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तुम्हारा बचपन मेरे बचपन से अलग कैसे ??(बाल दिवस पर विशेष )

V2...Value and Vision
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दोस्तों मैंने कई बार इस बात का ज़िक्र किया है कि मुझे विज्ञापन देखना बहुत पसंद है.आजकल एक पेंट के विज्ञापन की एक पंक्ति मुझे बहुत आकर्षित कर रही है…..मेहमान भी कलाकार दीवार पर …हालांकि मेहमान की जगह बच्चे शब्द अधिक प्रभावकारी होता क्योंकि इस पंक्ति के साथ बच्चों को दीवार पर कुछ लिखते दिखाया जा रहा होता है.पहले बच्चे जी भर कर दीवार पर लिखते थे और साक्षरता की दिशा में नन्हे कदम रखते थे पर आजकल माएं थोड़ी सतर्क और स्मार्ट हुई हैं अतः बाकायदे white या ब्लैक बोर्ड की व्यवस्था दीवार पर इस तस्कीद के साथ की जाती है कि सिर्फ उसी पर बच्चा अपनी मासूम कलाकारी उकेरे .पर बच्चों की यह शरारत कितनी मासूम होती थी यह इस छोटे से वाकये से पता चलता है.

मम्मी जब किराने की दूकान से सामान लेकर घर लौटी तो काफी थक चुकी थी.एक कप चाय भी कौन दे .पति ऑफिस गए थे बच्चे छोटे एक सात साल का दूसरा चार साल का.उसी समय बड़े बेटे ने छोटे की शिकायत की “मम्मी ! आपने अभी कुछ ही दिन पहले दीवार पर पेंटिंग कराई थी ना और छोटू ने दीवार पर पेन से लिख दिया है.मम्मी को तेज गुस्सा आया .छोटू को बुलवाया…पूछा “क्यों पेंट की हुई दीवार पर लिख दिया है” छोटू ने मासूमियत भरी निडरता से कहा ,”हाँ लिखा है.” मम्मी जोर से चिल्लाई “क्यों पेन और कॉपी लाकर नहीं देती तुम्हे ?और एक जोरदार तमाचा गाल पर जड़ा .
वे गुस्से से उठी और दीवार साफ़ करने दूसरे कमरे में गई.जब निगाह दीवार पर पडी तो वहां लिखा देखा ” मेरी प्यारी मम्मी ”
दीवार पर लिखने कि आदत गलत हो सकती है पर इस शरारत की मासूमियत का ज़वाब नहीं.अब तो दीवार के पेंट इस तरह लगाए जाते हैं कि लिखने के बाद भी वह साफ़ हो जाए जैसा कि विज्ञापन कहता है.फिर भी आज हम देखते हैं कि बच्चे कई छोटी छोटी मासूम शरारत/खेल से नियोजित ढंग से दूर कर दिए जा रहे हैं.

वो मिट्टी से बने चकले बेलन
वो इमली के बीज के चिंगा पो
वो पुराने कपडे से बनी गुड़िया
वो गूंजों में पोषमपो पोषमपो

दाम तो कुछ भी लगते न थे
फिर भी कितने अनमोल थे
वीडियो गेम महंगे खिलौने से
तब बचपन ना पोलमपोल थे .

दोस्तों बाल दिवस पर एक महत्वपूर्ण विश्लेषण किया जाता है और वह है …..हमारा बचपन आज के बचपन से अलग था. उन दिनों बच्चे आज की तरह तकनीक से लैस नहीं थे .सच कहूँ मुझे यह विश्लेषण बेमानी सा लगता है. जिस माहौल में हम बड़े हुए उस माहौल की प्रत्येक अच्छी बातें आज भी जीवित रखी जा सकती हैं.साथ ही आज के तकनीक से लैस बचपन को सही दिशा में तकनीक का प्रयोग करना सीखा कर बच्चों की अनोखी विशेषता को बाहर लाया जा सकता है.
यहां बताना चाहूंगी कि हम लोग जहां रहते हैं…उस संस्था के नियम के हिसाब से लेडीज क्लब ,जेंट्स क्लब की तरह ही चिल्ड्रन क्लब की व्यवस्था भी की जाती है.जिसे उसी क्षेत्र की महिलाएं चलाती हैं.इसका उद्देश्य बच्चों के बीच सामाजिक मेल जोल को बढ़ावा देना …एक अपेक्षित सामाजिक व्यवहार करना और विद्यालय की पढ़ाई से हट कर कुछ नया सीखना है और मस्ती करना है..यदि बच्चों को संवेदनशील जिम्मेदार बनाना है तो उनके व्यक्तित्व में एक गहराई लानी होगी. उन्हें व्यस्कों का क्लोन नहीं बनाना है बस प्रत्येक बच्चे की विलक्षणता को बाहर लाना है.बच्चों को हमेशा डाँट डपट ..scrutinisatoin बहुत परेशान कर देता है.अतः उन्हें एक स्वछन्द आत्मानुशसित वातावरण की ज़रुरत पड़ती है.

