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तुलसीकृत रामचरित मानस की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं
जे न मित्र दुःख होहिं दुखारी,तिन्ही बिलोकत पातक भारी……………
निज दुःख गिरि सम रज करी जाना,मित्रक दुःख रज मेरु समाना ………..
अर्थात जो मित्र के दुःख से दुखी नहीं होता वह पाप करता है. अपने पर्वत के सदृश बड़े दुःख को धूळ जैसा छोटा और मित्र के धूळ जैसे छोटे दुःख को पर्वत सा बड़ा समझना चाहिए.
आज के इस परिवेश में जहां दोस्ती,बंधुत्व भाव सोशल नेट्वोर्किंग sites ,parties वगैरह के माध्यम से सहजता से उपलब्ध हैं या यूँ कहिये; आज दोस्ती की पतंग समाज के खुले आकाश में ऊँची और ऊँची उड़ती जा रही है वहां यह नज़र डालना ज़रूरी है कि क्या इस दोस्ती भाव से जुड़े विश्वास की अटूट डोर भी उतनी ही मजबूत रह पायी है या छल,फरेब का मांझा बन कर एक डोर ही दूसरी को काट जमीन पर गिरने को विवश कर रही है और कभी-कभी तो कुछ बदनसीब पतंगों को ज़मीं भी मयस्सर नहीं होता.वे कटी पतंग किसी पेड़ की डाली पर अधर में लटकी रह जाती है.पता है क्यों?वह इसलिए कि
अब दोस्ती में न वह गर्मी है न वादे निभाने का जुनून
क्या करें दिल मिलाते ही नहीं हाथ मिलाने वाले(पठित शेर)
ऐसा मैं इस लिए कह रही हूँ क्योंकि नित्य घटती घटनाएं जहां दोस्त ही दोस्त का अपहरण कर फिरौती वसूल करता है,कभी-कभी तो ह्त्या जैसे घृणित वारदातों को भी दोस्त ही अंजाम दे देता है,लड़कियों और लड़कों की दोस्ती एम.एम एस ,बलात्कार जैसे अश्लील हरकतों पर आकर दम तोड़ देती है,दोस्ती के नाम पर कोई द्वापर युगीन कृष्ण बनने का दंभ लिए प्रकट तो ज़रूर होता है पर इस घोर कलयुग में दोस्ती की पवित्र चादर मैली कर साफगोई से निकल जाता है.बड़े-बड़े ओहदे वाले किसी गरीब सुदामा के दोस्त बन कर उसकी सादगी का गलत इस्तेमाल कर लेते हैं ,ये सब तो एक शायर के कथनानुसार यही सोचने पर मजबूर करता है कि…………….
जब भी मिलना हो किसी से,ज़रा दूरी रखना
जान ले लेता है सीने से लगाने वाला
मेरे कॉलेज की एक सहेली थी बला की खुबसूरत पर उसकी एक आदत से मैं परेशान हो जाती थी.वह अपने बहुत सारे दोस्त बनाती और उनसे अपने नोट्स पूरे करवाती,उनके पैसों पर चाय नाश्ता करती और फिर चार पांच महीने बाद कोई और दोस्त बना लेती.समझाने पर बोलती ,”अरे!यार, मुझे उन्हें बेवकूफ बनाने में मज़ा आता है”एक दिन मैंने उसे समझाया,”सुनो,अगर तुम किसी को बेवकूफ बनाने में कामयाब होती हो तो यह सोचकर खुश मत हो कि तुम स्मार्ट हो बल्कि तुम यह सोचो कि वे सब तुम पर कितना विश्वास करते हैं,ये उनके विश्वास की जीत है जिसे तुम अपनी कामयाबी मान रही हो”जाने इस बात ने उस पर क्या असर किया उसने सच्ची दोस्ती निभाने का वादा किया और उस दिन के बाद किसी को बेवकूफ नहीं बनाया.
एक कहावत है’a friend in need is a friend indeed “जो ज़रूरत में काम आये वही वास्तव में दोस्त है”पर आजकल तो दोस्त ज़रूरत के साथ ही आते हैं और अगर किसी वज़ह से उनकी ज़रूरत पूरी ना हो पाए तो दोस्ती में दरार शुरू हो जाती है .दोस्त बनकर हितैषी भाव प्रदर्शित करने वालों का हुजूम कब आपकी बर्बादी का सबब बन जाए आपको पता तक नहीं चल पाता .उस वक्त के लिए तो एक मशहूर शेर ही सटीक लगता है……………….
भीड़ में हर एक के हाथों में शगुफ्ता फूल थे
सर मेरा ज़ख़्मी हुआ बताओ किसके पत्थर से ??????????????
