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प्यारा लगता गीत शाम का (वर्ल्ड म्यूजिक डे )

V2...Value and Vision
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प्रिय साथियों…..

विश्व संगीत दिवस(21st june) पर यमुना की संगीतमयी शुभकामना.
विश्व संगीत  दिवस की अवधारणा सर्वप्रथम फ्रांस में एक अमेरिकन संगीतज्ञ joel  cohen  के द्वारा विकसित की गई जिन्होंने summer  solstice  21 जून (उत्तरी गोलार्ध में ग्रीष्म की शुरुआत और सबसे लंबा दिन )को उत्सव के रूप में मनाने के लिए पूरी रात संगीत का कार्यक्रम रखने की शुरूआत की थी.इसका स्लोगन है “Faiterde la musique” अर्थात ‘ MAKE MUSIC’

SDC14580संगीत की शक्ति ऐसी होती है कि वह दीवारों से छन जाए….जिसे सुनकर चलते कदम ठिठक जाए…

ध्वनि या नाद प्रकृति के कण-कण में बसा है शास्त्रों के अनुसार नाद की उत्पत्ति शिव से हुई है ,नाद से ही संगीत की उत्पत्ति हुई है.संगीत का अर्थ है शब्द संयोजन का वह रूप जिसे गाया जा सके.यह एक ऐसी विधा है जो हर्ष-विषाद,सुख-दुःख,संयोग -वियोग प्रत्येक उदगार को व्यक्त करने में सक्षम है.संगीत का जन्म वेदों के अनुसार सामवेद से माना जाता है .प्रथम वेद ऋग्वेद की ऋचाओं को मधुर तथा आसानी से कंठस्थ बनाने के लिए सामवेद की रचना की गई.ऋग्वेद में एक जगह कहा गाया है‘”यदि तुम संगीत से युक्त होकर ईश्वर का स्मरण करोगे तो ईश्वर प्राप्ति का मार्ग सुगम होगा.”

संगीत के आते-जाते और विलीन होते स्वरों में एक केन्द्रीय तत्त्व विद्यमान होता है उसके प्रति जागरूकता ज़रूरी है .हम आत्मविस्मरण या हलके होने के लिए संगीत सुनते हैं पर ओशो की माने तो संगीत या नर्तन सिर्फ संगीतज्ञ या नर्तक के लिए ही नहीं बल्कि श्रोता तथा दर्शक के लिए भी गहरे ध्यान का उपाय हो सकता है.यदि संगीतज्ञ का संगीत उसकी आत्मा में ना होकर सिर्फ शरीर में हो तो वह एक technision हुआ संगीतज्ञ नहीं पर अक्सर ऐसा नहीं होता वाद्य यन्त्र बजाते हुए वादक केवल यन्त्र ही बजाता नहीं बल्कि भीतर अपने बोध को भी जगाता है संगीत बाहर रहता है पर वह संगीत के अन्तरस्थ केंद्र के प्रति सदा सजग बना रहता है……..वह आनंद लाता है……..वह शिखर बन जाता है.

संगीत के कई रूप हैं पर सत्य यही है कि जो संगीत कर्णप्रिय भावपूर्ण होते हैं वे ही सदियों से पीढी दर पीढी संवाहित होते जाते हैं संगीत की आध्यात्मिक और आतंरिक शक्ति हमें सही जीवन दिशा देती रहती है.

