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बन्दे में है दम-आज का ‘GANDHI ‘

V2...Value and Vision
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दोस्तों कुछ गीत बहुत सदाबहार होते हैं….“कोई ताज़ा हवा चली है अभी …दिल में एक लहर सी उठी है अभी .”
या फिर……

“बस आप..आप..आप ही दिल में समाये हैं”

“तेरे प्यार (नीतियों)का मुझ (सब)पर हुआ ये असर है “

दोस्तों ताज़ा लहर यह उठी है कि …मैं राजनीति विषय पर लिखना पसंद नहीं करती थी..पर मुझे राजनीति पहली बार रास आ रही है क्योंकि मैं इसकी झलक जनतंत्र में जननेता की जननीति के रूप में देख पा रही हूँ..”हम राज करने नहीं आये हैं राज जनता करेगी हम एक्सीक्यूट करेंगे” अरविन्द के इस कथन ने राजनीति से राजशाही की छाया को दूर कर दिया…..’राज’ शब्द तिरोहित सा लग रहा है…..हालांकि इसमें चुनौतियां हैं ….ये कीचड में अरविन्द (कमल) सा खिलने की कवायद सच में उनके नाम को सिद्ध कर पायेगी ?????उनकी पार्टी सच में सफल हो पायेगी या नहीं यह तो वक्त ही बतायेगा ऐसा हमारे प्रधानमंत्री जी ने भी माना है…पर अगर अरविन्द और उनकी पार्टी आप ने हिम्मत ,सहनशीलता और साहस का हाथ थाम लिया तो देश की राजनीति वाकई भविष्य में राजशाही की केंचुली छोड़ जननीति में तब्दील हो जायेगी,क्योंकि कुदरत के इस व्यवस्था से कोई इंकार नहीं कर सकता कि कमल (अरविन्द) कीचड में ही सम्पूर्णता से खिल पाता है …..अरविन्द को मैं आज का GANDHI  कह सकती हूँ 1869-1948 के गांधी नहीं बल्कि

(GANDHI ……Genius Able Nascent Dignitary with Honest Intellect  )

बस आप आप आप ही दिल में समाये हैं …पहले प्रधान मंत्रीजी…फिर जयराम रमेश जी और आज शत्रुघ्न सिन्हा जी ने भी आप की तारीफ़ की….शत्रुघ्न सिन्हा का यह कहना कि “राजनीतिक दृष्टिकोण से आप बाप साबित हो रही है..सब को इससे कुछ सीखना चाहिए.”…अच्छा लगता है यह सकारात्मक परिवर्तन.
और आप की नीतियों का असर तो यह कि वसुंधरा जी ने अपनी सुरक्षा में कटौती की मंशा जाहिर की…महाराष्ट्र में बिजली बिलों की नई नीतियों के लिए कवायद शुरू हो गई है.इन सब परिवर्तन ने तो सच में राजनीति के एहसास को जननीति में तब्दील कर दिया है.


आप के उदीयमान सूर्य पर लगभग सब ने भरोसा दिखाया है क्योंकि राजनीति/जननीति  M3 …..muscles,money ,mafia के तिलिस्म को छोड़कर संतुलन की वास्तविकता पर लौट गई है.आम आदमी का दायरा चाय बेचने वाले..रिकशे वाले ….से ज्यादा ईमानदार आदमी का पर्याय बन गया है.प्रधानमंत्री जी ने भी जनभागीदारी का स्वागत तथा सम्मान किया है.६६ वर्ष की स्थापित राजनीति में सेंध लग गई….देश की आजादी परिपक्व हो गई है….उसकी जरूरतें…उसके ढंग…उसकी शैली समयानुसार बदलनी चाहिए थी…उसका परिमार्जन,परिष्करण…अपेक्षित था.आजादी के उम्र के इस पड़ाव में तिरंगे के केसरिया….हरा जैसे रंगों के बिखराव को समेटना आवश्यक था …. ….हिन्दू,मुसलमान,सिख ईसाई….सवर्ण-दलित…ऊँच-नीच…साम्प्रदायिकता-धर्मनिरपेक्षता……परम्परागत राजनीति की भेड़चाल से परे होकर २४ घंटों के चक्र में घूमती आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली दमनमुक्त..विशेषणमुक्त जननीति का आविर्भाव ज़रूरी था.सभी जनीतिक दलों के जननेताओं से मेरा एक ही आग्रह है,ये ना कहें कि हम तब्दीली के लिए तैयार नहीं …बल्कि अपने अनुभव से इस नवोदित विकल्प को सही पल्लवन और पोषण का परिवेश दें उसे किसी प्रकार का चैलेन्ज नहीं बल्कि स्वस्थ विकल्प मान मार्गनिर्देशन करें ठीक उसी प्रकार जैसे एक पिता नवजात शिशु के जन्म पर सर्जक होने के साथ अपनी जवाबदेही के एहसास से परिपूर्ण होकर अपनी परिपक्वता का परिचय देता है.”

