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बहुत दूर नहीं;इस निशा की उषा(jagran junction forum )

V2...Value and Vision
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मेरे प्रिय पाठकों,
आइये ,आजादी की ६६वी वर्षगाँठ पर सर्वप्रथम अपने उन वीरों को नमन करें जिनकी शहादत के रंग ने हमें एक आजाद देश की आबो-हवा में जीवन जीने की राह दी है.

 

“वतन की राह में जो हो गए शहीद,सलाम
प्यार हिंद के हित खो गए शहीद,सलाम
जिनके खून का कतरा हमें जगाता है
उन्ही शहीदों को करें हम सब सलाम “

दोस्तों ! इस प्रिय मंच पर इस महत्वपूर्ण विषय पर अपने कई सम्मानित साथियों के ब्लॉग को मैंने पढ़ा ;उनके विचारों ने मेरा मार्ग निर्देशन भी किया और मैंने इस कथन को बार-बार समझने की कोशिश भी की “वर्त्तमान परिदृश्य में आजादी” और एक बारगी मैं भी सोच में पड़ गयी…..

मिली तो थी आज़ादी संपूर्ण रूप से
लिए नए स्वप्न,कुछ नए इरादे
आज भ्रष्टाचार,आतंक,भुखमरी के
क्षोभ,दहशत,आत्मग्लानि के साए में
कोई हमारे अच्छे दिन लौटा दे
वही जोश,वही शहादत
की फिर सख्त ज़रूरत
जग में नव भारतीय संस्कृति की
लहरा दो परचम फिर आज
जियो और जीने दो सबको
गुंजा था इक दिन यह नारा
पहुंचा दो सब तक यह नारा
झंडा उंचा रहे हमारा

उपर्युक्त पंक्तियाँ लिखते वक्त मुझे टी.वी पर दिखाए दो विज्ञापन याद आ रहे हैं एक जिसमें प्रत्येक नागरिक को चुटकी भर ईमानदारी देने की बात कही कही गयी है और दूसरा जिसमें सन्देश है “देश उबल रहा है;बदलेगा देश का रंग”. अर्थात आज इंडिया(अति समृद्ध) और भारत (अति निर्धन) में विभाजित देश में एक बीच का भी वर्ग है जो अनेक समस्याओं का समाधान बेहद व्यक्तिगत रूप से खोज रहा है,वह पुरुषार्थी है साथ ही नव परिवर्तन के प्रति पूर्ण सजगता के साथ प्रयास रत है .अरब की आबादी वाले इस देश में कई व्यक्तिगत प्रयास ने देश का मान बढाया फिर चाहे वह गगन नारंग,सचिन, सायना जैसे खिलाड़ी हों, टाटा जैसे उद्योगपति या आनंद जैसे IIT TUTOR जो हमें व्यक्तिगत रूप से संकल्पित,आशावान,वर्त्तमान के प्रति सजग,जागरूक,विवेकशील और पुरुषार्थी नागरिक बनने का सन्देश देते हैं.हर बार सिर्फ महात्मा गांधी की तर्ज़ पर आन्दोलन करने पर ही क्यों जोर देना ? स्वामी विवेकानंद(शिकागो विश्व धर्मं सम्मलेन में ) राजा राम मोहन राय,ईश्वर चन्द्र विद्यासागर जैसे व्यक्तिगत प्रयास का भी अनुसरण क्यों नहीं?

मैं मानती हूँ कि आज देश गरीबी,बेरोजगारी,भ्रष्टाचार,सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों के अवमूल्यन,,कुपोषण जैसे कई दंश झेल रहा है पर इसमें सरकारी नीतियों के साथ हमारी असंवेदनशील प्रवृति और व्यक्तिगत व्यवहार भी समान रूप से दोषी है.जब लॉर्ड मैकाले भारत आया था तो उसने एक पत्र ब्रिटेन भेजा और लिखा“भारत में एक भी भिखारी नहीं है,इन्हें ऐसी शिक्षा पद्धति दे दी जाए कि पूरा देश भिखारी हो जाए“अंग्रेजों ने वही किया white collar जॉब देने वाली शिक्षा पद्धति विकसित की जिसका परिणाम .डीग्री धारी शिक्षित बेरोजगारी के रूप में आज सामने है.इंजीनियर, डोक्टर बनने के सपनों में युवा ने पुश्तैनी पेशों से मुख मोड़ लिया है.रही सही कसर मशीनीकरण ने पुरी कर दी है.

