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नेतृत्व का संकट

V2...Value and Vision
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बीती सदी के चालीस के दशक में मोतियाबिंद के ऑपरेशन का मतलब होता था आँख में १५ मिलीमीटर लम्बा चीरा और उसके बाद मरीज की आँख पर लगाने वाला हाई पावर का चश्मा.५ जनवरी १९४७ की बात है इंग्लॅण्ड के ऑप्थेमोलॉजिस्ट सर हैराल्ड रिडले लन्दन के सेंट थॉमस अस्तपताल में मोतियाबिंद का ऑपरेशन कर रहे थे.उनके साथ उनका ही एक छात्र स्टीव पैरी था जिसकी मेडिकल की पढ़ाई ख़त्म होने वाली थी .ऑपरेशन के दौरान उसके मुंह से निकला “कितने दुर्भाग्य की बात है कि आँख के बेकार लेंस को बदलने की क्षमता हमारे चिकित्सा विज्ञान में नहीं है.”यह सुनकर डॉक्टर रिडले गुस्सा हो गए और उसे ऑपरेशन थिएटर से बाहर जाने को कह दिया .
यह बात और है कि उन्होंने दूरदृष्टि का परिचय देते हुए अपने इस छात्र की विचार को आगे बढ़ाने का निश्चय किया .
अगले दो वर्षों तक वह एक अन्य आँखों की विशेषज्ञ और रीनल ऑप्टिकल कंपनी की सर्वेसर्वा जॉन पाइक के साथ काम करते रहे.उनका मक़सद मोतियाबिंद की मरीजों की आँखों में प्लांट किये जा सकने वाले लेंस बनाना था.इस दिशा में अथक प्रयास करने की बाद २९ फरवरी १९४९ को मोतियाबिंद से पीड़ित ४५ वर्षीय महिला मरीज की आँख में पहला यंत्र ऑक्युलर लेंस इम्प्लांट किया गया .दो चरणों में सम्पन्न इस ऑपरेशन की बाद वह महिला बगैर हाई पावर की चश्मे की भी साफ़ देख सकती थी.इस तरह यह तकनीक निखरते गई .कोई नहीं भूल सकता कि रिडले ने अपने ही छात्र की गैर जिम्मेदाराना बात को प्रेरणा मानकर एक तार्किक हल खोज जिसकी बदौलत मोतियाबिंद की मरीजों को ऑपरेशन की बाद अब चश्मे की ज़रुरत नहीं पड़ती है.
डी हॉक ने कितना सही कहा है ….
“it is essential to employ trust and reward those whose perspective , ability and judgement are radically different from yours .it is also rare for it requires uncommon humility tolerance and wisdom .”
यह बात मैंने कहीं पढ़ी थी .पर एक बात स्पष्ट है कि किसी संस्था में भी बात को चुनौती देने पर दो हश्र होता है एक या तो चुनौती देने वाले को हमेशा कि लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है या फिर दूसरा यह कि उसकी बात पर विचार कर आगे विकास और सुधार किया जाता है.पहली अपरिपक्व प्रतिक्रिया है जब कि दूसरी परिपक्व प्रतिक्रिया .आज भी कई संस्थानों में पद और उम्र में वरिष्ठ अधिकारी अपने से कम उम्र तथा पद रखने वाले कर्मचारियों की कोई भी सलाह मानना पसंद नहीं करते .कभी कभी तो वे नाराज होकर बेहद अपरिपक्व निर्णय सुनाते हैं .
मेरे पिता मुझे बचपन में एक कहानी सुनाते थे .और साथ में यह भी कहते “हम कहानी को ज़िंदगी में हमेशा ढाल नहीं सकते हैं .”कहानी कुछ इस तरह थी….