आज भी बचपन की कितनी सारी शिक्षाएं,कविताएँ हमें जबानी याद हैं इसके पीछे वज़ह सिर्फ बाल मस्तिष्क की तीव्र ग्राह्यक्षमता ही नहीं बल्कि पाठ और शिक्षाओं का संगीतबद्ध होना भी एक कारण था.आज भी हिन्दी कविताओं से जुड़ाव इसलिए बरकरार है क्योंकि हमारे हिन्दी के शिक्षण श्री झा जी की संगीत में गहरी रुचि होने की वज़ह से हिन्दी की कक्षा में प्रत्येक कविता,दोहा ,चौपाई वे गीतबद्ध कर पढ़ाते ;शबनम की बूंदों की मानिंद ठंडक पहुंचाती उनकी आवाज़ में पिरोई हर कविता चटकती कली सी सुन्दर लगती जो हमें सुर ,भाव,विचारों की अद्भुत जग में विचरण कराती और संगीत की कक्षा में वे ही कविताएँ वाद्य यंत्रों के साथ गेय हो जाती थीं. खादी के श्वेत ,शुभ्र धोती कुर्ते के साथ हलके बादामी रंग के जैकेट में चांदी के रूपहली चमक का एहसास कराते उनके केश और शांत मुख मंडल पर श्वेत घनी मूंछे …..उनके पूरे व्यक्तित्व को बेहद आकर्षक बनाती…..जब वे कविता को गीतबद्ध कर हमें सिखाते तो सात सुर ‘सा रे ग मा पा ध नि ‘मानो इन्द्रधनुषी सात रंगों (VIBGYOR -violet,indigo,blue,green,yellow,orange,red)में बिखर उठते और उन गीतों की गति ऐसी…. जैसे सात रंगों को वर्तुलाकार घुमा दिया गया हो और सिर्फ एक रंग प्रकट हो जाता शुभ्र श्वेत रंग …..शांत,सौम्य सादगी का प्रतीक जिसमें संगीत की रूहानी शान्ति हमें मिलती…… ये कक्षाएं कभी बोरिंग नहीं होती थीं.काश !!! तकनीक उन दिनों भी ऐसी ही अति विकसित होती तो वह आवाज़ सिर्फ मेरे मस्तिष्क में ही ज़िंदा ना होती बल्कि आवाज़ की दुनिया के प्रत्येक शख्श तक पहुंचा पाने में मैं सक्षम हो जाती….विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रम में भी उन्ही कविताओं की नृत्य नाटिका बनती जिसे हम विद्यार्थी बड़े शौक से मंचन करते थे. कई कविताएँ गीत बन कर आज भी यादों में चिरंजीवी हैं…….

1)   साहिर लुधियानवी जी की ‘पिघला है सोना,दूर गगन पर,फ़ैल रहे हैं शाम के साए’

2)   जयशंकर प्रसाद जी की ‘अरुण यह मधुमय देश हमारा ,जहां पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा”

3)   जयशंकर प्रसाद जी की ही ‘बीती विभावरी जाग री ,अम्बर पन घट में डुबो रही तारा घट उषा नागरी’

4)   सूरदास जी की ‘मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो’

5)   तुलसीदासजी के कवितावली की ‘अवधेश के द्वारे सकारे गई,सूत गोद के भूपति लै निकसे’

6)   निराला जी की ‘भारती जय विजय करे,कनक शश्य कमल धरे’

7)   हरिवंश राय जी की ‘अंधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है’

8)   गोपाल सिंह नेपाली जी की ‘निज राष्ट्र के शरीर के श्रृंगार के लिए तुम कल्पना करो नवीन कल्पना करो’

9)   सुभद्राजी की ‘बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी’

इसी तरह  10) ‘माँ कह एक कहानी राजा था या रानी’ 11  )तरनि तार दो अपर पार को’ 12 )लहरों की ताल पर झूम उठी ज़िंदगी,माझी का यही पतवार रे,कई गीत कुछ उनके स्वयं के लिखे होते तो कुछ प्रसिद्ध कवियों के होते थे.उन्होंने व्याकरण की परिभाषाओं को भी गीत के रूप में हमें याद कराया था…मसलन…

संज्ञा किसी नाम को कहते,

व्यक्ति,वस्तु या स्थान हो

सर्वनाम है संज्ञा के बदले

बच्चों तुम्हे ये ज्ञान हो .

जब संगीत की कक्षा होती तो वाद्य यंत्रों में सितार,वीणा,गिटार,हारमोनियम से परे मुझे जल तरंग बजाना बेहद भाता था.कटोरियों में रखे जल में से सही सुर उत्पन्न करने के प्रयास में कटोरियों से थोड़ी मात्रा में पानी निकालना और डालना …और जब सही सुर की हरी झंडी शिक्षक की तरफ से मिल जाती तो मैं स्वयं को एवरेस्ट की ऊँचाइयों पर खड़ी महसूस करती थी हाँ,हारमोनियम पर सिर्फ ‘ॐ जय जगदीश’ ही बजा पाती थी.