दिनों दिन तरक्की करने वाले भारत की १/३ आबादी दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में जीवन व्यतीत करती है इस बात से मैं इनकार नहीं करती पर भारत में कमोबेश .हम ने स्वयं को आजाद मानते हुए ऐसी कितनी बंदिशों और बुरी आदतों की बेड़ियों से स्वयं को जकड रखा है.गड्ढे खुदे हैं तो परवाह नहीं….इधर-उधर कचरा बिखरा है तो मुझे क्या मतलब,….दीवारों पर पान की पीक से मनचाही आकृति उकेरना,… पैसा कमाया तो पार्टी कर लो,….शराब पी लो ,….काम को बोझ समझना,…विकृत मानसिकता के वशीभूत नाजायज़ संतानों की ज़मात खड़ी करना,…..बात-बात पर हड़ताल,हिंसा पर उतारू हो जाना……सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुचाना …छोटे से छोटे काम के लिए घुस देना और लेना,…..बेतरतीबी से वाहन खडा कर देना ………..सड़क पर सुरक्षा के नियमों का पालन ना करना,…..शान्ति प्रिय देश के हम नागरिक इतने क्रोधी,अविवेकी,स्वार्थी क्यों बन जाते हैं????आज़ादी के बेहद अनुशासित उन मतवालों,उन वीरों ने निश्चय ही ऐसी किसी भी पीढी की कल्पना नहीं की होगी.

मुझे अच्छी तरह याद है ,एक बार मेरे घर एक फ़कीर आया और पैसे देने की विनती करने लगा .मैंने कहा,” अगर तुम घास साफ़ कर दो तो हम तुम्हे पैसे दे सकते हैं.”बदले में उसने मुझे भद्दी सी एक गाली दी और चलता बना.

हमारा एक और दुर्भाग्य यह है कि हमने अपनी गौरवमयी संस्कृति को संवाहित करने का कार्य महज़ खानापूर्ति के लिए ही करना कर्त्तव्य बना लिया है.बात उन दिनों की है जब स्थानातरण के क्रम में  मैं एक छोटे से कसबे में गयी थी ,संयोगवश कुछ दिनों बाद ही  इस गौरव मय राष्ट्रीय पर्व में शिरकत होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ .उस दिन बच्चों के कार्यक्रम ने समा बाँध दिया था.अगले दिन जब प्रातःकालीन भ्रमण को निकली तो मार्ग में छोटे-छोटे तिरंगे बिखरे थे.उस दिन मैंने बिखरे पड़े सारे तिरंगों को एक -एक कर उठाया. अगले दिन पता लगाकर स्थानीय विद्यालय गयी और मुख्याध्यापिका से एक ही बात कहा,”चार महीने बाद जब गणतंत्र दिवस मनाने के लिए हम एकत्र हों तब कृपया इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि तिरंगा इधर-उधर फेंका ना जाए बल्कि बच्चों से वापस ले लिया जाए .उन्हें यह भी समझाना ज़रूरी है कि यह हमारा राष्ट्रीय ध्वज है जिसे आदर के साथ रखा जाता है.”मैंने उनसे राष्ट्रीय ध्वज को अच्छी तरह रखने की विनती की और समझाया इससे तीन उद्देश्य पूर्ण होंगे….
१ बच्चों को राष्ट्रीय ध्वज का महत्व और गरिमा का ज्ञान होगा.
२ चूँकि ये छोटे-छोटे ध्वज प्लास्टिक के बने होते हैं इन्हें इधर-उधर ना फेंकने से हमारे पर्यावरण की भी रक्षा होगी.
३ यह विद्यालय में धन की बचत भी है क्योंकि बार-बार ध्वज खरीदने नहीं होंगे और एक वर्ष में कम से कम दो बार उन झंडों का प्रयोग किया जा सकेगा.

