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गुण,मात्रा या फिर दोनों ??

V2...Value and Vision
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प्रिय पाठकों
अगर हम सभी को मात्रा या गुण में से किसी एक का चयन करना हो तो हम में से अधिकाँश गुण का ही चुनाव करेंगे.11july विश्व जनसँख्या दिवस के अवसर पर मैं जनसँख्या के गुणात्मक और मात्रात्मक पहलू पर ध्यानाकर्षित करना चाहती हूँ.जनसँख्या के दोनों पहलू ज़रूरी हैं पर यह देश की आर्थिक संरचना पर निर्भर करता है.इसे हम the theory of demographic transition के द्वारा समझ सकते हैं.यह सिद्धांत पश्चिम के औद्योगिक देशों के वास्तविक अनुभवों पर आधारित है.
जनसंख्या की प्रथम अवस्था –जब कोई देश पिछड़ा और अल्पविकसित होता है,कृषि मुख्य व्यवसाय होते हैं,उद्योग धंधे विकसित नहीं होते,व्यापार अल्पविकसित होता है,ऐसी स्थिति में जन्म दर और मृत्यु दर दोनों ही ऊंची होती है.समाज में प्रचलित रीति-रिवाजों तथा मान्यताओं के वशीभूत लोग बच्चों की संख्या कोअधिकाधिक बढ़ाना चाहते हैं.मसलन ‘जितने मुंह उतने हाथ’ जैसी सोच,वंश परम्परा तथा धार्मिक संस्कारों में पुत्र संतान का महत्व,चिकित्सा सुविधा के अविकसित होने के कारण बच्चों की जीवन प्रत्याशा के प्रति नकारात्मक सोच जैसी धारणाएं जन्म दर ऊंचा रखते हैं वहीं पिछड़ेपन तथा अल्पविकस के कारण घटिया किस्म का अल्प आहार,कुपोषण,भुखमरी ,अल्पविकसित सफाई व्यवस्था,मेडिकल सुविधाओं का अभाव,मानवीय जीवन की क्षति कर मृत्यु दर को भी ऊंचा रखता है.ऐसे देशों में जनसंख्या नियंत्रण या परिवार नियोजन जैसी सोच बेमानी है. अफ्रीका के कई देश इस श्रेणी में आते हैं.
दूसरी अवस्था –इस अवस्था में देश आर्थिक दृष्टि से विकसित हो रहा होता है,खाद्यान्नों की नियमित उपलब्धि,चिकित्सा सुविधाओं के प्रसार तथा जीवन रक्षक दवाईयों की उपलब्धि से बीमारियों महामारियों पर नियंत्रण,स्वास्थ्य चेतना,शिक्षा के प्रसार से मृत्यु दर तो एक हद तक निम्न हो जाती है पर ग्रामीण अंचलों तथा जिन क्षेत्रों में शिक्षा का प्रसार पूर्णतः नहीं हो पाता वहां सामाजिक मान्यताएं ,रीति-रिवाज़ को बदलने में पर्याप्त वक्त लग जाता है अतः जन्म दर ऊंची ही रहती है जो जनसंख्या वृद्धि दर को बढ़ा देती है.कभी-कभी तो जनसंख्या विस्फोट (population explosion)की समस्या का भी सामना करना पड़ जाता है.जन संख्या का एक वर्ग हताशा और अभाव में जीने को अभिशप्त हो जाता है.यह समस्या भारत और चीन जैसे देशों में दृष्टि गोचर होने की वजह से इन देशों में परिवार नियोजन तथा जनसँख्या नियंत्रण की सर्वाधिक ज़रुरत महसूस की गई .चीन ने एकल संतान की नीति को सख्ती से पालन किया और अब वहां की जनसंख्या स्थिर है हाल ही में वहां इस नीति को हटाने की मांग प्रबल हो गई है.