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ज़िन्दगी@अभिव्यक्ति.कॉम (सोसिअल मीडिया पर नियंत्रण…पर हमला)(jagran junction फोरम)

V2...Value and Vision
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कहावत है“think before act or speak“कुछ दिनों पूर्व मैंने एक ब्लॉग लिखा था“ढाई आखर शब्द का”उस ब्लॉग का भाव मैं इस ब्लॉग से जोड़ना चाहूंगी.भाव और विचार की अभिव्यक्ति में शब्द प्रमुख होते हैं फिर इससे जुडी स्वतन्त्रता की बात तो की जाती है पर अभिव्यक्ति की शालीनता की बात भी साथ-साथ क्यों नहीं की जाती?और एक की स्वतन्त्रता वहीँ खत्म हो जाती है जहां से अगले की नाक शुरू होती है.ये मैं ही नहीं, चिर परिचित कहावत भी कहती है.कमाल है; अधिकार की बात सब करते हैं उससे जुड़े कर्त्तव्य की बात कोई नहीं करता.जबकि दोनों एक ही सिक्के के दो पहलु हैं.
आइये ,अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का सही अर्थ समझें .
universal declaration of human rights के अनुसार “everyone shall have the right to hold opinion without interference and everyone shall have the right to freedom of expression .this right shall include freedom to seek,receive and impart information and ideas of all kinds regardless of frontier either orally,in writing or in print,in the form of art or through any medium of one’s  choice .”
article १९ आगे यह भी जोड़ता है “the exercise of these rights carries special duties and responsibilities and may therefore be subject to certain restriction when necessary on respect of the rights or reputation of others or for the protection of national security or of public health and morale”
यह ठीक है की सोसिअल मीडिया एक safety valve का काम करता है जिससे आम व्यक्ति की आवाज़ भी भाप बन बाहर निकल जाती है पर क्या इसके लिए कुछ आवरण या सीमाएं निर्धारित करना ज़रूरी नहीं है ?

एक बार एक पत्नी ने अपनी भावाभिव्यक्ति इन शब्दों में पति के सामने रखी,”काश! मैं आपका मोबाइल फ़ोन होती तो हर वक्त आपके साथ रह पाती.“पति की अभिव्यक्ति कुछ इस कदर अनियंत्रित थी'”काश!तुम घर के कलेंडर जैसे होती तो हर वर्ष मैं बदल लिया करता”अब देखिये दोनों ने स्वतंत्र होकर अपनी -अपनी अभिव्यक्ति दी परिणाम खुद्दार पत्नी ने रिश्ता ही तोड़ लिया.
सोसिअल मीडिया का उपयोग कई कंपनी या संस्थान कर रहे हैं face बुक पर उनके पेज हैं sites हैं पर इसका मकसद कंपनी या संस्थान के विषय में जानकारी देना,स्वस्थ संवाद स्थापित karna,राय जानना इत्यादि है.NASA Social Media मेनेजर stephanie l.schierhotz कहते हैं,“the real value of NASA’s use of social media can be seen in the level of engagement and the communities that form around them.it is called social media because our fans and followers have a reasonable expectations that their questions may be answered and their comments heard.”
पर कोई भी संस्थान ऐसे कमेंट्स जो लोगों का नैतिक मान खोते हैं या उसकी पहचान और सेवाओं के विषय में नकारात्मक विचारधारा को बढ़ावा देते हैं ,उसे अपने ही नियंत्रण तकनीक का इस्तेमाल कर वे बंद कर देते हैं .हर कमेंट्स पर नियंत्रण मुश्किल है पर देश की अखण्डता ,समाज की मर्यादा या व्यक्ति की निजता को हताहत करने वाले सूचनाओं को अभिव्यक्त करने की ज़रूरत क्या है?
एक सी.डी क्या आ जाती है सारे शरीफों को आनंद आने लगता है.गंदगी बिखरी पडी है तो क्या सब उस पर पत्थर फेंकने लगेगें या कि उसे यथोचित रूप से हटाने की व्यवस्था करेंगे?अजीब बात है देश में क्या अच्छा कुछ भी नहीं हो रहा जिसकी चर्चा सोसिअल मीडिया में की जाए.
आई.ए.एस परिक्षा में शीना देश में अव्वल आयी,देखना है कितने युवा इसे फेस बुक के ज़रिये शेयर करते हैं?झारखंड के अधिकाधिक प्रतियोगी टॉप २५ में रहे हैं.पर इसे बहुत अल्प मात्रा में ही शेयर किया जाएगा.
प्रश्न एक और भी है ,”क्या वास्तविक दुनिया की अभिव्यक्ति की आज़ादी को नेट के आभासी दुनिया में भी बिलकुल उसी रूप में दे दिया जाए?अगर हाँ, तो फिर साइबर bullying ,gossiping victimisation ,जैसी घटनाएं भयावह रूप से सामने आ जायेंगी.अपने extreme views को भी ज़बरज़स्ती मनवाना कहाँ तक उचित है?सेक्स, race ,निजी ज़िन्दगी,चरित्र,स्वभाव पर अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के नाम पर टिप्पणी सर्वथा गलत है.हर व्यक्ति सिर्फ अपने चश्में से दुनिया देख रहा है,और अगर यह काले रंग का चश्मा है तो और भी बुरा क्योंकि फिर तो उसकी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता श्वेत वर्ण से ही समाज को वंचित करने पर तूल जायेगी.

