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टूटता तारा देख लब पर एक दुआ आई
तारा आँचल में था गोद में परी मुस्काई .
यह हमारे समाज का कटु सत्य है कि बेटी के जन्म की कल्पना ही परेशान कर देती है .हालांकि वर्त्तमान पीढी में यह सोच बहुत कम हो गई है पर मेरी माता जी बताती हैं कि जब पहले से ही घर में अधिक संख्या में लड़कियों के होने के माहौल में जुड़वां स्त्रीलिंग बच्चों में से एक के रूप में मैंने जन्म लिया तो पिता को शिकन नहीं था पर माता जी परेशान हो गई थीं और उनसे भी ज्यादा परेशान बाबा हुए थे .इतनी लड़कियों की शिक्षा और विवाह का खर्च कैसे संभव होगा .इस चिंता में घर के बूढ़े बुजुर्ग परेशान हो गए थे.हम सभी बहनें पढने में दोनों ही भाईयों से काफी अच्छे थे .परंतु बाबा की सख्त हिदायत थी कि विज्ञान की शिक्षा चूँकि बाहर भेजने की वजह से महंगी होगी अतः हमें सिर्फ दसवीं तक ही पढ़ा कर विवाह कर दिया जाए .वे पिता को डांटते कि लड़की को लाट साहब बनवाना है क्या …इन्हें क्यों उच्च शिक्षा दी जाए ?? माता पिता बाबा का बहुत सम्मान करते थे .उनकी बातों को अगर ना भी मानें तो कभी भी जवाब तलब नहीं करते थे .मुझे याद है एक बार विद्यालय का वार्षिक उत्सव था .चूँकि विद्यालय में गत वर्ष के पारितोषिक बांटे नहीं जा सके थे अतः दो वर्षों के सभी प्रतियोगिताओं के पारितोषिक उसी वर्ष दिए गए .निबंध लेखन,वाद विवाद ,आशुभाषण और कक्षा परिणाम फल के दोनों वर्ष के पारितोषिक की संख्या मिला कर मुझे कुल आठ पारितोषिक मिले थे .माँ और पिता खुश थे पर बाबा को दुःख था कि उनके छोटे पोते ने कोई पारितोषिक क्यों नहीं जीता .छोटा पोता जिसके इंतज़ार में हम चार बहनें अनचाहे ही परिवार को बड़ा कर गई थीं .पिता ने कहा ,” बाबा के पैर छूकर आशीर्वाद ले लो “पर पास जा कर चरण स्पर्श करने पर बाबा बगैर आशीष दिए उठ कर बाहर यह कहकर चले गए कि चहलकदमी के लिए जा रहा हूँ.मेरे किशोर मन में यह बात घर कर गई थी .मैंने उसी वक़्त ठान लिया था कि बहुत अच्छी तरह पढ़ाई करूँगी .और विवाह होने पर एक ही संतान रखूंगी और वह पुत्री ही हो . .हालांकि मेरी पुत्री के जन्म पर स्वयं मेरी आँखों में आँसू आ गए थे .तब मेरे ससुर जी ने लगभग डांटते हुए कहा था ,”बेटी होने पर रो रही हो तो याद रखना मेरे यहां बहू बेटियों का बहुत मान होता है.” मैंने कहा ,”नहीं मैं आपरेशन के दर्द से विचलित हूँ “जबकि मैं यही सोच रही थी कि कहीं मेरी तरह बिटिया को भी परवरिश और शिक्षा के लिए भेद भाव का सामना ना करना पड़े .उसी वक़्त ससुर जी ने कहा ,”यह बिटिया एक चिकित्सक बनेगी .”मैंने भी ठान लिया यह मेरी पहली और आख़िरी संतान होगी .हालांकि एक परम्परा वादी परिवार के लिए मेरा यह फैसला बहुत नाराज़ करने वाला था ..उससे सम्बंधित प्रत्येक अच्छी बात पर घर के पुरुष तो मुझे प्रेरित करते पर स्त्रियां बहुत विपरीत प्रतिक्रिया देती .उसे हॉस्टल भेजने के दौरान विरोध होने लगा पर हमने उसे अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाई .बिटिया ने दसवीं बारहवीं दोनों में ही टॉप किया था .मैंने और पतिदेव ने उसे मेडिकल की कोचिंग के लिए कोटा के एलेन संस्थान भेजा .इस दौरान मैं सिर्फ एक बार ही उससे मिलने कोटा गई .बातों ही बातों में अपने प्रति किये भेद भाव को व्यक्त कर उसे उसके लक्ष्य के लिए बहुत प्रेरित किया .यह उसकी माँ की शिक्षा के प्रति बाबा द्वारा किये भेदभाव के वाक्ये पर उपजा आक्रोश और क्षोभ था या स्वयं को साबित करने जूनून या फिर माता के प्रति उसकी गहरी संवेदनशीलता ; उसने अपने मक़सद को बहुत ही गंभीरता से लिया .प्रथम ही प्रयास में अच्छे रैंक से सरकारी मेडिकल संस्थान में प्रवेश पा लिया .जो भेद भाव मैंने अपने बाबा से पाया था मेरी बिटिया के बाबा ने उस भेदभाव की आंच मेरी बेटी पर नहीं पड़ने दी .आज वे इस दुनिया में नहीं हैं पर उनकी सोच एक निश्चित राह पर आगे बढ़ गई है .मेरी बिटिया एक न्यूरो सर्जन बनना चाहती है.मैं उसकी सफलता में अपने प्रति किये भेद भाव के दर्द को भूल जाती हूँ.आज घर पर सभी लड़कियां बाहर पढ़ से पढ़ कर अच्छी नौकरी कर रही हैं .जो छोटी हैं वे शहर के अच्छे स्कूल में पढ़ रही हैं .पर बाबा के उस भेद भाव को मैं कभी भूल नहीं पाती .
यमुना पाठक
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