो निकला चाँद
मिटी गम भरी सिसकी तो निकली हंसी
रात ने ली विदाई तो हंसी किरण
ग़मज़दा हुआ मन तो निकले आंसू
आज भी ठीक उन्ही दिनों की तरह
उठती रही लहर
केंद्र से कगार तक
एक ..दो..तीन…..जाने कितनी बार
उठती,गिरती,बिखरती…
चलता रहा क्रम
इस क्रम में ऐसा क्या था
जो मुझे जोड़ रहा था
तोड़ रहा था…..
उन लहरों के साथ
बिखरती रही मैं भी
सोचती रही …
लहरें आती हैं ..जाती हैं
ये वही लहर है या हर वक्त
कोई नई लहर आकर
मिटा जाती हैं ..
अपने पहले आई लहर के निशाँ
ठीक जन्म -मृत्यु के खेल के मानिंद
हर बार उलझ जाती हूँ मैं
इस रहस्य में ..
जब-जब मेरा कोई अपना
बहुत अपना
मेरा साथ छोड़ता है
हमेशा हमेशा के लिए
उस दुनिया में जाने के लिए
जहां से कभी कोई भी
आता नहीं लौटकर .
क्या है ये जीवन ???
दो नदियों का संगम
या फिर
क्षितिज का एहसास…?
वो मन कहाँ से लाऊं !!!!
जो जीवन की मिठास चूम सके
मधुर रस में भी झूम सके
मदहोश हो कर नाच सके
रोकर भी मुस्करा सके
कैसे जीत हासिल करूँ
अपने सारे दुःख,विषाद
वेदनाओं पर
सुना है ..
वक्त हर प्रश्न का ज़वाब है…
वक्त हर मर्ज़ की दवा है …
इंतजार है उसी वक्त का
जिसके आँचल में छुप मैं
जी भर रो सकूँ
ताकि फिर से दे सकूँ ज़माने को
खुशियों की सौगात
आत्मविश्वास की लौ
बह सकूँ निर्बाध….
प्रवाहमयी यमुना बन
सदा की भांति.
मेरे अज़ीज़ साथियों
इस ब्लॉग को मैंने बहुत ही भारी मन से लिखा है.
father ‘s day पर जब ब्लॉग लिख रही थी तो मुझे कुछ अजीब सा एहसास हो रहा था .२२ जुलाई को ही मेरे पिता अब नहीं रहे.मैं कुछ दिनों बाद ही मंच पर उपस्थित हो पाउंगी.गत वर्ष इसी अवसर (father ‘s day )पर लिखे मेरे ब्लॉग ‘आसमान थोडा और ऊपर उठ जाओ’ को आप सभी ने सराहा था.
>चिट्ठी ना कोई सन्देश जाने वो कौन सा देश
जहां तुम चले गए
आप सभी का आभार
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