इसके साथ ही हमें बेहद मासूमियत भरे गीत सिखाये जाते थे.’मुन्ना बड़ा प्यारा,मम्मी का दुलारा,कोई कहे चाँद कोई आँखों का तारा’ फिल्म ‘सीमा’ का ‘सुनो छोटी सी गुडिया की लम्बी कहानी’,1961  की फिल्म घराना का अपनत्व भरा गीत ‘दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ ,1960  की फिल्म ‘मासूम ‘का गीत नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए,बाकि जो बचा था काले चोर ले गए,1979  में ‘कर्त्तव्य’ फिल्म का गीत ‘चन्दा मामा से प्यारा मेरा मामा’ रिश्तों की खुशबू से महकते ऐसे कई गीत हम सीखते ये गीत आज क्या गुम हुए ………..मानो इन रिश्तों ने भी दम तोड़ दिया है.वर्त्तमान बाल गीत ‘छोटा बच्चा जान के हमको ना समझाना रे’ या फिर ‘बम बम भोले मस्ती में डोले ‘ जैसे गीत उन दिनों के मधुरता के आगे कहीं नहीं टिक पाते .हाँ, कुछ गीत जैसे ‘तारे ज़मीन के’ में’   “मैं तुझे बतलाता नहीं पर अँधेरे से डरता हूँ माँ ” बच्चों के दर्द को बखूबी बयान करता है पर उसमें बाल मासूमियत नहीं बल्कि वक्त से पूर्व विकसित परिपक्वता ज्यादा झलकती है. .आज भी याद है गणित के शिक्षक ने sine,cose ,tangent को rhymes जैसे some people have curly hair turned purplish brown से सिखाया s,c,t sine cosin, tangent .अंग्रेज़ी ग्रामर के vowel -A,E,I,O,U  को भी ऐसे Rhymes बनाए कि सदा के लिए याद हो गए.

जब विद्यालय की शिक्षा समाप्त हुई तो संगीत के भिन्न रूप की तरफ रुझान हुआ…अब मुझे ग़ज़ल आकर्षित करने लगे.सबसे पहले जो ग़ज़ल सुनी वह आल टाइम पसंदीदा बन गई वह ग़ज़ल थी सुदर्शन फाकिर की लिखी और जगजीत साहब की गाई……

‘ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी. ‘फिर तो चन्दन दस,विशाल गोस्वामी,पंकज उधास सभी की रूपहली आवाज़ नत्य एक घंटे अवश्य सुनती .ग़ज़लों के शेर और उनकी तहजीबी उर्दू भाषा बेहद लुभावनी लगती थी.

जब मातृत्व की गरिमा को पाया तो स्वाभाविक रूप से लोरियों से प्यार हो गया…मातृत्व के असीम प्यार को भाषा देती लोरियों के झूले में मेरी बिटिया कब सो जाती पता ही ना चलता था .मैं अक्सर सोचती लोरियां इतनी सौम्य,शांत,पवित्र,मासूम,उदास और इस दुनिया से परे किसी अन्य लोक को जुबान क्यों देती हैं?????????शायद शिशु की पहली दुनिया का आभास करती,उसे शान्ति,सुरक्षा प्रदान कर निद्रा देवी की गोद में ले जाने की क्षमता लोरियों की इन्ही विशेषताओं में होती हो…..लोरी सुनते वक्त कभी उसका रोना….कभी मुस्काना ….मानो लोरी के भाव के साथ तालमेल बिठाने का प्रयास होता……1)’नन्ही कली सोने चली …’2) धीरे से आजा अखियाँ में….3)मेरे घर आई एक नन्ही परी…4)चंदा है तू मेरा सूरज है तू….5)चन्द मामा दूर के पुए पकाएं पूर के….जैसी कई लोरियां सुनाती..आज जब बिटिया बड़ी हो रही तो सोचती हूँ उसकी शैशवावस्था तो छूट ही गयी पर उसके बड़े होने के साथ उसके दूर होने का भय भी डराने लगता है.

मेरे जीवन के संगीत सागर  में अब तक जितनी लहरें उठी उसमें सर्वाधिक शक्तिशाली मेरे पिता द्वारा सुनाई कविता का गीत बद्ध रूप रहा ..कविता किसकी है यह तो नहीं मालूम पर इसके शब्द बेहद मुखर थे और सुर  बेहद मधुर… कुछ इस तरह….

प्यारा लगता गीत शाम का,प्यारी ठुमरी रात की

ग़ज़ल चांदनी बीच रूबाई,प्यारी लगे प्रभात की.

रंगों का हो जहां भुलावा ऋतु प्रिय वही वसंत की

तान मुझे प्यारी लगती है जो उत्सव के अंत की .

दोस्तों, संगीत की रूहानी शक्ति वास्तव में हमें प्रकृति से अपने आप से और समस्त प्राणियों के भावों से जोड़ती है तभी तो हमें कुदरत के रग-रग में संगीत बसे होने का एहसास होता है.

It plays an incredible role

in uplifting our spirit…

transforming our life…

gives us

internal & spiritual strength..

flight to heart..

gaiety to life…

expression to soul..

soothes us..

comforts us…&

takes in the world of..

TRANQUILITY

YES,,,,

its MUSIC …..its MUSIC.

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