भारत में शिक्षित वर्ग में एकल या दो संतान तक सीमित होने की भावना दीखती है पर अशिक्षित वर्ग आज भी इस सिद्धांत को मानने को राजी नहीं है.साथ ही कुछेक धर्मं में परिवार नियोजन के कृत्रिम संसाधनों को अपनाना धर्मं विरुद्ध मन जाता है तो कुछ धर्म अपने समुदाय की संख्या बढाने पर जोर देते हैं .हालांकि जनसँख्या का अधिक होना किसी देश या धर्मं समुदाय की शक्ति का द्योतक नहीं है .आज वही देश शक्ति सम्पन्न है जिसके पास संसाधन के साथ गुणात्मक जनसँख्या शक्ति है.वैज्ञानिक प्रगति ने मशीन को जन्म दिया ,इंसान सोचता है ,मशीनें काम करती हैं जहां 50 इंसान काम करते थे आज वही काम एक प्रबुद्ध तथा प्रशिक्षित इंसान के द्वारा मशीन से सम्पन्न करा लिया जाता है.हम महाभारत युद्ध के लाखों योद्धा के युग से पानीपत के युद्ध में बाबर द्वारा तोप के प्रयोग से उतरोत्तर योद्धाओं की कमी को इतिहास में पढ़ते हुए हिरोशिमा नागासाकी के एक बम के प्रयोग की ताकत को बखूबी समझ चुके हैं.(यहाँ मैं किसी हिंसा या युद्ध का समर्थन ना करते हुए महज़ वैज्ञानिक प्रगति के ऐतिहासिक उदहारण को दृष्टांत के रूप में प्रस्तुत कर रही हूँ)
ऐसे कोई भी देश जो जनसंख्या वृद्धि की दूसरी अवस्था में हैं,वहां तब तक परिवार नियोजन अनिवार्य कर देना चाहिए जब तक की जनसँख्या संतुलित ना हो जाए .अधिक जनसँख्या के लिए देश रोटी,कपड़ा,मकान के आलावा शिक्षा रोजगार जुटाने में इस कदर संलग्न हो जाता है कि वैज्ञानिक प्रगति या वैज्ञानिक रूप से प्रशिक्षित लोगों को तैयार करने में एक हद तक असफल रहता है .इसके अलावा शिक्षित वर्ग या प्रबुद्ध प्रतिभाओं के लिए अशिक्षित वर्ग हमेशा खतरे के रूप में उपस्थित रहता है .समाज वर्गों में विभाजित हो जाता है.अतः परिवार नियोजन के महत्व को सभी लोगों में प्रचार-प्रसार कर अनिवार्यता से लागू करना निहायत ज़रूरी है.
तीसरी अवस्था में जब देश विकास के उच्च स्तर पर पहुँच जाता है तब साक्षरता,शिक्षा विशेष रूप से स्त्री शिक्षा का प्रसार होने से छोटे परिवार का महत्व स्वयं ही लोगों की समझ में आ जाता है.तब बच्चे परिसंपत्ति नहीं देयता बन जाते हैं.बड़े शहरों ..कस्बों से होते हुए ग्रामीण अंचलों तक भी लोग परिवार के मात्रात्मक पक्ष की तुलना में गुणात्मक पक्ष के महत्व को समझने लगते हैं और जन्म दर घट जाती है.साथ ही जनसंख्या के पालन पोषण में लगने वाले संसाधन का प्रवाह चिकित्सा स्वास्थय,सफाई शिक्षा वैज्ञानिक प्रगति की ओर होने से मृत्यु दर भी घट जाती है और जनसंख्या स्वयं संतुलित हो जाती है.हाँ ऐसे विकसित देशों को भी इस अवस्था के चरम पर आते ही श्रम शक्ति की कमी महसूस होती है तब वे जन्म दर को बढ़ाना ज़रूरी समझते हैं. जैसा कि वर्त्तमान में ऑस्ट्रेलिया देश की सरकार का प्रयास है.
