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1 )काश वह अनपढ़ होती !!!!
अरे ।यह क्या महिला दिवस पर यह कैसी आह ???
यह आह अनुपमा के लिए है । और यह उसकी सखी ने की है ।
लगभग हर किसी ने एक ही वाक्य से आहत किया था अनुपमा को ….
” पढी लिखी हो …पढे लिखे जैसे व्यवहार करो ।”
छी : …..
इसी एक वाक्य ने जिंदगी भर अनुपमा को कृत्रिम जिंदगी जीने को मजबूर कर दिया ।
कुछ लम्हे तो वो ठहरे । ठहराव भी कैसा !!!
झील जैसा ??? जिस पर एक छोटा कंकड ही पड जाए तो शांति खत्म । तरंगे उठने लगती है । एक …दो…तीन।
न न ….
ठहराव तो ग्लेशियर सा चाहिए ।
धत …कर दिया न अनपढ़ वाली बात ।ग्लेशियर तो पिघलता है ।
अनुपमा से पूछो ।
अक्सर कहती है …. दीदी मैं अनपढ़ बनना चाहती हूं ।ग्लेशियर सा ठहराव चाहती हूँ । धीरे धीरे अपनी वास्तविकता में पिघलना चाहती हूँ ।
सखी ठीक सोचती है ।
” काश वह अनपढ़ होती
अपने प्रवाह में पिघलती ।”
2 ) ट्रॉफी नहीं है काफी
“हटो हटो ” भीड़ को चीरता वह शख्श चिल्लाता हुआ केंद्र में पहुँच जाना कहता था .किसी ने उसे फ़ोन कर घटना स्थल पर बुलाया था .भीड़ के केंद्र में एक सोलह वर्ष का लड़का मृत पड़ा था …सर से खून बह चूका था ..बाइक दूर छिटकी थी .यह तो उसी का बेटा है .अभी दो घंटे पूर्व ही तो उसके पुत्र ने फोन कर बताया था कि सड़क सुरक्षा पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में उसे प्रथम पुरस्कार के रूप में ट्रॉफी मिली है. शख्श की आँखों से अश्रुधारा रूक नहीं रही ….शव को पोस्टमार्टम के लिए उठाया जा रहा था ….उसे घर पर रखा हेलमेट याद आया …उसे बेटे के इसी जन्म दिवस पर किये गए बाइक की ज़िद को मान लेने का भी पछतावा है….
3) ऊंची सोच
तिल का ताड़ बनाने की आदत है लोगों को …शिकायती अंदाज में कहा उसने ।
” बड़ा सोचो …सोच ऊंची रखो ” यही तो हमने सीखा और सीखाया है ।
आज सचमुच बहुत बेफिक्री थी मेरे जवाब के अंदाज में ।
4) खून
उस नौजवान ने दो साथियों का खून किया था.भीड़ एकत्र हो गई थी..”अरे यह तो राजू है …बचपन में बड़ी से बड़ी चोट लगने पर भी रोता चिल्लाता तक नहीं था …पर छोटी से छोटी चोट में अगर हल्का सा भी खून रिसता दिख जाए तो जोर जोर से रोने लगता था….डरते डरते ही सही पर कई बार रक्त दान भी किया था “.भीड़ में से एक बुजुर्ग ने आश्चर्य से कहा ….
” सही है चचा ,पर १६ दिसंबर की घटना के बाद ही इसने कसम खाई थी कि अब किसी लड़की को निर्भया ना बनने देगा ….और आज तो उसकी सगी बहन की इज़्ज़त की बात थी .”
वहीं पास में खड़े साथी ने कहा .
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