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जागरण मंच के सम्मानीय सम्पादक महोदय,पाठकों /लेखकों आप सभी को यमुना का प्यार भरा सलाम,नमस्कार,
दैनिक अखबार मेरा प्यारा अखबार है.मैंने पहले भी इस के माध्यम से कुछ-कुछ लिखा है .एक दिन जब ‘जोश’अंक में मेरे अनुभव छप कर आये तो मैंने उत्सुकता से ‘आपकी आवाज़ आपका ब्लॉग’ column भी देखना शुरू किया और एक दिन .’मेरी कहानी;मेरा जागरण’ के लिए मेल करने के बाद टाइप किया ‘जागरण junction ‘ और साईट खुलने के बाद सर्वप्रथम नज़र गयी ‘बेस्ट ब्लॉगर’पर ;उस स्थान पर अल्काजी की तस्वीर थी क्लीक किया और बस एक-एक कर उनकी ही रचनाओं की गंगा में स्नान करती रही.कुछ दिनों बाद ragister हुई और पहला ब्लॉग ‘मूक पुकार’ feature हुआ तो बहुत अच्छा लगा.कुछ दिनों बाद अल्काजी के तरफ से एक भावपूर्ण मेल प्राप्त हुआ. आशा जगी .फिर एक दिन निशाजी की रचना पढी और एक-एक कर कई अच्छे लेखकों और उनके लेखन से परिचित हुई .ऐसा महसूस हुआ ———–“यही वह मंच है जहां से मैं अपनों के बीच बहुत कुछ सीख सकती हूँ .ऐसा प्रतीत हुआ मानो बरसों की तपस्या सार्थक हो गयी.”
अब मैं प्रत्येक दिन मंच के लेखकों की रचनाएँ (प्रारम्भिक भी)पढ़ती हूँ .
बचपन में मैं पेन फ्रेंड की अवधारणा से बहुत प्रभावित थी इस मंच पर वे यादें भी ताज़ा हो गयीं. माँ बचपन में जब कलम -कागज़ पकडे मुझे देखती तो कहती,”थोड़ा बुनाई-सिलाई भी सीखो”पिता इस बात का विरोध करते और कहते“ये सब इसे बाज़ार में मिल जाएगा;पर जो यह लिख रही है वह इसकी सृजनात्मक क्षमता है ;लिखने दो इसे” पिताजी ने भी पहला ब्लॉग पढ़ा था .फ़ोन पर पूछा,”क्या तुम्हे याद है कि वह कौन सी पहली चार पंक्तियाँ थीं; जिसे सुनकर तुम ने कविता लिखने की जिद की थी?”मैंने कहा अच्छी तरह याद है.दोस्तों वह पंक्ति पापा ने कुछ यूँ गुनगुनायी थी…………….
“प्यारा लगता गीत शाम का ‘प्यारी ठुमरी रात की
ग़ज़ल चांदनी बीच रुबाई ,प्यारी लगे प्रभात की”
पिताजी मुझे कवि सम्मेलनों,मुशायरों में भी अपने साथ ले जाते थे.आज इस मंच ने उन सभी यादों को मानो पंख दे दिए.
मुझे यह सम्मानीय मंच क्यों पसंद है?————
१–यहाँ लेखकों से प्रत्यक्षः रु-ब-रु हुए बिना ही सिर्फ उनके विचारों से उनसे एक रिश्ता सा बनने लगा है.प्रत्येक की विशिष्ट शैली ही उनकी पहचान बन गयी है.
२–यह मंच मुझे पहले से ज्यादा सजग,संवेदनशील और विचारवान बनाने में प्रतिदिन मदद कर रहा है.अब मैं हर व्यक्ति,स्थिति ,घटना में रचनात्मकता खोजती हूँ.इस क्रम में घरेलु कार्य भी कब खत्म हो जाते हैं एहसास ही नहीं होता.
३–इस मंच की शालीनता,मर्यादित व्यवहार और वातावरण,इसे “different from the crowd “बनाते हैं.
४–समय-समय पर आयोजित प्रतियोगिताओं ने नए-नए विषयों पर लेखनी का प्रयोग कर विचारों को पंख दिए और अनोखी प्रतिभाओं से भी परिचय करवाया अपनी त्रुटि तथा कमियों को समझने का भी अवसर मिला.
