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चाय के’ कप’ और ‘होंठ’ के बीच की दूरी

V2...Value and Vision
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दोस्तों,राजनीति आज संसद के गलियारे से चाय के चौपालों पर दस्तक दे रही है.राजनीति के इस बदलते रूख पर गीत संगीत की शौक़ीन मैं गुनगुना रही हूँ…“एक गर्म चाय की प्याली हो..देश में जन-जन की खुशहाली हो”पर यह जन-जन की खुशहाली सिर्फ चायवालों तक ही तो सीमित नहीं…..चाय परोसने के लिए कप भी चाहिए और अगर ये कप मिट्टी के बने कुल्हड़ हों तो मान ,मानुष और माटी की त्रिवेणी बह जायेगी.’आम के आम गुठलियों के दाम’वाली कहावत चरितार्थ हो जायेगी.आप सोच रहे होंगे वो कैसे.देखिये ,पहली बात अब तक किसी भी राज नेता ने हमारे कुम्हारों की सुध नहीं ली है ये भी आम जनता हैं इन्हे इस चाय चौपाल के बहाने काम मिल जाएगा और नेताओं को एक विशेष वर्ग का वोट हासिल हो जाएगा.दूसरी बहुत अहम् बात यह कि अब तक किसी भी राजनीतिक दल ने बहुत ही महत्वपूर्ण और ज्वलंत बिंदु ‘पर्यावरण संरक्षण’को चुनावी घोषणा पत्र में मुद्दा नहीं बनाया है तो यह काम भी चाय चौपाल में कुल्हड़ के प्रयोग से हो जाएगा.प्लास्टिक के कप तो बिलकुल प्रतिबंधित हों और कागज़ के कप को भी इस लिए प्रतिबंधित किया जाए कि इससे वन का कटाव होगा तो बस बात माटी पर रूक गई माटी का कप माटी में मिल कर ईको-फ्रेंडली ही साबित होगा.है ना …..हल्दी लगे ना फिटकरी;रंग चीखा आये ‘वाली बात.

चुनाव में अब भी कुछ महीने बचे है कप और होंठ के बीच की यह दूरी और इसके बीच कई स्लिप्स (many a slip between cup and lip )…कदम सोच समझ कर तार्किकता से तो रखने होंगे .
यूँ भी चाय ही एक ऐसी चीज़ है जिसने सिर्फ जोड़ने का काम किया है…कोई नाराज़ है चाय पर बुला लो (दूरियां नज़दीकियां बन जाएँगी)…कोई मीटिंग सीटिंग करनी है चाय के बगैर अकल्पनीय ….(जहां चाय-वाय मिल जाय वहीं बात बन जाय)…लड़की के विवाह के रिश्ते तय करने हैं ट्रे में चाय पकड़ाकर प्रस्तुत कर दी जाती हैं(शायद मेरी शादी का ख्याल दिल में आया है…इसीलिये मम्मी ने मेरी तुझे चाय पे बुलाया है )रिश्वत की बात हो तो भैया ज़रा चाय पानी का तो इंतज़ाम कर दो…एक कप चाय पर लाखों करोड़ों की डील हो जाती है..अब तो गाँव में भी ताज़े गुड के दही वाले शरबत से आवभगत अफ़साने से हो गए हैं …हम सब सभ्य हो गए हैं तभी तो एक शायर ने भी अर्ज़ किया है

सभ्यता के नाम पर गाँव से क्या शहर में आये

एक प्याला चाय बन कर रह गई है ज़िंदगी

फिर चाय तो भारतीय राष्ट्रीय आय का भी अच्छा स्त्रोत है..भारत चाय का .ज़बरदस्त निर्यातक भी है .और चाय की विविधता के क्या कहने !!!!!!!!!अदरक वाली,नीम्बू वाली,फीकी,तेज़,कड़क,दूध वाली,हरी,हर्बल जैसी कई विविधताओं के बाद भी वह सिर्फ चाय है चाय और कुछ भी नहीं.विविधता में एकता की इससे अच्छी मिसाल कहाँ मिलेगी?

अब थोड़ी गम्भीर बात करती हूँ .एक चायवाला राजनेता बन जाए तो बार-बार ध्यानाकर्षित क्यों किया जाए ?एक शिक्षक उप राष्ट्रपति बन जाए तो उसके जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मना लो ….बच्चों से बहुतों को प्यार होता है पर हम एक प्रधानमंत्री से ही बाल दिवस को जोड़ते हैं …एकता दिवस,सद्भावना दिवस ,युवा दिवस ….जाने कितने दिवस …..किसी भी एक आम बहादूर बच्चे के नाम पर या किसी भी आम संवेदनशील व्यक्ति के जन्म दिवस पर है .???…है भी तो समंदर में बस एक बूँद सा .अब क्या हम चाय दिवस भी मनाएंगे? लोग शक्ति इसीलिये चाहते हैं मणिशंकर अय्यर का बयान आम आदमी के काम की एक तरह से नज़रअंदाजी ही है.जब लोगों के काम को महत्व नहीं मिलता तो वे पॉवर चाहते हैं .सच तो यह है कि चायवाले,रिक्शेवाले,सफाई कर्मचारी,जूते बनाने वाले सभी ज़रूरी है समाज की आधारशिला है आम आदमी को एक राष्ट्रपति की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में ज़रुरत नहीं पड़ सकती पर इन आधारभूत कार्यों से जुड़े लोगों के बगैर एक दिन भी काम ना चले.एक चाय वाला अगर कुशलता और ईमानदारी से चाय बेचता है तो वह एक राष्ट्रपति के बराबर ही सम्मान क्यों नहीं पाता …??बस यही से सत्ता और पॉवर का भयानक खेल शुरू हो जाता है जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति के काम को सम्मान प्रत्येक व्यक्ति को उचित पहचान मिलनी शुरू हो जायेगी समाज से अपराध ख़त्म हो जाएंगे.मणि शंकर अय्यर की यह टिप्पणी कोई नई बात भी नहीं है .अमेरिका में ऐसा ही हुआ था.

