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प्रीत की नदी-‘यमुना’

V2...Value and Vision
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शुरुआत Jess.c.scott की एक सुन्दर सी पंक्ति से करती हूँ…..

“when someone loves you ,the way they say your name is different.you know that your name is safe in

their mouths.”

इस ब्लॉग को लिखने की प्रेरणा मुझे अपने एक साक्षात्कार में पूछे गए एक मनोरंजक प्रश्न से मिली.प्रश्न था,“आपका नाम यमुना है ,क्या आप इस नाम की पौराणिक महत्ता जानती हैं..क्या नाम के व्यक्तित्व पर पड़ने वाले प्रभाव से आप इत्तिफाक रखती हैं.”

dale carnegie का कथन मानस पटल पर उभर आया

“names are the sweetest & most important sound in any language.”

दोस्तों,अपना नाम सबको बहुत प्रिय होता है क्योंकि यही नाम हमें पहचान देता है .नाम कानों को प्रिय लगने वाला अक्षरों का समूह ही सिर्फ नहीं होता बल्कि इसमें अर्थ होता है जो हमें परिभाषित भी करता है.कहा भी जाता है…words have meaning;names have power.उस प्रश्न का ज़वाब तो मैं संक्षिप्त ही दे पाई थी पर आज 15 वर्षों के बाद मन इस विषय पर ब्लॉग लिखने को कर बैठा.आप में से कुछ लोग नाम के महत्व को मानते होंगे.कर्ण ने महाभारत के युद्ध में जिस आदमी को सारथी चुना वही उसकी हार का कारण बना …उसका नाम था ‘शल्य’जिसका अर्थ होता है,संदेह,शंका,संशय.कर्ण का अर्थ होता है कान .सब शंकाएं कान से ही प्रवेश करती हैं.अपने नाम से प्रभावित शल्य शंका और संदेह से ग्रसित हो कर्ण से कहता,”आप की जीत मुश्किल सी लगती है” और युद्ध का परिणाम सामने था.कभी-कभी नाम का प्रभाव नहीं भी पड़ता है पर अधिकांशतः नाम व्यक्तित्व पर प्रभाव डालता है.
नाम के महत्व पर कुछ प्रसिद्ध कथन लिख रही हूँ….

romeo and juliet में shakespere का कथन है …..

“what’s in a name ?that which we call a rose
by any other name would smell as sweet .”

जापानी कहावत है…”tigers die & leave their skins;people die & leave their names.”

W.H.Auden…”Proper names are poetry in the raw..like all poetry they are untranslatable.”

David S. Slawan..”names are an important key to what a society values.Anthropologists recognize naming as ‘one of the chief methods for imposing order on perception.”

खैर ,नाम के प्रभाव पर ब्लॉग फिर कभी लिखूंगी अभी उस प्रश्न के उत्तर के विस्तार में ब्लॉग को सीमित करना चाहती हूँ.

यमुना का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व …..