एक राजा अपने को विशेष सिद्ध करने के लिए उलटे सीधे काम करता था .उसके सही काम की वाहवाही तो जायज़ थी पर उसके उलटे काम पर भी ताली बजाकर उत्साह बढ़ाया जाता था .क्योंकि राजा को न सुनने की आदत ही न थी .एक दिन राजा निर्वस्त्र ही देशाटन को निकल गया .कुछ चापलूस लोगों ने कहा”वाह !क्या सुन्दर परिधान है ……” कुछ डरपोक लोगों ने जल्दी से घर के दरवाज़े बंद कर लिए ……कुछ उदासीन लोगों ने वह राह ही बदल ली जिधर से राजा की सवारी आ रही थी …परन्तु एक अबोध मासूम बच्चे ने राजा को निर्वस्त्र देख कर ताली बजा कर कहा “राजा तो नग्न है”राजा को यह सच्चाई पसंद नहीं आई और उस बालक को फांसी की सजा सुना दी .
यह भले ही कहानी हो पर आज भी किसी भी परिवार समाज संस्था या देश में यही हो रहा है .सच कहने और सच्चाई से काम करने वाले सूली पर चढ़ाये जा रहे हैं .कहीं कहीं तो बेहद आदिम सजा की तरह उनका हुक्का पानी बंद करने की कोशिश भी की जाती है.यह जानते हुए भी की आज वैश्विक गाँव की अवधारणा वाले समाज में किसी भी व्यक्ति का हुक्का पानी बंद नहीं किया जा सकता क्योंकि आज वास्तविक दुनिया से काट दिए जाने पर आभासी दुनिया व्यक्ति के अकेलपन को दूर कर देती है .उसके ज्ञान विज्ञान सूचना वार्तालाप का साधन मुहैय्या करा देती है.
दोस्तों ,नेतृत्व बहुत अनोखी जिम्मेदारी होती है .कहा जाता है कि “लीडर एक डीलर की तरह होता है जो अपने कशल व्यवहार से अपने सभी मातहतों को एकता के सूत्र में बांधे रखता है.जिस दिन लीडर के पास उसके लोग अपनी समस्या लाना छोड़ दें इसका अर्थ है अब लोगों का उस लीडर में विश्वास ही नहीं रहा , .लीडर आध्यात्मिकता से लबरेज़ होता है जिसके पास सत्य अच्छाई दया स्नेह सृजनात्मकता जैसे मूल्यों के साथ एक अंतर्दृष्टि भी होती है.आज एक अच्छे लीडर बहुत ही कम मिलते हैं .अच्छा लीडर अपने लोगों की सलाह को सुनता है …उनसे कुछ ना कुछ सीखता भी है .वह जानता है अकबर को भी बीरबल की ज़रुरत पड़ती थी.एक नेता होने के नाते उसे सभी बातों का ज्ञान है ऐसी मुगालते एक अच्छा लीडर कभी नहीं पालता है.वह किसी गलती पर सज़ा नहीं सुधार के तरीके खोजता है .उसके मूल्य इतने स्पष्ट होते हैं कि उसके लिए निर्णय लेना सरल हो जाता है फिर भी वह निर्णय लेने वक़्त दोनों या सभी पक्षों को ध्यान से सुनता है . वह अपरिपक्व ढंग से त्वरित निर्णय कभी नहीं लेता है.
लीडर सूर्य की तरह होता है .और उसके साथ काम करने वाले सभी बारिश की बूंदें जैसे .होते हैं .सूर्य और जल बूंदें मिलकर एक खूबसूरत इंद्रधनुष बनती हैं .टीम के प्रत्येक सदस्य के व्यक्तिगत विशेषता विशेष रंग की तरह दृष्टिगोचर होती है पर कार्यस्थल के विशाल आकाश में अपने अपने विशेष रंगों के साथ दिखते हुए भी समूह में वे रंग विशेष से नहीं अपितु एक इंद्रधनुष के जैसे पहचाने जाते हैं .
संक्षेप में कहूँ तो नेतृत्व मांस पेशियों की ताकत नहीं बल्कि दिल और दिमाग की ताकत है .अपने लोगों को साथ लेकर चलना ,कौन सही और कौन गलत का नीर क्षीर विवेक से निर्णय लेना ही एक लीडर से अपेक्षित है.

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