अब्राहम लिंकन के पिता जूते बनाते थे,और लिंकन राष्ट्रपति बन गए.अमेरिका के रईस क्षुब्ध थे.सीनेट को सम्बोधित करते प्रथम भाषण में ही लिंकन को एक शख्श ने रोका और कहा ,“श्रीमान लिंकन,आप दुर्घटना वश राष्ट्रपति बन गए हो ,तुम्हारे पिता जूते बनाते थे,मैंने यह जो जूता पहना है तुम्हारे पिता ने बनाई है मैं क्या मेरे परिवार के प्रत्येक सदस्य के जूते तुम्हारे पिता के ही हाथों बने हुए हैं.”सीनेट ठहाकों से गूँज गया.सब ने सोचा कि लिंकन को हतोत्साहित कर दिया गया पर लिंकन जैसे शख़सियत को अपमानित करना सम्भव ही नहीं है.हाँ ,लिंकन की आँखों में आंसू ज़रूर आ गए.उन्होंने कहा,”मैं आपके प्रति आभारी हूँ कि आपने मुझे मेरे पिता की महानता की याद दिलाई,वे एक कुशल मोची थे,मैं उतना कुशल राष्ट्रपति बन पाउँगा या नहीं …पता नहीं.जैसा कि आपके और आपके परिवार के सदस्यों के जूते पिता ने बनाये हैं पर चूँकि अब वे इस दुनिया में नहीं है अतः मैं पूरी सभा को बताना चाहता हूँ कि उन्होंने थोडा बहुत यह काम मुझे भी सीखाया है आप के जूते अगर अधिक कसे ढीले या मरम्मत के लायक हों तो मेरे पास भेज दीजियेगा मैं उनकी मरम्मत कर दूंगा.हो सकता है कि मेरा काम मेरे पिता के काम की तरह कुशल ना हो और आपको संतुष्ट ना कर सके पर मैं सर्वोत्तम देने की कोशिश करूँगा.”

पूरी सभा निस्तब्ध थी .लोग विश्वास नहीं कर सके.यह आदमी किस मिट्टी का बना है …पूरी सभा में ऐसा अपमान पर इसने तो अपमान को सम्मान बना दिया था.

सच है काम तो बस काम है तन्मयता,ईमानदारी,सम्मान के साथ किया हुआ काम सम्मान पाने का अधिकारी है पर हम एक चाय वाले को‘ अबे सुन’ कह कर बुला लेते हैं….एक रिक्शे वाले से दो रूपये पर बहस कर लेते हैं…एक सफाई कर्मचारी को अलग बर्तन या गिलास में पानी पीने देने से नहीं घबराते ….जबकि हमारा संविधान इसे गलत मान चुका है… पर इन्ही में से कोई अगर राजनेता बन जाए पॉवर में आ जाए तो बस बिछ-बिछ जाते हैं…..तब हमारी सोच की परिधि उस शक्ति को केंद्र मान उसके चारों ओर घूमने लगती है.….मुद्दा मोदी जी के चाय बेचने वाले से सम्भावित प्रधान मंत्री बनाने के सफ़र का नहीं है ….प्रश्न है उस सोच को बदलने का कि एक चायवाला एक प्रधानमंत्री की तरह ही सम्मानीय क्यों नहीं ….सामाजिक संरचना के टी स्टाल में एक चाय के कप और होंठ के बीच इतनी दूरी क्यों …..जब कि दोनों अपने अपने कार्य को शिद्दत से करते हैं .एक चायवाला, एक रिक्शे वाला ,एक कुम्हार ईमानदारी से अपने और अपने परिवार का पेट पालता है पर वह अपमानित होता है .आम जनता ,मोदीजी और सभी राजनेताओं को इस बात की गहराई समझनी होगी कि चुनाव के बाद भी समाज के इन आधारभूत ढाँचे से जुड़े लोगों की फ़िक्र करें आज eleventh hour  में कोई ३९ बिल पास कराने को आतुर है तो कोई आम जनता का सबसे बड़ा शुभचिंतक होने के दावे कर रहा है….

बस एक गुज़ारिश है कि हम जनता को statesman चाहिए politician नहीं क्योंकि james freeman clarke की माने तो

“A politician thinks of the NEXT ELECTION  .A statesman of the NEXT GENERATION.”

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