इक़बाल का एक मशहूर शेर है…

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है

बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा

हाँ ये ज़रूर है कि इस पूरे घटनाक्रम में आम जनता थोड़ा सशंकित भी है..६६ वर्ष की राजनीति ने पूर्णतः श्वेत-श्याम के साथ कुछ धूसर रंग भी देखे हैं …अरविन्द स्वयं को तथा अपने विधायकों की उज्जवल छवि को समय-समय पर बिन होली ही छोड़े गए स्याह रंगों की बौछार से कैसे बचा पाएंगे ??उन्हें अपने काम से ही सबको ज़वाब देना होगा.कहते हैं “power corrupts and absolute power corrupts absolutely” .अगर किसी को भ्रष्ट करना हो तो उसे पावर दे दो ….अतःवे पावर में रहकर उसके अतिशयता से बचकर और जननीतिक रूप में स्वस्थ रहने के लिए राजनीति के ‘मनसा,वाचा,कर्मणा’की त्रिफला का सेवन चिकित्सीय परामर्श अनुसार ही करें…अति उत्साही या अति निराश होने की भी ज़रुरत नहीं है…बात-बात पर निर्णय ना बदलें….देश की जननीति घर ,बंगले, गाड़ी के आकार के संकीर्ण और बेमानी बहस से भी आगे जाती है जिसमें बिजली पानी के अलावा देश की विदेशी देशों से सम्बन्ध..अपने ही देश के राज्यों की सरकारों से कूटनीतिक सम्बन्ध..जैसी आकाशीय विराटता भी मायने रखते हैं जिसका प्रभाव आम जनता पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही रूप में पड़ता है.माननीया शीला दीक्षित की सरकार या कांग्रेस की सरकार ने कुछ भी अच्छा नहीं किया यह बात सत्य नहीं है….हाँ ,कुछ कमियां अवश्य रही जिसे आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने भी माना है ….आप पार्टी का बड़प्पन इसी बात में है कि वे राजनीति की बगावती या इन्क़लाबी जुबां का बिलकुल इस्तेमाल नहीं करेंगे …राजनीति अब जब जननीति में तब्दील हो रही है तो फिर इसकी तहज़ीबी जुबां का ही प्रयोग करेंगे .किसी पर व्यक्तिगत आक्षेप से उन्हें बचना होगा.अपने दल के अन्य जननेताओं को भी वे तहज़ीबी और नपी तुली वाक् शैली के लिए प्रेरित करें....शब्दों की राजनीति से जितना सम्भव हो बच कर रहे क्योंकि यह संचार विस्फोट का युग है जहां महज़ एक शब्द एकत्र बारूद के लिए चिंगारी का काम कर जायेगी….
सुरक्षा व्यवस्था को इंकार कर अरविन्द ने अपनी निजी बात रखी …पर अब वे देश के लिए महत्वपूर्ण व्यक्ति हो गए हैं उनकी आड़ लेकर कोई भी देश की सुरक्षा को खतरे में ले जा सकता है….आतंकवादियों को रिहा करने की मांग कर सकता है…अतः वे अपने पद के महत्व को वास्तविक धरातल तथा देश के साथ संलग्न कर भी देखें और सुरक्षा स्वीकार करें .आप अभी शिशु रूप में है जिसे संरक्षक की ज़रुरत है…अनुभवी जननेताओं से राय मशवरा कर ही जनतंत्र चलाना होगा चाणक्य नीति भी यही कहती है.रविशंकर के अनुसार एक नेता को पारदर्शी  प्रियदर्शी,समदर्शी,सत्यदर्शी के साथ दूरदर्शी भी होना चाहिए.”हालांकि बड़े से बड़े सहनशील इंसान भी अपना धैर्य खो देते हैं धरती की तरह जो गर्मी,बरसात जैसी प्राकृतिक मार ,खुदाई,विस्फोट जैसी मानवकृत मार की असीम पीड़ा एक हद तक बर्दाश्त करती है और उस हद के टूटते ही ज्वालामुखी,भूकम्प के रूप में अपनी प्रतिक्रिया ज़ाहिर कर देती है….पर फिर भी एक जननेता से वृक्ष की तरह सहनशील होने की अपेक्षा की जाती है जो लकड़हारे को भी साया तथा पत्थर मारने वाले को भी फल देता है.दूसरी बात अपने ऊसूलों और कार्य मूल्यों के प्रति अचल होना होगा सही कार्यों से जनता में विश्वास कायम रखेंगे तो जनता ने जैसे अभी साथ दिया वैसे वर्षों तक देगी …वादे-इरादे से दूर होते ही जनता जिस सरगर्मी से ताजपोशी करती है उसी सरगर्मी से ज़मीदोज़ करने में भी एल पल देर नहीं करती.अरविन्द की काबिलियत पर प्रश्न उठाना मैं इसलिए बेमानी मानती हूँ क्योंकि वे एक बुद्धिजीवी हैं…प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो कर तथा प्रशासानिक सेवा में आये …..RTI के तहत काम किया मैग्सेसे अवार्ड प्राप्त किया ..और अपनी अर्हता साबित की पर अपनी तथा अपने पार्टी की पाक-साफ छवि को बरकरार रखने के लिए उन्हें कूटनीतिक समझ रखनी होगी…रस्सी को भी सांप समझ अपनी रणनीति तय करनी होगी …देश की गंगा जमुनी तहज़ीब के बीच छुपी आम जनता की भावनाओं को समझना होगा.राजनीति पर बहस करना…राजनीति पर लिखना…और वास्तविक धरातल पर राजनीति करना हैं तो राजनीति शब्द पर टिके पर इसके कार्यान्वन की सहजता पर कई अंशों का फर्क है….अमूमन माना जाता है कि एक पॉलिटिशियन कभी ईमानदार नहीं हो सकता या फिर उसकी ईमानदारी से क्षुब्ध होकर उसकी राहों में कई नाटकीय परिस्थितियां उत्पन्न करने की कोशिश की जाती हैं जब दूध के कुएं में सब पानी डालने वाले हों तो एक ईमानदार जो कि दूध डालने की मंशा से कुएं की तरफ बढ़ रहा हो उसके बढते कदम के लिए ना जाने कितने कांटे बिछे होंगे ….हालात उसे कब तक अपनी मंज़िल तक सही सलामत पहुँचने देंगे …..बस संशय यही पर है…..जैसा कि इस घटना में व्यंगात्मक रूप से वर्णित है.

