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मेरे प्यारे ब्लॉगर साथियों
यमुना का प्यार भरा नमस्कार
आज ना तो कोई राष्ट्रीय पर्व है ना किसी महान नेता की जयन्ती….. फिर भी मैं एक बहुत ही ज़रूरी ब्लॉग पोस्ट कर रही हूँ.देश भक्ति के गीत में सर्वश्रेष्ठ और सबको पसंद आने वाला कोई गीत है तो वह है “ऐ मेरे वतन के लोगों’मुझे अपने सबसे पसंदीदा अखबार ‘दैनिक जागरण’के सप्तरंग पृष्ठ पर २६ जनवरी २०१२ को प्रकाशित नई जानकारी के साथ एक बहुत ही सुन्दर आलेख मिला थाजिसे रतन जी ने बताया था. आज आप सब को पढने के लिए उपलब्ध कर रही हूँ.
गीत’ऐ मेरे वतन के लोगों के रचनाकार थे कवि प्रदीप,जिनका असली नाम था कवि रामचंद्र द्विवेदी.उन्होंने कई फिल्मों में’आज हिमालय की छोटी से फिर हमने ललकारा है ,दूर हटो ऐ दुनिया वालों,हम लाये हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के,आओ बच्चों तुम्हे दिखाएँ ,दे दी हमें आज़ादी बिना..,आदि गीतों के ज़रिये कवि प्रदीप जन मानस में लोकप्रिय हो गए थे.फिर उन्होंने एक बात कहनी है हमको देश के पहरेदारों से संभल के रहना अपने घर में छिपे गद्दारों से …गीत लिखा तो नेहरू जी के मुंह से निकल पड़ा,”क्या फिल्मों में इतने अच्छे गीत भी होते हैं ?
कवि प्रदीप ने हर तरह के गीत लिखे और उनके गीतों की सराहना हुई.’ऐ मेरे वतन के लोगों’ सुनकर नेहरू जी की आँख में आंसू छलक आये थे.हुआ यह कि १९६२ में चीन के हाथों हारने के बाद पूरे देश के लोगों में नए सिरे से जोश भरने का प्रयास हर स्तर पर किया जा रहा था.२६ जनवरी १९६३ को दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में एक कार्यक्रम होना तय हुआ.फिल्मों के लोग भी जुड़े और एक कमेटी बनी.महबूब खान उसके अध्यक्ष बने और दिलीप कुमार सचिव.कवि प्रदीप से एक गीत लिखने को कहा गया .वे टालते रहे और बचते रहे.उन्ही दिनों शकील बदायुनी ने फ़िल्म ‘लीडर ‘के लिए गीत लिखा था जिसे खूब पसंद किया गया’अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं .इसकी धुन नौशाद ने बनाई थी और इसे गाया था मोहम्मद रफ़ी ने.प्रदीप जी को लगा कि इतने खूबसूरत गीत के बाद इससे बेहतर गीत लिखना आसान नहीं होगा,इसलिए गीत लिखने के आग्रह को वे बार-बार टालते रहे.फिर एक दिन महबूब खान ने उनसे आग्रह किया.प्रदीप जी बोले,”कुछ सूझ ही नहीं रहा है .बहादुरी और शौर्य जताने वाले गीत लिखने का कोई मतलब नहीं…महबूब खान बोले ,”कुछ करिये पंडित जी.कुछ सोचिये और जल्दी…
एक दिन माहिम की सड़क पर घूमते हुए प्रदीप जी के दिमाग में एक लाइन कौंधी,”जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी..इस पंक्ति को वे भूल ना जाय यह सोचकर सामने की पान की दूकान में गए चारमीनार सिगरेट का पैकेट खरीदा सिगरेट जेब में डाली और डिब्बी के पीछे लाइन लिख ली.संगीतकार सी रामचंद्र को सुनाई तो वे उछल पड़े.उन्होंने कहा,इसे फ़टाफ़ट पूरा कर दो..प्रदीप जी ने उनसे कहा,गीत तो मैं लिख दूंगा पर इसे जाहिर मत होने दीजियेगा ,नहीं तो रातों रात शहीदों पर कोई भी गीत लिख देगा.