यमुना का शाब्दिक अर्थ ‘जुड़वां’है क्योंकि यह गंगा के साथ मिल जाती है.सनातन संस्कृति में ‘यमुना’को देवी(यमी) का दर्ज़ा दिया गया है . इसका उद्गम उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में बंदरपूछ पहाड़ के दक्षिण पश्चिम ढाल से ६३८७ मीटर की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री से है.यमुनोत्री धाम का कपाट खुलने के साथ ही चार धाम (यमुनोत्री,गंगोत्री,केदारनाथ,बद्रीनाथ)की यात्रा शुरू हो जाती है. यमुना को धर्मग्रंथों में भक्ति का उद्गम माना गया है जबकि गंगा को ज्ञान की अधिस्थात्री माना गया .भक्ति से ही व्यक्ति ज्ञान की तरफ प्रवृति होता है.अतः धर्मग्रंथ पहले यमुनोत्री के दर्शन की सलाह देते हैं (शायद हमारे राष्ट्र गान ‘जन गण मन ‘में यमुना का नाम पहले लेने के पीछे भी यही वजह हो)पुराणों के अनुसार यमुना सूर्यदेव तथा सरनयु की पुत्री है .यम और शनिदेव इसके भाई हैं.यमुना(यमी)ने यम को राखी बांधी और अभिभूत यम ने घोषणा कि जो भी किसी स्त्री को बहन मान राखी बन्धवायेगा उसे दीर्घायु होने का वरदान मिलेगा.इसलिए कहते भी हैं कि यमुना में डुबकी लेने से मौत का भय चला जाता है
उत्तराखंड में यमुनोत्री से निकलकर प्रयाग तक प्रवाहित यमुना ब्रजमंडल की आत्मा है.वैषणव इसे श्रीकृष्ण की पटरानी मानते हैं. वासंतिक नवरात्रि की षष्ठी को ब्रजरानी यमुना का जन्म दिवस मनाया जाता है.वैष्णव जन यमुना को इस दिन चुनरी चढ़ाते हैं जो नदी के एक पार से दूसरे पार तक सैकड़ों साड़ियों को जोड़ कर बनाई जाती है.भगवान श्रीकृष्ण से यमुना का अटूट रिश्ता है.इसका तट श्रीकृष्ण की लीलाओं का साक्षी है.कृष्णा को नन्द के आँगन तक पहुँचाने का माध्यम यमुना ही बनी,उनके पग छूने को व्याकुल यमुना ने अपना मक़सद पूरा होते ही वासुदेव जी को रास्ता दे दिया…गोपाल की बंसी धुन बन यमुना में समा गई..और वह नवरस की साक्षात प्रतिबिम्ब बन गई..कंस को मारकर आये कृष्णा ने यमुना के आँचल में ही शान्ति पाई थी. यमुना पर हलधर का भी मन मोह गया था पर कृष्ण के रंग में रंगी कालिंदी को हलधर का गौर वर्ण नहीं भाया.भगवान् श्रीकृष्ण के सभी स्वरूपों और श्रीविग्रहों को स्नानाभिषेक कराने और उनका नैवैद्य बनाने के लिए अधिकांशतः यमुना जल का प्रयोग किया जाता है.पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक महाप्रभु श्रीबल्लभाचार्य ने यमुनाष्टक स्त्रोत द्वारा इनकी महिमा का गुणगान किया है.वल्लभाचार्य जी के अनुयायी जिस तस्वीर की पूजा करते हैं उसमें श्रीनाथजी(श्रीकृष्ण),महाप्रभु(वल्लभाचार्य) और यमुना जी की तस्वीर होती है.यमुना जी अक्सर तस्वीर में पुरुष वेश भूषा में होती हैं.इसके पीछे कहानी यह है कि राधा जी से कृष्णा रूठ गए थे और लाख मनाने पर भी नहीं मान रहे थे…तब राधाजी ने अपनी सखी यमुना से मदद माँगी.यमुना श्यामली तो थी ही उसने कृष्ण जी जैसी साज-सज्जा और वेश-भूषा धारण कर लिया और श्रीकृष्ण के समक्ष खड़ी हो गईं .कृष्ण जी हूबहू अपने जैसी प्रतिमूर्ति देख कर हैरान हुए और तुरंत नाराज़गी छोड़ दी.कालिंद पर्वत से बहने के कारण इसे कालिंदी भी पुकारा जाता है.महाभारत युग में पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ यमुना के तट पर ही बसा जो आज आधुनिक दिल्ली है.सेल्युकस यूनानी सेनापति ने इसे लोमानेस नाम दिया था..megasthnese ने अपनी पुस्तक ‘इंडिका’में यमुना क्षेत्र को लैंड ऑफ़ सूरसेन का नाम दिया .
प्रेम की नदी यमुना सबकी चहेती है …..उसने सागर में स्वतन्त्रता से मिलने का मोह ना करते हुए गंगा में विसर्जित होना पसंद किया ताकि भक्ति और ज्ञान के अद्भुत संगम की नगरी के रूप में प्रयाग को कृतार्थ कर सके.
यमुना द्वापर युग में जहां प्रेम और श्रृंगार के संयोग पक्ष की साक्षी बनी वहीं मध्यकालीन युग में भी वियोग पक्ष की साक्षी स्वरुप प्रेम की अमर

गाथा बन कल-कल बह रही है.आगरा में यमुना के तट पर बना ताजमहल शहंशाह शाहजहां के आँखों का आंसू बन यमुना के नूर को बढ़ा रहा

