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कुछ महीनों पूर्व एक रिश्तेदार के यहां जाना हुआ था.उनके एकलौते पुत्र की बहुत ही कम उम्र में अकाल मृत्यु हो गई थी.शोक मनाने वाले और संवेदना प्रकट करने वालों की कोई कमी ना थी.कुछ तो वास्तविक संवेदना थी और कुछ भौतिक सुख सुविधाओं की आस में नज़दीकी हासिल करने का कल्पनीय मोह था.ऐसे दुखद अवसर पर एक चिर परिचित जुमला सुनाई दिया,”बड़ा नेक इंसान था कभी किसी का बुरा नहीं चाहा ,ईश्वर भी बहुत निर्दयी हैं अच्छे लोगों को ही अपने पास जल्दी बुला लेते हैं.”
“बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है ” (bad money drives out good )तो क्या यही नियम मनुष्य के साथ भी लागू होते हैं ???क्या ईश्वर भी इस नियम के अधीन है कि वह अच्छे लोगों को चलन से बाहर कर देता है ????विदाई की कोई भी घड़ी हो लोग उस सम्बंधित व्यक्ति के विषय में अच्छा ही बोलते हैं…सच कहूँ तो फेअरवेल शब्द को उलटा कर दो तो वेलफेअर हो जाता है यानी कल्याण अच्छाई की बात .
एक पढ़ी हुई घटना याद आती है.(osho )एक गाँव में प्रचलन था कि अगर किसी की मृत्यु हो जाए तो श्मशान ले जाने पर अंतिम क्रिया तब तक नहीं की जाती थी जब तक कि उसके विषय में कोई अच्छी बात ना कह दी जाए. एक ऐसे व्यक्ति की मृत्यु हुई जिसने कभी कुछ अच्छा ना किया था अर्थात वह बेहद बुरा इंसान था .एक घंटे बीते ….दो और…. फिर तीन .अंतिम क्रिया तो करनी थी अन्यथा लोग घर कैसे वापस जाते .अंत में एक बुजुर्ग खड़े हुए और उन्होंने कहा,”यह आदमी वैसे तो बहुत बुरा था पर फिर भी अपने अन्य तीन भाईयों से थोड़ा अच्छा था.बस फिर क्या था लोगों ने आनन फानन अंतिम क्रिया की और घर वापस आये .
किसी इंसान को अच्छा तभी कहा जाता है जब वह चलन से बाहर हो जाता है या फिर अच्छा होने की वज़ह से उसे चलन से बाहर कर दिया जाता है.सच पूछिए तो अच्छे इंसानों का सबसे बड़ा नुकसान यही होता है कि वे बुरे लोगों के लिए जगह खाली कर देते हैं. आज भी अनैतिक होकर,बेईमानी कर लोग बच जा रहे हैं तो यह इसलिए कि दुनिया अच्छों से रिक्त नहीं हुई है.उन पर आसानी से तोहमत लगा कर उन्हें चलन से बाहर कर स्वयं बचा जा सकता है वे उफ़ भी नहीं करेंगे सच है ऐसे अच्छे लोग ….बुराई के विरोध में आवाज़ ना उठा कर स्वयं दरकिनार हो जाते हैं या फिर आवाज़ उठाये जाने पर बुरे लोगों द्वारा चलन से बाहर कर दिए जाते हैं .नौकरी या सेवा क्षेत्रों में तबादला ,निलंबन जैसे हथियार उन्हें मिटा देने के लिए अस्त्र का काम करते हैं.झूठ की बाज़ार में सत्यवादी……बेईमानों की भीड़ में ईमानदार…….भ्रष्टाचारियों के समूह में सदाचारी …अनैतिक कृत्य में संलग्न लोगों के समक्ष नैतिक …..ठीक उसी तरह चलन से बाहर हो जाते हैं जैसे कटे फटे नोट या कम मूल्य वाली मुद्रा (bad money) अधिक मूल्य वाली मुद्रा (good money )को चलन से बाहर कर देती है.जिस प्रकार अच्छी मुद्रा को लोग संग्रह कर लॉकर में जमा कर देते हैं वैसे ही अच्छे लोगों को महान घोषित कर उसे विशेष बना देते हैं और विशेष लोग समाज की भीड़ का हिस्सा कैसे बन पाएंगे ?यह अच्छों से निजात पाने का सबसे अच्छा तरीका है .
अब गौर तलब बात यह कि लोग भूल जाते हैं कि बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को भले ही चलन से बाहर कर दे पर बुरी मुद्रा की बुराईयाँ उसी पर इस कदर हावी हो जाती हैं कि वह एक दिन कूड़ेदान का हिस्सा बन जाती है और तब अच्छी मुद्रा स्वयं चलन में आ जाती है पर अफ़सोस की बात यह है कि वह अच्छी मुद्रा भी लाखों के हाथों से गुज़रते हुए फिर अपना मूल्य खो देती है और बुरी मुद्रा बन जाती है.शायद यही चक्र चलता रहता है.
हर वक़्त जहां पत्थरों की बारिश हो वहां शीशे का कारोबार करना मुमकिन नहीं है यह तो अपना ही नुकसान है .पर शीशे की गुणवत्ता रखने वाले ,साथ ही पत्थरों को मात देने वाली समतुल्य वस्तु का सृजन करना या ऐसी तकनीक जो पत्थर को पिघला दे की व्यवस्था ही असली प्रज्ञा है .उस कला को सीख कर ही पत्थरों की बारिश के बीच भी शीशे का कारोबार बखूबी किया जा सकता है या फिर पत्थर को ही पानी बनाया जा सकता अर्थात प्रज्ञा द्वारा ही बुराई के बीच अच्छाई बचाई जा सकती है.
है………………………………और………….फेअरवेल सच में वेलफेअर बन जाता है.
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