अब समस्या यह थी कि गीत गाये कौन?’लीडर का गीत गाने के बाद रफ़ी जी इस तरह के गीत गाने को तैयार नहीं हुए.रामचंद्र जी ब्लोए ,”चलो आशा से गवा लेते हैं.”फिर उन्हें लगा अगर लता इसे गातीं तो बहुत अच्छा था पर उन दिनों लता और सी रामचंद्रन में कुछ अनबन थी.कुछ लोगों ने लाता को मनाने का काम प्रदीप जी को सौंपा लाता जी उनकी काफी इज़ज़त करती थी.उन्होंने कहा,”लता,तुम भी कलाकार हो और अन्ना(सी रामचंद्रन) भी कलाकार हैं.कलाकारों में कैसी अनबन..वे आज भी तुम्हारी तारीफ़ करते हैं.”लता जी मान गईं पर रामचंद्र जी पशोपेश में हुए क्योंकि वे आशाजीको बोल चुके थे.
जैसी आशंका थी इंडस्ट्री और मीडिया के लोगों को इस गीत की भनक लग गई.प्रदीप जी के पास दिलीप कुमार का फोन आया,”सोवेनियर छाप रहा है उसके लिए गीत की दो लाइन चाहिए.उन्होंने गीत का मुखड़ा बदला और ‘ऐ मेरे वतन के लोगों,तुम खूब लगा लो नारा,यह शुभ दिन है हम सबका लहरा लो तिरंगा प्यारा…’लिखकर सी रामचंद्रन को सोवेनियर में छपने के लिए भिजवा दिया.लोगों ने सूना तो कहा अरे यह तो २६ जनवरी का गाना है.लता से भी उन्होंने आग्रह किया कि वे किसी परिचित को ना बताएँ कि वे क्या गाने जा रही हैं.लता जी पशोपेश में थीं कि कहीं ये उदासी वाला गीत गाकर वे मज़ाक की पात्र ना बन जाएं.गीत उन्हें दिली में २६ जनवरी को गाना था.
प्रदीप जी को भी आशंका थी कि धूम-धड़ाके वाले गीत के बाद कहीं ये गीत असरहीन ना हो जाए .सी रामचंद्रन ने उपाय सोच लिया उन्होंने लता के गाना शुरू करने से आधा मिनट पहले आधा मिनट संगीत बजवाया.इस संगीत ने लोगों के दिमाग से पिछले गीत की यादें मिटा दी .तब लता ने गाना शुरू किया,ऐ मेरे वतन के लोगों,तुम खूब लगा लो नारा …’इस बोल तक पहुंचते-पहुंचते वहाँ एकदम सन्नाटा छ गया पंडित नेहरू जी के साथ राष्ट्रपति डॉक्टर राधाकृष्णन के साथ सेना के बड़े अफसर भी थे.सभी गीत सुनकर द्रवित हो गए और उनकी आँखों से आंसू निकल पड़े.देश भक्ति वाले हर गीत के अंत में ‘जय हिन्द’ का नारा देने का चलन है.प्रदीप जी ने जय हिन्द के साथ’जय हिन्द की सेना ‘जोड़ दिया सेना तो लड़ी ही थी.जय उसी की होनी चाहिए थी.गीत ख़त्म होते ही पंडित जी लताजी के पास गए बोले,”तुमने मुझे रूला दिया….फिर पलट कर उन्होंने पूछा,”गीत किसने लिखा है?”ज़वाब मिला,”वे तो यहाँ नहीं हैं .”खैर बाद में मुम्बई जाकर नेहरू जी प्रदीप जी से मिले और उन्हें सराहा..आभार प्रकट किया.
(मैं ज़रूरी और रोचक आलेख अपने फ़ाइल में संग्रह कर लेती हूँ हिंदी भाषा के समाचार पत्रों में ‘दैनिक जागरण ‘और अंग्रेज़ी भाषा के समाचार पत्र में मुझे Times Of India पसंद है.वादा यह कि आप के साथ समय समय पर ऐसे सुन्दर ज्ञानवर्धक और रोचक आलेख साझा करती रहूंगी.इस ब्लॉग के लिए अपने पसंदीदा सम्मानित अखबार की तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ.)
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