है..
उत्तराखंड,हरियाणा,उत्तर प्रदेश,हिमाचल प्रदेश,दिली राज्य से गुजरती यमुना टोंस,बेतवा,चम्बल,केन जैसी नदियों को स्वयं में मिलाती करीब १३७६ किलोमीटर की यात्रा तय करती है.बागपत,दिली,नोयडा,मथुरा,आगरा,फ़िरोज़ाबाद,एटवाह,कालपी,हमीरपुर,इलाहाबाद यमुना के तट पर बसे शहर हैं.आधुनिक यमुना प्रदूषण के विषैलेपन से विषाक्त हो रही है….यमुनोत्री से वज़ीराबाद तक यह अमूमन साफ़ रहती है..पर वज़ीराबाद तथा ओखला बैराज के बीच १५ नालों से आया औद्योगिक निष्काषन इसे प्रदूषित कर देता है.एक सर्वेक्षण में biochemical oxygen demand values (BOD) 14-28 mg/l पाये जाने और high coliform content के कारण इसे sewage drain कहा गया. शुद्धिकरण के नाम पर अनेक अभियान चलाये जा रहे हैं पर आधुनिकीकरण के कालिया नाग ने उसे विषाक्त कर दिया है.यमुना की जलधारा हर युग में स्यामल रही …बस वजहें बदलती रही…द्वापर युग में यह श्याम रंग में रंगी तो आधुनिक युग में प्रदूषण के रंग में स्यामल हो गई.

मैं यमुना हूँ…….जानती हूँ अपना हुनर
कैसे पतली धार से बहते -बहते
धारा में तब्दील हुआ जाता है
कठोर चट्टानों पर बहते हुए
कैसे पदचिन्ह छोड़ा जाता है
दुर्गम राहों से गुजरने पर भी
कैसे वज़ूद बचाया जाता है
वन पर्वत बियाबान को भी
कैसे आबाद किया जाता है

मैं यमुना हूँ…जानती हूँ अपनी प्रवृत्ति

सुनहरे धान,रूपहली सरसों संग
संगीत अपनी ही सुन बहती हूँ
सागर मेरा अंतिम सत्य नहीं
गंगा के ज्ञान संग मिलती हूँ
धारा को तृप्त करने को मैं बन
बादल नभ पर फिर उभरती हूँ
अपना वज़ूद और अपना सत्य
कि बूँद-बूँद से ही मैं बनती हूँ

मैं यमुना हूँ…..जानती हूँ अपना मक़सद

हर मोड़ और हर डगर पर
बाधाओं से सृजन करना है
उर्वर मृदा में परिवर्तित करने
मुझे चंचला बन बहना है
अंजुरी,पात्र सब के मान हेतु
बस उन सा ही ढलना है
बेसुध बहते हुए भी मुझे
दोनों पार के प्रति सजग रहना है

मैं यमुना हूँ…जानती हूँ स्वाध्याय

समक्ष मेरे हर चट्टान है खोलती
सफ़र का नित नूतन अध्याय
कहती है ना हो डबरा ना पोखर
ना झील और ना ही तालाब
पत्थर-पत्थर चूर्ण बना सकती हो
बंजर धरती को महका सकती हो
फिर वही राधा कान्हा की वेणु संग
मधुर प्रेम संगीत बना सकती हो

मैं यमुना हूँ…जानती हूँ अपनी मर्यादा

शैशवास्था की शोख चंचलता से
युवास्था में सर्पिल हो जाउंगी
उन्मुक्त वेग में भी धीर गम्भीर
बन मंज़िल को पाउंगी
कितना भी खाली होती जाऊं
फिर-फिर मैं भरती जाउंगी
सागर तक की यात्रा में उपकृत
कूल कगारों को कर जाउंगी.

मैं यमुना हूँ…बस इतनी इल्तज़ा मेरी

मेरे सतत प्रवाह को ना रोकना
उन्मुक्त वेग से मुझे बहने देना
बाँध बना जो एकत्र करोगे तो
मैं पोखर बनकर सड़ जाउंगी
भूल प्राकृतिकता स्व गति की
अपनी ही बाधा से मर जाउंगी
प्रदूषित करोगे तो वेणु की धुन
ताज की सफेदी भी भूल जाउंगी

मैं यमुना हूँ…..वादा करती हूँ

सागर से बादल बन बार-बार
नीली धारा से हरियाली बनाउंगी
प्रेम की नदी थी मैं ,प्रीत की नदी हूँ
और प्रीत की नदी ही कहलाऊंगी
मिटाओ सारे प्रदूषण तल औ सतह से
देखना; प्रीत की नदी मैं मुस्काउंगी
मुरली की धुन ताज की खामोशी बन
साहित्य संगीत कला में रच बस जाउंगी.

the river makes music even as it lives with rocks (obstacles)that hinders its path.the river bypasses

them,caresses them continuously and in the meantime also makes music as it gurgles away towards its

destination.
-sheel vardhan singh

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