कभी-कभी शिक्षित होकर भी हम राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान करना भूल जाते हैं. आवश्यकता यह है कि बचपन से ही इन नन्हे नागरिकों को देश के प्रति सम्मान की भावना सीखाई जाए.

मुझे एक कहानी याद आती है .एक बार एक बड़े ऑफिसर के घर में एक चोर घुसा.सामान चुरा कर बाँध ही रहा था कि ऑफिसर महाशय को खटका हुआ…. हो ना हो; कोई चोर घुस गया है.पढ़े-लिखे तो थे ही; बड़ी बुद्धिमानी से काम लिया और tape रेकॉर्डर पर राष्ट्रीय धुन बजा दी.चोर था तो चोर पर देश प्रेम की भावना से ओत-प्रोत भी था.सामान छोड़ कर सावधान की मुद्रा में खडा हो गया.ऑफिसर महोदय ने एक पल भी गवांये बिना चोर को रस्सी से बाँध दिया.जब मामला अदालत गया तो magistrate ने कहा,”चोर ने चोरी कर गुनाह अवश्य किया है पर उसके देश प्रेम के ज़ज्बे ने एक मिसाल पेश की है और आपने(officer) राष्ट्रीय धुन का अपमान किया है इसलिए आपका गुनाह भी सजा के काबिल है.”

सच कहूँ यह हमारी विडम्बना है कि हम ने अपनी संस्कृति से मुख मोड़ना शुरू कर दिया है .विज्ञान के प्रवर्तकों की बात पर हम न्यूटन,आइंस्टीन को याद रखते हैं पर वराहमिहिर,भाष्कराचार्य को विस्मृत कर बैठते हैं गणितज्ञ aryabhatta ,श्रीधर की बजाय पाइथागोरस को ही याद रख पाते हैं.जबकि हमें समझना होगा…………..

“वही है रक्त,वही है देश,वही साहस,वही ज्ञान
वही है शान्ति,वही है शक्ति,वही हम दिव्य संतान”

हम में से प्रत्येक नागरिक को अपनी जिम्मेदारी व्यक्तिगत रूप से अवश्य समझनी होगी…..साथ ही सरकार को भी अपनी नीतियों के क्रियान्वन के प्रति बहुत सजग होना होगा तभी हम एक नयी सुबह देख पाने में सक्षम हो सकेंगे.

– कोई अनजान व्यक्ति अपने मोहल्ले में आये तो उसे बगैर तफ्शीश के घर किराए पर ना देना,ऐसे व्यक्तियों की गतिविधियों के प्रति सजग रहना,पुलिस को यथासंभव जानकारी उपलब्ध कराना ताकि आतंक की घटनाएं ना होने पाएं.आपको याद होगा कारगिल में घुसपैठ की खबर एक गड़ेरिये ने ही दी थी.

२- देश का जो बचपन आज भी चन्दा मामा की लोरियों और शिक्षा के उजाले से वंचित है उनके लिए सरकारी प्रयास के साथ व्यक्तिगत प्रयास की भी ज़रूरत है.शिक्षित महिलाओं को अपने घरों में काम करने वाली महिलाओं को बच्चों की शिक्षा का महत्व समझाते हुए मुफ्त सरकारी विद्यालयों में उन्हें पढ़ने भेजने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.

– सरकार को अनाज भंडारण की उचित व्यवस्था करनी चाहिए साथ ही लोगों को पार्टी तथा भोज समारोह में अनाज बर्बादी को रोकना चाहिए.

४- शिक्षित युवाओं को पुश्तैनी पेशों,स्वरोजगार के अवसरों से भी लाभ उठाना चाहिए.