Two men were walking around a somewhat overcrowed English country churchyard & came upon a tombstone..the inscription said,”here lies John Smith ,a politician & an honest man.”

“Good heaven !”said one man to the other,”isn’t it awful that they had to put two people in the same grave.”

Photo: Two men were walking around a somewhat overcrowed English country churchyard & came upon a tombstone..the inscription said,"here lies John Smith ,a politician & an honest man." "Good heaven !"said one man to the other,"isn't it awful that they had to put two people in the same grave."

अरविन्द के आप को समर्थन देने के पीछे कांग्रेस की जो भी कूटनीतिक मंशा रही हो…पर इससे उसने दो सन्देश दिए ..प्रथम एक पारदर्शी,ईमानदार समूह का दावा या ऐलान करने वाली पार्टी को वास्तविक धरातल पर काम करने का मौका देकर कथनी के संकीर्ण और पलायनवादी कदम से करनी के व्यापक और जवाबदेही पूर्ण कदम बढ़ाने का सुवसर दिया और द्वितीय,देश को चुनाव के संकट से बचा कर अनजाने में ही देश के प्रति वास्तविक जिम्मेदारी का बोध रखने का सन्देश दिया.अब यह आप पार्टी पर निर्भर करेगा कि वे कितने सजग,तत्पर ,और प्रमाणिक साबित होंगे.
राजनीति,लेखन,खेल,कला जैसे कई क्षेत्रों में ऐसा यदा-कदा हुआ है कि सदियों से चलती आ रही परिपाटी को कोई मसीहा नया आयाम दे जाता है..सचिन जैसे खिलाड़ी अगर लम्बी पारी खेल कर अपने पाक-साफ छवि के साथ अपने पसंदीदा क्षेत्र से सन्यास ले सकते हैं तो अरविन्द क्यों नहीं ????पर तब जब अरविन्द अपने नाम की सार्थकता के साथ सही अर्थ में कीचड में कमल सा खिलें …चैतन्यता से ..सजगता से…तन्मयता से ..हंसते-हंसते अपनी जिम्मेदारी निभाएं और अपने दल के मज़बूत नेता बनें उनके साथ जुड़े लोग उन पर विश्वास कर उन्हें मज़बूती दें.

ईश्वर पर अटूट भरोसा रखने वाले अरविन्द(कमल) आप अपने नाम की सार्थकता सिद्ध कर कीचड में कमल की तरह खिलें …..राष्ट्रीय फूल कमल की तरह अपने नाम के अर्थ को सिद्ध करें यही ईश्वर से प्रार्थना है……अपनी पार्टी आप के सशक्त नेता के रूप में देश को नई दिशा दें क्योंकि आप ने राजनीति को जननीति…राजनेता को जननेता….का रूप देकर सही अर्थों में जनतंत्र की दिशा तय की है .

एक मशहूर शेर है…….

हर मुश्किल का दिया एक तबस्सुम से ज़वाब

इस तरह गर्दिशे दौरा को रुलाया हमने.

(cartoon from net …thanx)

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