मैंने इस दौरान या पहले भी क्लब की संचालिका के रूप में महसूस किया था कि ये बच्चे वही चाहते हैं जो हम अपने बचपन में चाहते थे.एक प्यार भरा शांत माहौल ….शांत का अर्थ यह कि उनकी भावनाओं का सम्मान हो …उन्हें अच्छी तरह समझा जाए .तकनीक उपकरण हमारे समय भी थे .मुझे याद है मुझे बचपन से ही रेडिओ सुनना बहुत पसंद था …और पापा रात १० बजे आने वाले कार्यक्रम छाया गीत सुनने तक मेरे साथ जगा करते थे .मैं मानती हूँ आज उन दिनों की तुलना में ज्यादा उपकरण हैं पर फिर भी बच्चे जब एकत्र होते हैं वे मिल कर खेलना पसंद करते हैं.वे झूला झूलते हैं …बैडमिंटन खेलते हैं …पकड़म पकड़ी खेलते हैं …फुटबॉल खेलते हैं…और अगर हमारे जैसे खेले गए और खेल नहीं खेलते तो उसके दोषी हम हैं क्योंकि हमने उन्हें कभी खो खो कबड्डी या अन्य खेल सिखाया ही नहीं . उन्हें अगर सिखाया जाए तो वे अवश्य खेलेंगे .गाँव में बच्चे आज भी ये खेल खेलते देखे जा सकते हैं.
इस बार हमने चिल्ड्रन क्लब में दीपोत्सव एक सप्ताह पूर्व ही मनाया.सभी बच्चों से घर पर उपलब्ध सामान से कोई भी एक उपहार बना कर लाने को कहा .सभी बच्चों के नाम की चिट डाली गई ..एक एक सदस्य को बुलाते …उनसे चिट उठवाते और जिसका नाम आता उस बच्चे को वह सदस्य अपना उपहार दे देता .तीन बार सदस्य विशेष की ही चिट उठ गई …दूसरे बार दो बहनों को आपस में ही उपहार मिल गए ….तीन बच्चों ने कुछ भी नहीं बनाया था अतः उनसे वहीं पर उपलब्ध चार्ट पेपर और स्केच पेन की मदद से कार्ड बनवाए ..उन्होंने अपनी भूल का और गैर जिम्मेदार होने का एहसास किया पर जब स्वयं के बनाये कार्ड देने पर उन्हें बहुत ही खूबसूरत उपहार अन्य दोस्तों से मिले तो धीरे से कहा ” अगली बार ऐसा हुआ तो मैं बहुत सुन्दर सामान बनाऊंगा ….अर्थात पूरे उमंग उत्साह के वातावरण में बच्चों ने उपहार के लें दें का आनंद उठाया पर जीवन भर के लिए कुछ शिक्षा ली ..स्वयं के मेहनत और कुशलता से बनाई चीज़ों को देने की खुशी ….जिम्मेदारी का एहसास..घर पर उपलब्ध सामान का विवेकपूर्ण प्रयोग …अपने काम को सर्वश्रेष्ठ देना जबकि यह भी पता नहीं कि किस व्यक्ति विशेष के लिए वह काम किया जा रहा है.बस काम सुन्दर होना चाहिए .

