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चांदी की साइकिल सोने की सीट

V2...Value and Vision
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दोस्तों , कई फिल्मों के सीन और गाने याद आ रहे हैं.हीरोइन अपनी सहेलियों के साथ साइकिल पर पिकनिक पर जाती है …साइकिल पर सवार हीरोइन के पीछे हीरो गीत गाता है …हीरोइन कभी गुस्सा होती है …कभी गिर जाती है …और कभी कभी तो दोनों ( गोविंद और जूही चावला ) साथ में साइकिल की सवारी करते हुए गाते हैं …
चांदी की साईकिल सोने की सीट …आओ चलें डार्लिंग चलें डबल सीट .
हम भी जवान हैं तुम भी जवान हो बोलो जी बोलो चलना कहाँ है “

अब साइकिल की सवारी का मज़ा ही कुछ और है.शुरू शुरू में गिर जाने पर चोट भी आती है .पर गिरने के डर से कोई साइकिल की सवारी छोड़ दे ये बात तो हज़म नहीं होती ज़नाब .यही तो एक वाहन है जो प्रदूषण भी नहीं करता और व्यायाम में भी मदद कर शारीरिक मानसिक स्वास्थय बनाये रखता है .कई देशों में तो लोगों ने नो कार डे की घोषणा कर साइकिल की सवारीको प्रदूषण रोकने का प्रतीकात्मक अभियान बनाया है.और हाँ हवा में साइकिल चलाना एक विशेष प्रकार का व्यायाम है.
जब दो यूथ आइकॉन एक साथ साइकिल की सवारी की तरफ बढ़ जाएं तो परिवार समाज क्या देश विदेश के लोगों की नज़र टिक जाती है.एक तो युवा उस पर से एक साथ सवारी वह भी साइकिल की जबकि युवा तो तेज़ रफ़्तार बाइक की सवारी पसंद करते हैं.साइकिल की सवारी में हेलमेट की भी ज़रुरत नहीं पड़ती .ट्रैफिक चालान भी नहीं कटता .चलाते वक़्त गिर जाएं तो चोट भी जान लेवा नहीं होती .अर्थात साइकिल की सवारी सुन्दर सुहानी सुखद सस्ती और सुरक्षित है इसमें कोई दो राय नहीं . यहां तो आम के आम गुठलियों के दाम जैसी बात के भी आगे की कोई बात जैसी दिख रही है..यूँ भी साइकिल को हाथी का नहीं हाथ का ही साथ चाहिए होता है .अब बेबी को बेस पसंद है साइकिल को हाथ का साथ पसंद है .हाथी पर साइकिल तो रखी जा सकती है पर साइकिल पर हाथी रखना यह तो खेल खिलौनों से ही संभव है .कोरी काल्पनिक बात .सच पूछो तो यही तो एक वाहन है जो बगैर ईंधन के इंसानों के हाथ पैर से ही चल पड़ता है.’हल्दी लगे ना फिटकरी और रंग चोखा आये ‘और इसे चलाना आना चाहिए …अरे !! साहब यह भी ज़रूरी नहीं क्योंकि हाथ हैंडल पकड़ कर बैठे रहे ज़रुरत पड़ने पर घंटी बजाते रहे तो भी सफर तो सुहाना हो ही जाता है .यूँ कि हैंडल पकड़ कर बैठने वाले हाथ को साइकिल चलाने वाले का साथ जो है .’जो सफर प्यार से कट जाए वो प्यारा है सफर …नहीं तो दर्द शोखेदार का मारा है सफर ‘और फिर यह प्यार गंगा यमुना के संगम की तरह एकाकार हो तो आसमान भी ज़मीन को झुक जाए .और फिर साइकिल तो कभी कभी हाथ छोड़ कर भी चलाई जाती है .थोड़ा स्टंट भी तो बनता है .
साइकिल में दो पहिये तो उसकी संरचना की प्रथम शर्त है और दोनों पहियों के बीच फासले की भी शिकायत ज़ायज़ नहीं यह भी संरचना की ही शर्त है.अगर दोनों पहियों की जैविक उम्र की बात करें तो बस ४६ और ४३ यानी तीन का ही फासला है.और जो दोनों पहियों के कार्यकारी आयु देखें तो १२ और १६ यानी चार वर्ष का फासला है .और ये फासला ना हो तो साइकिल चले कैसे ??? ये फासले तो साइकिल की आधारभूत संरचना की मांग हैं .
चलिए सब मिलकर गुनगुनाते हैं ….
आओ चलें डार्लिंग चलें डबल सीट .

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