इस प्रकार जनसंख्या का मात्रात्मक पक्ष या यह कहाँ कब और कितनी ज़रूरी है यह उस देश के संसाधन उसके प्रयोग के लिए कुशल व्यक्ति की उपलब्धता तथा आर्थिक विकास पर निर्भर करता है.पर एक बात गौर तलब है कि जनसंख्या के गुणात्मक पक्ष की ज़रुरत हमेशा बनी रहेगी.
मैं लोगों की इस दलील से भी इनकार करती हूँ कि अगर आप एक अच्छे अभिभावक हैं तो अपने जैसे अधिकाधिक बच्चों को या एक से अधिक बच्चों को जन्म दें बल्कि मेरा मानना है कि आप समाज में से ऐसे बच्चे जो वंचित ,अशिक्षित कुपोषित हैं उन्हें अपने उपलब्ध संसाधनों से बेहतर बनाएं और अपने एक या दो जन्में बच्चों को भी यही शिक्षा दें कि वह इस दिशा में आगे बढे और समाज के ज़रूरतमंद बच्चों को अपने संसाधन का एक हिस्सा देकर बेहतर समाज की स्थापना में सहायक हो .क्योंकि किसी भी समाज में अगर HAVES और HAVES NOT  का परिदृश्य है तो वह सिर्फ HAVES NOT  के लिए ही नहीं बल्कि HAVES  के लिए भी THREATENING  है.आप सब को मेरे ब्लॉग सिर्फ एक ही बुलबुल काफी है की याद दिलाना चाहूंगी.हालांकि अधिकाँश लोग इस ब्लॉग की विषय-वस्तु से असहमत थे फिर भी मेरा मानना है कि जब तक हमारा देश भारत आर्थिक विकास की संतोषजनक बिंदु को प्राप्त ना कर ले तब तक एकल संतान की विचारधारा को ही अपनाया जाए.ऐसा करने पर कुछ दशकों में देश जनांकिकीय संक्रमण सिद्धांत के जनसंख्या की तीसरी अवस्था के शुरुआती दौर में पहुँच जाएगा और तब पुनः दो संतान की नीति अपनाई जा सकती है.
जनसंख्या वृद्धि उन समुदायों/परिवारों के लिए आर्थिक कठिनाइयां लाती है जो परम्परागत विधियों में बंधा जीवन व्यतीत करते हैं क्योंकि अधिक जनसंख्या…रोटी कपड़ा जैसी बुनियादी ज़रूरतों पर व्यय …अधिक संसाधन का प्रयोग …शिक्षा ,मनोरंजन,रचनात्मक कार्य के रूख की उपेक्षा…हताशा में यौन संतुष्टि में ही मनोरंजन की चेष्टा और पुनः अधिक जनसँख्या ….का दुष्चक्र चलता रहेगा परन्तु अगर वहां अल्प संख्या में भी शिक्षित,संवेदनशील और कुशल प्रशिक्षित जनसंख्या मौजूद है तो उनमें इतनी सामर्थ्य है कि इस प्रकार के परिवार/समुदाय से उनके तरीके और सोच को बदलवा सकती है और दीर्घकाल में उन्हें बहुत अधिक उन्नत तथा उत्पादनकारी परिवार/समुदाय में परिवर्तित होने में सहायक हो सकती है.
आज जनसंख्या शक्ति नहीं है हाँ उसका गुणात्मक पक्ष अवश्य शक्ति शाली है जनसंख्या,क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से भारत ,चीन कितना भी बड़े हों वे अमेरिका या छोटे से देश इंग्लैण्ड या जापान के सामान विकसित नहीं हैं और तब तक नहीं होंगे जब तक वे जनसंख्या वृद्धि की तीसरी अवस्था में ना पहुँच जाएं.

Few roses are better than the weeds in the garden.
qualitative aspect of population is never a burden
lets give a thought for our nation’s development
taking’ small family happy family’ as a commitment.
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