ज़रूरत है कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का सही अर्थ,उससे जुड़े कर्त्तव्य,का अर्थ छोटी उम्र से ही समझाया जाए.विद्यालयों में कंप्यूटर विषय में नेट शिष्टाचार का भी टोपिक रखा जाए.सीबीएसई board के जिस विद्यालय में मेरी पुत्री पढ़ती है वहां ग्राडिंग सिस्टम में एक मापदंड देखकर मुझे बहुत अछा लगा .उसमें” raising the voice ” पर भी grade थे. शिक्षकों ने बताया की अगर विद्यार्थियों को कोई बात गलत लगती है तो वे उसके विषय में अपनी आवाज़ उठा सकते हैं पर यह एक उचित तरीके से हो’ इस बात की शिक्षा के लिए इस कोलुमं में यह मापदंड रखा गया है.अर्थात गलत बातों का विरोध किस तरह किया जाए यह उन्हें किशोरावस्था से ही भली-भांति पता होना चाहिए ऐसे बच्चे सोसिअल मीडिया के प्रयोग में भी सावधानी रखेंगे. यह सूचनापरक समाज है इससे दूर किसी व्यक्ति को रखना संभव भी नहीं पर सही रूप से इसका प्रयोग करना तो जानना चाहिए.जब दुनिया हमारी मेज़ या पॉकेट में समा गयी है तो क्या उससे जुडी सूचनाओं के साथ हम मनमानी करेंगे?
अभी एक समाचार सुन रही थी की एक शहर में नामी विद्यालय का पेज अनुशासनहीन विद्यार्थियों ने बनाया और कई विश्वस्त सूचनाएं गलत ढंग से लिख कर वहां के निवासियों को विद्यालय के विषय में गुमराह कर दिया.नतीजा विद्यालय में अभिभावक बच्चों को प्रवेश दिलाने से घबरा गए.जब तक बात रोशनी में आयी अच्छा खासा नुकसान हो चुका था.

JAN GAN MANएक हिन्दू विचारधारा से प्रभावित मित्र पूर्वाग्रह से इतने ग्रसित हैं कि अपने status में एक विशेष दल की आलोचनाओं से ही भोर की शुरुआत करते हैं.पर इस सूचना को शेयर करने का उनका ढंग बेहद उन्मादी होता है.इसपर नियंत्रण ना होने से बेशक लोग गुमराह हो सकते हैं. कोई भी साधन या तकनीक जो हमें हासिल हुई है उसे गलत संदेशों के प्रचार-प्रसार के लिए ना इस्तेमाल किया जाए .अच्छा तब लगता है जब कुछ सन्देश सोसिअल मीडिया के ज़रिये इस प्रकार आते हैं “हमारा राष्ट्र गान UNESCO के द्वारा सर्वश्रेष्ठ गान घोषित किया गया है”
आज ही दो सन्देश भेजे हुए हैं जिसमें एक में गोधरा काण्ड की तसवीरें हैं ,जो अगर प्रसारित होती रहे तो पुनः साम्प्रादायिक उन्माद फ़ैल जाए.और दुसरा महाराणा प्रताप जी की जयन्ती की शुभकामना का सन्देश है.यानि अच्छे बुरे सभी सन्देश शेयर होते हैं पर किस सन्देश का क्या प्रभाव होगा यह तो ठीक उसी तरह है की अग्नि एक गृहणी की पहुँच में है या किसी उन्मादी के?चाक़ू एक डॉक्टर के हाथ में है या किसी कुत्सित मनोवृति वाले व्यक्ति के हाथ में है?GODHARA
सही विधि से सोसिअल मीडिया के ज़रिये अभिव्यक्ति का प्रचार प्रसार हो तो यह राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने का भी कार्य करते हैं (दो तस्वीरों के उदाहरण के माध्यम से आप यह महसूस कर सकते हैं.
राजनेताओं की सच्चाई सामने आती है तो उसे इस तरह जनता के सामने लाया जाए कि जिस बुराई से वे ग्रस्त हैं वह प्रतीकात्मक रूप में प्रसारित की जाए न कि हुबहू लाइव.यहाँ मकसद मनोरंजन करना नहीं ,सूचना देना होता है.क्या कोई व्यक्ति अपनी भी घृणित सच्चाई को लाइव देखना या दिखाना पसंद करेगा ?
हकीकत जानने के लिए लाइव telecast  ज़रूरी नहीं,प्रतीकात्मक रूप से भी जनता को इनसे अवगत करवाया जा सकता है.जब निजता का नियम आम आदमी पर लागू है तो फिर सभी के लिए क्यों नहीं?

जायेंगी टूट श्रृंखला जब सारी मान मर्यादा की
तो बताओ बचा फर्क क्या आदमी जानवर में ?
अपरिचय,अविश्वास,घृणा ही फिर जियेंगे यहाँ
क्रान्ति,अशांति,का साम्राज्य होगा इस जग में .

(lekh kee kuchh suchanaaon net se lee gayee hain.)

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