और इस तरह हम सब ने महसूस किया कि यहां पर हमारे ज़माने के बचपन और इस जमाने के बचपन का अंतर धूमिल पड़ गया . यह सही है कि आज अभिभावकों में कुछ अजीबोगरीब छदम जागरूकता आ गई है.जिसकी वज़ह से बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए कुछ कदम शिक्षकों या समाज के अन्य संवेदनशील जागरूक नागरिकों द्वारा नहीं उठाये जा सक रहे हैं .मुझे याद है आज जिस स्वच्छता अभियान को स्कूल से भी जोड़ा जा रहा है वह हमारा एक पीरियड ही होता था .कक्षा के पूरे बच्चों में से प्रति दो या तीन बच्चों को बारी बारी से अंतिम पीरियड में जब खेल या ड्रील रखा जाता उन्हें अपने क्लास रूम को साफ़ कर अगले दिन के लिए तैयार कर जाना होता था .हम तो कभी कभी पानी से पूरी क्लास धो देते थे बहुत खुशी मिलती थी ना माँ शिकायत करने आती न पिता ….उन्हें मालूम था यह भी पढ़ाई का ही भाग है.आज बच्चों से ऐसा कराया जाए तो बाल शोषण कह कर दुषप्रचारित किया जाएगा .गलतियां हम से होती जा रही हैं और हम ही कहते हैं बच्चे बूढ़े होते जा रहे हैं. बच्चों का बचपन तो बड़ों के द्वारा ही छीना जा रहा है.whatsapp पर नन्हे बच्चों के कई वीडियो आते हैं …छोटे बच्चे ने रोना शुरू किया माँ ने मुलायम कपडे से बने चिड़िआ तोते या अन्य खिलौने के जगह मोबाइल पकड़ा दिया …तेज रोशनी बच्चे की आँख पर पड़ते ही बच्चा शांत हो जाता है.और यहीं से आरम्भ होता है तकनीक उपकरणों के प्रति आकर्षण .बच्चे को पता नहीं था माँ ने सिखाया. मोबाइल खेलने की वस्तु नहीं है.यह पहले माँ या घर के व्यस्कों बड़ों को समझना होगा .
सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह कि प्रत्येक बच्चे के विशेष गुण और व्यवहार को शिक्षक और अभिभावक समझ कर ही उसके साथ व्यवहार करें .यही इंसानियत का भी तकाज़ा है और समाज के जिम्मेदार नागरिक होने का फ़र्ज़ भी है.

“मुन्ना एक होनहार विद्यार्थी है पढ़ाई में अव्वल,व्यवहार में लाज़वाब पुरे विद्यालय की जान है.”.दूसरे वर्ष में लिखा देखा-“मुन्ना बहुत शैतानी करता है और किसी की बात नहीं मानता”.तीसरे वर्ष के रिकॉर्ड में लिखा था -“मुन्ना अत्यंत ही अनुशासनहीन हो गया है”.और चौथे वर्ष के रिकॉर्ड में लिखे शब्दों को पढ़ते ही पिछले रेकॉर्ड्स में लिखे शब्दों की वज़ह स्पष्ट हो गयी .उस वर्ष के रिकॉर्ड में लिखा था “माँ की लम्बी बीमारी से मृत्यु होने की वज़ह से मुन्ना अब बहुत ही शांत और गुमसुम रहने लगा है.अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह गहरे सदमे में जा सकता है. “

शिक्षिका ने अब मुन्ना पर विशेष ध्यान देना शुरू किया और उनकी आत्मीयता से वह विद्यार्थी पुनः पूर्ववत होने लगा; मन लगा कर पढ़ाई करता,खेल कूद,वाद-विवाद संगीत सभी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेता. एक बार शिक्षक दिवस के अवसर पर मुन्ना मनकों की एक टूटी माला और perfume की आधी भरी शीशी के साथ शिक्षिका के पास आया और उनसे प्यार से कहा,”मैम ,इसे रख लो मेरी माँ के हैं”.शिक्षिका ने प्यार से दी गयी उस छोटी पर बेहद अनमोल भेंट को स्वीकार किया.कुछ महीनों उपरांत मुन्ना के पिता का स्थानान्तरण हो गया.वर्ष पंख लगा कर उड़ने लगे.और कई वर्षों बाद एक दिन शिक्षिका को किसी डॉक्टर के विवाह समारोह में शामिल होने का निमंत्रण कार्ड मिला.जब उन्होंने उसे खोल कर देखा तो उसमें एक पत्र भी था जिसकी इबारतें कुछ इस तरह थीं “आपकी उपस्थिति अनिवार्य है-मुन्ना” .मुन्ना को भला कैसे भुला जा सकता था .शिक्षिका ने मनकों की वही माला पहनी वही परफ्यूम लगाया और डॉक्टर मुन्ना के विवाह समारोह में शामिल हुई.मुन्ना अपनी teacher के गले लग कर बोला ‘”आपने मुझे इस मुकाम तक पहुंचाया आपका शुक्रिया.”उन्होंने भावुक होकर कहा,”मैंने तुम्हे बहुत कम सिखाया,असल में तुमने मुझे सिखाया कि एक शिक्षिका के रूप में मैं समाज को कई अनमोल भेंट दे सकती हूँ.”