दोस्ती की किताब के किस पन्ने पर लिखा है कि अगर दोस्त ज़रूरत पूरी न कर पाए ,एक दूजे के मुताबिक़ उपयोगी न बन पाए या नसीब और पुरुषार्थ के बल पर ऊँचे ओहदे पर पहुँच कर अपनी कुछ सीमाओं की वज़ह से दोस्त को सहयोग न कर पाए तो उसे दुश्मन का खिताब दे दिया जाए.दोस्ती का रसायनशास्त्र chemistry इतनी शीघ्रता से परिवर्तित होना क्या सही है?
ऐसे में यही आशंका रह जाती है कि कहीं इस फ्रेंडशिप का शिप titanic शिप सा न हो जाए
दोस्ती में स्वार्थ या अपेक्षाएं ना हों अन्यथा इसे टूटते देर नहीं लगती एक शायर ने इसे बखूबी बयान किया है
हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से काम
यानि हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक़्त आया.
ऐसा नहीं है कि दोस्ती शब्द हर जगह एक कैंसर की तरह हो गया है.आज भी कई दोस्त पवित्रता के साथ हित भाव बंधुत्व बनाए हुए हैं.मुझे आज भी याद है पापा जब कार्य की व्यस्तता की वज़ह से हमें गाँव नहीं छोड़ पाते थे तो अपने दोस्त रहमान चाचा जिनका घर भी पास के गाँव में था उनके साथ बेफिक्र भेज देते थे.दोस्ती विश्वास की डोर से बंधी होती है चूँकि ये रक्त सम्बन्ध नहीं होते इसलिए विश्वास का यह पर्दा बेहद झीना होता है जो शक की हल्की से कैंची से भी तार-तार हो जाता है अतः एक दूसरे की मजबूरी,स्थिति ,को समझना दोस्ती के लिए अत्यावश्यक है.लड़कियों को इस लिहाज़ से हमेशा सजग रहने की ज़रूरत है कि मित्र बनाने के समय थोड़ा धैर्य से काम लें,लड़के हो या लडकियां स्वयं को बेवज़ह इस्तेमाल न होने दें ,दोस्त की कोई बात नागवार गुजरे तो स्पष्ट कहने का साहस रखें और एक बात अवश्य करिए कि अपने दोस्तों के विषय में घर के बड़ों को अवश्य अवगत करायें. ऐसी बात या ऐसी दोस्ती जो घर के बड़ों से छुप कर की जाए उसके बिगड़ने पर बेबसी के सिवा कुछ हाथ नहीं आता.सीधी सी बात यह है कि………….
चाहे जिससे भी वास्ता रखना
चल सको उतना फासला रखना(पठित शेर)
दोस्ती की सहज उपलब्धता,नए अंदाज़,नए तरीकों और इन सब की नजाकत को कुछ यूँ समझने की कोशिश करते हैं………………..
दोस्ती के मायने कैसे,बदले हैं वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में
मासूम,हित भाव,दम तोड़े हैं इस नवीन परिदृश्य में
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दोस्त तो मिलते हैं कई सोशल नेट वोर्किंग साइटों में
या फिर कभी यूँ ही कहीं भी होती, छोटी बड़ी, पार्टियों में
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भरोसा कभी न तोड़ने की,आपस मेंदी तसल्ली जाती है
मिलते रहेंगे, कहने की,कवायद भी खूबनिभाई जाती है
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द्वापर युगीन कृष्ण सुदामा,आज भी मिलते हैं जग में
निर्बाध रक्त दोस्ती का,बहता है उनके संपूर्ण रग-रग में
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आज भी इस युग का सुदामा, जाता नहीं श्रीकृष्ण के घर
श्रीकृष्ण ही रहते हैं देखो उसके,घर आने को सदैव तत्पर
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आना कृष्ण का घर सुदामा के ,दे जाता मीडीया को कवरेज
प्रचार तो सुदामा का भी होगा,स्वागत से फिर क्यूँ हो गुरेज़
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किमकर्तव्यविमुढ़ हो करता,हद से ज्यादा स्वागत-सत्कार
सारी असलियत समझता रहता,सुनता अंतर्मन की चीत्कार
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सुदामा को सदैव ही कृष्ण की,पद प्रतिष्ठा का है रहता भान
निभाये कैसे वह दोस्ती,सामने लक्षमण रेखा के हैं निशान
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एक ही बार चने के लिए,छला सुदामा ने कृष्ण को द्वापर युग में
छला जा रहा सुदामा आज,देखो बार-बार इस घोर कलयुग में
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कृष्ण को तो हर दिन इस युग में एक ,नया सुदामा मिल जाएगा
चंद लम्हों की इस पहचान को,क्या बिचारा सुदामा भूल पायेगा?
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ऐसी दोस्ती किस काम की जो,झूठ,फरेब,छल के पंक में सनी रहे
द्वापर युगीन दोस्ती की मिठास,काश! इस कल युग में भी बनी रहे
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(blog में लिखे शेर किसी मशहूर शायर के हैं )
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