– अगर कोई सामूहिक आन्दोलन हो तो उसकी नीति दूरदर्शिता पूर्ण हो वह आम जनता को भ्रमित ना कर उन्हें सही मार्गनिर्देशन देने में सक्षम होनी चाहिए.टीम अन्ना के सदस्यों में भी अरविन्द जी जैसे आई ए एस युवा को अपने सरीखे योग्य युवा को तैयार करने में सहायक होना चाहिए. किरण बेदी जी प्रथम महिला पुलिस अधिकारी हैं वे अपने जैसे कई प्रतिभा शाली पुलिस अधिकारी तैयार कर सकती हैं .इस बात से देश के प्रगति की राह पर ज्यादा असर होता.
विचारणीय बात यह भी है कि बाबा राम देव के आन्दोलन के समापन भाषण में मुस्लिम,वाल्मिक,दलित जैसे संबोधन के स्थान पर सिर्फ मेरे भारतीय भाई बहनों का संबोधन एकता का सन्देश देता.अनशन तोड़ने के लिए दलित बच्चों के हाथों से ही juice पीने का नाटक क्यों ,बच्चे तो बच्चे हैं उनकी ना कोई जाति होती है ना धर्मं.आन्दोलनों का मर्म इन विभेदकारी नीतियों से ही दम तोड़ देता है.
जहां अन्ना जी का आन्दोलन यह कह कर ख़त्म हुआ कि अब आप जैसा पहले कहते थे कि राजनीति में आकर ही सुधार हो पायेगा अतः यही विकल्प है वहीं दूसरी ओर बाबा राम देव ने यह कह कर आन्दोलन समाप्त किया कि जैसा आप कहते थे कि कोई अनशन नहीं सीधी कार्यवाही करेंगे.यानी दोनों ही आन्दोलन दूरदर्शिता के अभाव में शुरू हुए थे.जिनका असली मकसद ही समझ से परे रहा और ” कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना”जैसी उक्ति को चरितार्थ कर गया.
६–पर्यावरण की रक्षा,ऊर्जा के स्त्रोतों का विवेक पूर्ण दोहन और भावी पीढी के लिए रक्षण,आस-पास के वातावरण की स्वच्छता का ध्यान रखना ज़रूरी है.

७- प्रत्येक युवा यह शपथ ले कि विवाह के अवसर पर दहेज़ नहीं लेगा ,प्रत्येक नागरिक कसम ले कि वह रिश्वत न लेगा और ना ही देगा.भ्रष्टाचार के इस दानव के मुख में प्रति दिन एक निरीह जानवर को जाने से रोकना होगा.

८- विदेशों में जमा काला धन लाने के लिए कोई भी एक नेता व्यक्तिगत रूप से पहल करे तो उनका अनुसरण कर कई उस राह पर चल पड़ेंगे.

इस जागरूकता के एक दीप से असंख्य दीप जल उठेंगे.
आजादी का परिदृश्य तभी परिवर्तित होगा जब हम में से प्रत्येक नागरिक अपने पंखों को खोलने में सक्षम होगा,जिस रस्सी से हम ने स्वयं को बांधा है उसे खोलने की पहल भी हमारी ही होगी तभी आज़ादी के सही मायने से देश रु-ब-रु हो पायेगा.
चलो अपने ही पंख खोल लें …………………

टीम अन्ना आन्दोलन की असफलता,हिंसा,आतंकवाद,महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध की गहरी निशा ने बेशक आज़ाद भारत की खौफनाक और दहशत भरी तस्वीर उभारी है पर इस गहरी निशा की उषा बहुत दूर नहीं है . इस निशा से डरने की नहीं ;लड़ने की ज़रूरत है क्योंकि डर के आगे जीत है.
आइये आज इस शुभ अवसर पर प्रत्येक भारतीय नागरिक मशहूर शायर के निम्नलिखित शेर के माध्यम से व्यक्तिगत रूप से यह शपथ ले कि………………….

“अमनो इन्साफ को गारत ना होने देंगे
यूँ खूने इंसान की तिजारत ना होने देंगे
भाई से भाई को धर्मं- जाति पर लड़ाने वालों
यहाँ अब हम कोई महाभारत ना होने देंगे ”

जय भारत,जय हिंद ,वन्दे मातरम .

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