Menu
blogid : 9545 postid : 771845

मुझे जीना है.

V2...Value and Vision
V2...Value and Vision
  • 259 Posts
  • 3039 Comments
“suicide is a long term answer to a short term problem.”
 
 ‘मुझे जीना है ‘ ये तीन शब्द प्रत्येक उस व्यक्ति के मन में अवश्य आता है जो मौत के बिलकुल करीब होता है .’बड़े भाग मानुष तन पावा’ बहुत ही सौभाग्य से मिली है यह ज़िंदगी …….प्रत्येक मनुष्य इसे भरपूर जीना चाहता है.फिर क्या वज़ह है कि वह आत्महत्या जैसे कदम उठा लेता है .जीवन तो ईश्वर का उपहार है पर यह भी सच है कि एक बार देने के बाद उपहार पर लेने वाले का अधिकार हो जाता है अगर उसे उपहार पसंद है तो वह उसकी देखभाल करता है और अगर उस उपहार से किसी प्रकार की नकारात्मकता जुड़ जाए तो वह उसकी देखभाल करना छोड़ देता है.यहां तक कि उसे नष्ट करने की भी कोशिश करता है .अपनी सोच समझ और भावनात्मक स्थिति के आधार पर ही वह उस उपहार के साथ बर्ताव करता है पर हाँ ,अगर उस उपहार से किसी अन्य का भी भावनात्मक जुड़ाव हो तो वह इस उपहार की देखभाल में स्वयं भी मदद करता है और उस व्यक्ति को भी प्रेरित करता है.उपहार असमय टूटने या नष्ट होने से बच जाता है
.
दरअसल आत्महत्या की वजह कुछ ऐसी अवांछित नकारात्मक घटनाएं होती हैं जिन्हे व्यक्ति आत्मिक और मानसिक सबलता के अभाव में जीवन की राह का अंतिम माइलस्टोन मान लेता है क्योंकि वे माइलस्टोन उसे लहूलुहान करते हैं .अगर इस वक़्त उसे कुछ अपनों का सच्चा साथ मिल जाए और जीवन जीने का कोई ठोस मक़सद दिखाई दे जाए तो वह अपने अनमोल जीवन को महत्वपूर्ण मान कर अवश्य ही उसकी क़द्र करेगा और जीवन की तरफ पुनः लौट आएगा.
धारा ३०९ के तहत आत्महत्या की कोशिश को अपराध मान दंडस्वरूप एक वर्ष की सजा और जुर्माने का प्रावधान है .आत्महत्या की कोशिश को अपराध की श्रेणी से हटाना वाकई स्वागत योग्य है .ब्रिटिश शाषण के दौरान बना यह क़ानून वाकई असंगत था .१९६१ में ब्रिटेन ने इसे अपने देश के क़ानून से हटा दिया था.यूरोप ,उत्तर अमेरिका कनाडा में आत्महत्या अपराध की श्रेणी से बाहर है.१८ वें लॉ कमीशन ने अपनी २१० वीं रिपोर्ट में धारा 309 को harsh and unjustified कहकर हटाने की अपील की थी. और H.Romilly Fedden के पर्यवेक्षण को जो कि ‘suicide ‘ (london 1938)पृष्ठ संख्या ४२ का अंश है उसे उद्धृत किया था …………………………
“It seems a monstrous procedure to inflict further suffering on even a single individual who has already found life so unbearable ,his chances of happiness so slender , that he has been willing to face pain and death in order to cease living.that those for whom life is altogether bitter should be subjected to further bitterness and degradation seems perverse legislation.”
 
 
आत्महत्या की कोशिश करने वाला व्यक्ति पहले ही मानसिक और शारीरिक पीड़ा झेल रहा होता है ऐसे में उसे सजा भी देना मरे हुए को मारना ही तो है.
जो व्यक्ति व्यथित ,उदास परेशान होकर इहलीला समाप्त करने की कोशिश के बाद बच जाता है उसे वैसे भी सजा का भय नहीं होता और भारत वर्ष में किसी को शायद ही यह सजा दी गई होगी.इसलिए ३०९ धारा को हटाने से आत्महत्या की घटना बढ़ेगी या घटेगी यह बहस बेमानी है.बहस इस बात पर होनी चाहिए कि समाज में परस्पर संवेदनशीलता को हर मर्ज़ के राम बाण औषधि के रूप में कैसे विकसित किया जाए.
 
  व्यक्ति जीवन में एक ही अल्पकालीन उद्देश्य से बंधा ना रहे…अपने जीवन से प्रेम करे …अपने ,परिवार ,समाज ,देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझ सके
आत्महत्या करने के पीछे मुख्य कारण जीवन के प्रति हताशा है और इस हताशा के लिए कुछ सामान्य सी वजहें हैं …………..
.
१) परीक्षा में असफल हुए विद्यार्थी अक्सर इस असफलता को अपने पूरे करियर का अंत मान बैठते हैं और आत्महत्या का कदम उठा लेते हैं.पैर में अगर पत्थर लगने से ठोकर लग जाए तो क्या पैर काट कर फेंक देते हैं ???नहीं ,पत्थर को रास्ते से हटा कर स्वयं के लिए और दूसरों के लिए राह आसान कर देते हैं फिर परीक्षा में असफलता पाने पर पुनः प्रयास क्यों नहीं कर सकते ?