५–इंसान रोज सीखता है ,शारीरिक विकास भले रुक जाए पर मानसिक विकास जारी रहता है ;जागरण मंच ने इसी विकास को नया आयाम दिया है क्योंकि लेखन की पहली शर्त ही विचारशीलता और संवेदनशीलता है
अब बात करती हूँ सुझावों की —————–
इस मंच के सम्मानीय टीम ने इसे अनुपम बनाने की दिशा में नित्य नए प्रयोग किये हैं जो सराहनीय हैं मुझे यह मंच इस मौलिक रूप में भी अत्यंत पसंद है फिर भी मेरे कुछ् अत्यल्प सुझाव हैं–
१–अखबार में प्रकाशित होने वाले ब्लॉग कुछ चुनींदा ब्लॉगर तक ही सीमित रह जाते हैं ऐसे में अनुमान लगाना कठिन होता है कि जिनके ब्लॉग प्रकाशित नहीं हो रहे वह किस त्रुटि की वजह से वंचित हैं ?क्या feature ब्लॉग के कुछ अंश हार्ड कॉपी के रूप में अखबार में प्रकाशित हो सकते हैं?दरअसल यह मैं उन clippings को अपने फाइल में संजोने के व्यक्तिगत रुझान से प्रेरित हो कर निवेदन कर रही हूँ.
२–कभी-कभी दिवस विशेष पर भी हर विधाओं की रचनाओं की प्रतियोगिता आयोजित करने की कृपा करें मसलन रक्तदान दिवस,संगीत दिवस, इत्यादि.वै से मैंने कुछ पुराने लेखन को पढने के बाद यह पाया है कि कई दिवसों के अवसर पर लेख आमंत्रित थे.
३– मेरे ब्लॉग चूँकि गंगा-जमुनी संगम से जुड़े होते हैं इसलिए कविता को भी प्रतियोगिता में शामिल करने का निवेदन करती हूँ.
शेष सारी बातें बेहद प्रसंशनीय हैं. इस अनुपम मंच की मैं तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ. इस विषय पर भी कविता लिखने का लोभ कैसे संवरण करूँ ? अब बारी इस मंच से जुड़े मेरे अनुभव और यादों की .
अपनी भावनाओं को कविता के पंख देना शायद मेरा जुनून बन गया है .इस मंच ने इसे स्वीकार किया तो पंखों को उड़ान मिलने लगी.
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पावन गंगा सदियों पूर्व ही आई
धरा पर भागीरथ के प्रयास से
इस यमुना के भागीरथ तुम हो
अलग बात कि आई अनायास से
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शब्दों की बूंदें तो भरी पडी थीं
जाने कब से विचार धाराओं में
तुम बिन तो ये शुष्क हो जाती
बिन बहे इस मंच के प्रवाहों में
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यूँ तो हुए हैं कुछ थोड़े लम्हे ही
मंच पर यमुना को आये हुए
लम्हों के रिश्ते हो गए अब
जैसे सदियों से हैं ये भाये हुए
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किसी शिल्पकार के मानिंद ही तो
मंच ने हर लेखक को तराशा है
राह के पत्थर से ही रह जाते वह
संभावना भी जिनमें बेतहाशा है
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जन मंच,सम्मानित मंच, तेरी
शालीनता ही हमें भा जाती है
कितना भी रोकूँ इस प्रवाह को
कविता बन यह यहाँ आ जाती है
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क्या सीखा;क्या पाया मैंने, कहो
इतनी जल्दी भी कैसे कह जाऊं?
सीखने का क्रम तो अनवरत है
इस मंच से दूर कैसे रह पाऊं ?
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ओ !भागीरथ मेरे, सुन जाओ
ताउम्र शुक्रगुज़ार है ये यमुना
तुमने सीखा दिया विचारों से
जन-जन को सिंचित है करना
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धन्यवाद है सभी प्रबुद्ध जनों को
जिन्होंने इसे सराहा और तराशा
प्रतिक्रियाओं की अमृत वर्षा कर
बढाई लेखनी की जीवन प्रत्याशा .
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मीठी-मीठी यादें ही इसकी तो
मेरे ज़ेहन में पेवस्त हो गयी
सबके विचारों के असर से ही
कायनात है मदमस्त हो गयी .
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जागरण की ये जागृति मशाल
जन-जन में यूँ ही जलती जाए
यमुना सरीखी और कई दरिया
इस वृहद् सागर में मिलती जाए .
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