हाँ बचपन के भेदभाव आर्थिक स्तर पर अवश्य देखने को मिल जाते हैं जो बेहद पीड़ादायक होते हैं.ऐसे विभेद को भी हम ही ख़त्म कर सकते हैं …किसी बच्चे से मज़दूरी ना कराएं …यही गुज़ारिश है.

“मॉम ! लंच में क्या-क्या बना है ? ” बारह वर्षीया बेटी ने माँ से प्रश्न किया .लगभग उसी की उम्र की राधा जो कि उस घर के घरेलू काम काज के लिए रखी गई थी ; बर्तन धोते उसके कमज़ोर हाथ ना चाहते हुए भी क्षण भर के लिए रूक गए .काम की थकान से बोझिल उसकी आँखें बरबस ही रसोई के प्लेटफार्म पर तैयार भोजन से भरे, बेतरतीब से रखे हुए बर्तनों की तरफ घूम गईं .जूठे बर्तनों की बदबू को शिकस्त देते ….उसकी जठराग्नि को और तीव्र करते …..खूशबू बिखेरते विभिन्न व्यंजन ………वह अपनी भूख से जुड़े प्रश्न याद कर बैठी .वह भी तो भूख लगने पर अपनी माता से प्रश्न करती है पर वह प्रश्न इस प्रश्न से कितना अलग होता है. ” माँ ! घर में खाने के लिए कुछ है क्या ?.”
हम दोनों ही तो बेटियां हैं और इसके पहले एक मनुष्य हैं …..फिर हमारे प्रश्न इतने ज़ुदा क्यों है ? उसे कोई सीधा ज़वाब समझ नहीं आ रहा था. उसकी बोझिल आँखों ने शायद सुनहरे सपनों का बोझ लेने से इंकार कर दिया था .वह इसे नियति मान अपने काम में जुट गई.शायद बचपन की यही अलग-अलग परिभाषा है.

इस बाल दिवस पर बस इतना ही कहना चाहूंगी कि आज का बचपन बीते कल के बचपन से अलग नहीं है ….आप के बच्चे का बचपन किसी निर्धन के बच्चे के बचपन के लिए दुःख का कारण ना बने ….ज़रुरत बस प्रत्येक बच्चे को प्यार दुलार से समझने की है .कोई भी बच्चा नाइंसाफी ,शोषण ,अत्याचार ,उपेक्षा का शिकार ना हो इसके लिए प्रत्येक बच्चे को सम्मान से समझने और उसके साथ इंसानियत का व्यवहार करने की ज़रुरत है.वह अपने प्रति किये अनाचार अन्याय उपेक्षा का विरोध नहीं करता पर इस विष को विरोध के बीज के रूप में अवश्य पाल लेता है जो एक विरोधी वयस्क के रूप में तब्दील होता है जिसे समाज और स्वयं के प्रति ना सम्मान होता है ना ही विश्वास होता है और हम कहते हैं नई पीढ़ी बिगड़ गई है .सच है ….

लोगों को अक्सर कहते सुना है कि नई पीढ़ी बिगड़ रही है
पर अहम प्रश्न तो यह कि पुरानी पीढ़ी इसे कैसे गढ़ रही है .

मैं बच्चों से सम्बंधित प्रत्येक मुद्दे को आप के सामने रखने की कोशिश करती हूँ ….मेरे लिए प्रत्येक वह क्षण बाल दिवस है .जब मैं अपने घर परिवार समाज के बच्चों की प्रगति के लिए अपना छोटा सा ही योगदान दे पाती हूँ .

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