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बचपन से किशोरावस्था तक सबसे ज्यादा चर्चित विषय जिस पर लगभर हर कक्षा की परीक्षा में निबंध लिखने के सवाल पर एक विषय ज़रूर होता था …’विज्ञान – वरदान या अभिशाप ‘ उन दिनों बहुत अजीब सा लगता था कि क्या शिक्षकों के पास और कोई विषय नहीं ..पर आज जब सोचती हूँ तो उन शिक्षकों की परिपक्वता और विवेक का गहन बोध होता है.विद्यार्थी भले ही रट कर निबंध लिख देते हों पर इसके पीछे शिक्षक का उद्देश्य विद्यार्थियों को हर दिन बदलते विज्ञान और तकनीक की चुनौतियों से तालमेल बिठाकर व्यवहारिक ज़िंदगी को सुरक्षित बनाना होता था .ताकि नित्य नई नई तकनीक यन्त्र उपकरण को विवेकपूर्ण और जवाबदेही के साथ प्रयोग कर सकें .
उस आठ की दशक से आज तक विज्ञान ने तेजी से विकास किया है और उतनी ही तीव्रता से बड़ी हैं चुनौतियां .परिवार के साथ बैठ कर देखा सुना जाने वाला मनोरंजन श्वेत श्याम टी वी के बॉक्स से निकल कर आज खुलेपन की पराकाष्ठा पर है.बस एक ही क्लिक पर दुनिया हर अच्छाई और बुराई के साथ आँखों के सामने है.परिवार के बड़े बुजुर्गों के द्वारा अच्छे बुरे के बीच के भेद की पहचान के साथ बढ़ने वाला जीवन आज अकेले ही अपनी समझ को विकसित करने को अपनी बौद्धिक जीत मान बैठा है .घर पर जितने सदस्य उतने मोबाइल फ़ोन और कभी कभी तो सदस्यों की संख्या से भी ज्यादा .सबकी अपनी अपनी दुनिया …आपसी संवाद इतना अल्प कि एक सौ चालीस करैक्टर वाला ट्विटर भी नत मस्तक हो जाये .
प्रश्न तकनीक के विकास को सही विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग ना करने पर उठता है .विज्ञान वरदान है या अभिशाप ….यह तो उसके प्रयोग पर निर्भर है जो हमारे विवेक सोच और परिपक्वता से सीधा जुड़ा है .
ब्लैक बोर्ड के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करने वाला विद्यार्थी आज स्मार्ट क्लास से शिक्षा ग्रहण कर रहा है .चुनौतियां बढ़ गई हैं .स्मार्ट फ़ोन और उसके अविवेकपूर्ण प्रयोग विशेष कर भयावह ब्लू व्हेल जैसे गेम ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया है.
दरअसल ऐसे किसी भी सनक के लिए झुकाव …यह समाज में बच्चों किशोरों और तरुणों में उपजी हताशा है जो अनायास ही उनका जीवन से मोहभग करा देती हैं .आज जीवन में छोटी छोटी ज़रूरतों के लिए मसक्कत नहीं करनी है .ऑनलाइन बाज़ार… डिब्बाबंद और आकर्षक पैकजिंग में उपलब्ध सामान …आज गेहूं पिसाने आटा चक्की तक नहीं जाना है … पानी भरने कुँए तक नहीं जाना … खेल के मैदान में हमउम्र दोस्त नहीं मिल रहे … मानो हर चीज़ डिब्बा बंद हो गई है .अच्छी पुस्तकों को पढ़ने की ललक ही समाप्त हो गई है .अब तो पुस्तकालय भी नहीं दिखते हैं.व्रत त्यौहार पर नात रिश्तेदार संगी साथी के घर मिलने मिलाने की रस्म ही ख़त्म हो गई है .अब तो सब मोबाइल मैसेज से ही सम्पन्न हो जाता है.घर पर एक साथ खाने बैठने की बात पिछड़ेपन की निशानी मानी जाने लगी है .वक़्त ज्यादा है और व्यस्तता कम तो मोबाइल के सन्देश या गेम की तरफ आकर्षण और वह भी कुछ नया बेतुका सा कर गुज़रने की सनक… जीवन को ख़त्म करने की राह पर ले जाती है.
बच्चों किशोरों और युवाओं को समाज से जोड़ने की ज़रुरत है .उन्हें एकाकीपन से नहीं सबके साथ जीने के अवसर फिर से देने होंगे .विज्ञान ने समय बचत करने वाले उपकरण दे दिए हैं पर उस अतिरिक्त समय के सदुपयोग का विवेक घर परिवार समाज को ही बताना और करना है . हर व्यक्ति की ज़रुरत है और कोई भी व्यक्ति बेकार नहीं है .उसके जीवन के मह्त्व को खुद उसके द्वारा परिवार समाज के द्वारा समझे जाने की ज़रुरत है .अब भी देर नहीं हुई है .सोशल मीडिआ के विवेकपूर्ण प्रयोग के तौर तरीके ,अनजान नाम और चेहरों से दूर रहने की शिक्षा देना ज़रूरी है .अभिभावकों को सोशल मीडिया के प्रोफाइल अपडेट पर नज़र रखनी चाहिए .ताकि कोई भी अवांछनीय बात उनकी नज़र में समय रहते आ सके .
जीवन अनमोल है .एक दूसरे का साथ ज़रूरी है .हम कभी भी अपने प्रियजनों को अकेला ना रहने दें .डिजिटल डिफ्रॉस्ट होना भी ज़रूरी है .एक साथ बैठ कर चाय पी लेना , कहीं सैर कर आना , बिना अवसर के ही नात रिश्तेदार संगी साथी के यहां बच्चों को ले जाना उन्हें समाज से जुड़ कर रहने में सहायक होगा .
एक बहुत महत्वपूर्ण बात यह भी है कि ब्लू व्हेल गेम की आड़ में आपराधिक घटनाएं अंजाम ना लें .हाथ में ब्लू व्हेल बना देना , सोशल मीडिया अकाउंट हैक कर गेम से रिलेटेड मैसेज टाइप कर देना और किसी भी दुर्घटना या मृत्यु को ब्लू व्हेल से जोड़ देना इस तरफ सतर्क और जागरूक होने की ज़रुरत है.
आइये ब्लू व्हेल को ब्लैक बोर्ड की शिक्षा तक ही रहने दें जो उसे धरती पर एक सबसे बड़े स्तनपायी जंतु के रूप में बच्चों के सामने रखता है .मोबाइल के आत्मघाती गेम के रूप में नहीं .जीवन जितना सिंपल हो उतना ही सुरक्षित भी होगा .
‘ सिंपल रहे सेफ रहे ‘
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