२)नौकरी में असफलता भी आत्महत्या की एक वजह होती है .दरअसल ऐसे लोग अपनी खिड़की से दिखने वाले आकाश या आँगन के आकाश को ही पूरा आकाश मान बैठते हैं .विशाल फैले हुए आकाश को देखने की ज़रुरत नहीं समझते. एक नौकरी में असफल हैं तो दूसरी भी खोज सकते हैं बस मानसिक और आत्मिक सम्बल ,और पूरी ईमानदारी से आत्मविश्लेषण कर ज्ञान और कौशल बढ़ाने की ज़रुरत होती है और किसी अपने का सच्चा साथ इस काम में मदद कर सकता है.

३) आत्महत्या के अधिकाँश केस विवाह या प्यार में असफल होने के कारण होते हैं.विवाहेत्तर सम्बन्ध ,दहेज़ उत्पीड़न ,आपसी संवाद का अभाव इसकी मुख्य वजहें हैं.ज़रुरत है जीवन से जुड़े कुछ अहम मूल्यों पर विश्वास करने की और अगर वैवाहिक जीवन फिर भी पटरी पर ना आ सके तो बेहतर है अलग हो जाएं ना कि आत्महत्या जैसे कदम उठाएं .टोकरी में फलों का चुनाव अच्छी तरह करने पर भी अगर कोई फल खराब निकल जाए तो क्या फल खरीदना और खाना छोड़ देते हैं?फिर जीवन में ऐसे हताश क्यों हो जाते हैं ?
किसी ने कितना सही लिखा है ………

है अभी बाकि कुछ अज़नबी रास्ते
चलते रहो…चलते रहो
क्या खबर किस ओर जाती हो
मंज़िल की डगर
वल्लाह तुम कभी न करना आँख नम
कि रू-ब-रू आ जाए मंज़िल
और तुम गुज़र जाओ
अश्कों का चिलमन लिए .

४) बलात्कार,यौन उत्पीड़न या ऐसे अन्य दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से व्यथित होकर लड़कियां आत्महत्या के कदम उठा लेती हैं.ऐसे में यह समझने की ज़रुरत है कि ऐसी घटनाओं में उनका कोई दोष नहीं बल्कि जो दोषी हैं वे उन्हें सज़ा दिलवाएं. कभी-कभी फोटो वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो जाने पर युवा शर्मिंदगी में आत्मघाती कदम उठा लेते हैं .एक गलती कर दूसरी बड़ी गलती कर लेते हैं ऐसे में ज़रुरत है अपने अभिभावक सगे सम्बन्धी की मदद लें . अपनों को भी युवाओं को समझाना होगा कि ऐसे किसी भी अपराध की सजा वे दोषियों को दिलाने में मदद करें स्वयं को सजा ना दें.तकनीक का इस्तेमाल कर अगर उन्हें ब्लैकमेल किया जा रहा है तो वे भी तकनीक विकास का इस्तेमाल कर उन्हें सजा दिलवाएं.

५) संवेदनहीनता और संवादहीनता की परिणति के रूप में बुजुर्गों द्वारा आत्महत्या की भी कुछ घटनाएं सामने आती हैं.ज़रुरत है परिवार के सदस्य बुजुर्गों का सम्मान करें बुजुर्ग बदलते परिवेश में युवाओं की सोच और जीवन शैली से इत्तफाक रख कर चलें .अगर बुजुर्ग अकेले रहते हैं तो वे कोई सामाजिक संस्था से जुड़ जाएं ,उनके आस पास को लोग उनके जीवन के अनुभवों से सीखते रहे तथा उनके अस्तित्व के महत्व का एहसास कराएं तो बुजुर्गों को ज़िंदगी बोझिल नहीं लगेगी.

६)जीवन में कई उद्देश्य रखें ,कई अपनों का साथ रखें .किसी एक ही उद्देश्य ,एक ही व्यक्ति से जुड़े होने पर दुर्भाग्यवश अगर उसके साथ कुछ अनहोनी हो जाती है तो जीवन जीने का सम्बल ख़त्म हो जाता है

७) सबसे अहम बात अच्छी पुस्तकें पढ़ें ,अच्छी संगत में रहे और अच्छा सोचें …जीवन है तो परेशानियां भी रहेंगी ….और समाधान भी मिल जाएगा ….ईश्वर से और स्वयं से प्यार करें …भौतिक जगत में अपने कर्म करते रहे साथ में आध्यात्मिक भी बनें इससे जीवन शक्ति मिलती है .ईश्वर प्रदत्त उपहार की देखभाल करें …उसके महत्व को समझें….जीवन सोद्देश्य जीएँ …..अपनी और अपने आस पास के लोगों का भरपूर ख़्याल रखें …..जीवन की राह में कोई शार्ट कट नहीं होता जीवन संयमित रहे .अनावश्यक वस्तुओं और रिश्तों के प्रति लोभ रखना अनुचित है.कटु तिक्त अनुभव जीवन में मिलते रहते हैं पर उनसे सीख लेकर और मधु अनुभवों को याद कर दरिया की मानिंद आगे बढ़ जाएं जो आज है वह कल ना रहेगा .वक़्त के हाथों कभी मज़बूर ना हों साहस दिखाएँ.

अगर कोई उम्मीद ना हो तब भी नाउम्मीद मत होना

जीवन जीने के हज़ारों तरीके हैं फिर काहे का रोना

ज़िंदगी के लम्हे ईश्वर का दिया एक सुन्दर तोहफा है

 हो हताश रोकर इसे ना गुज़ारो कल किसने देखा है .
 
 
धारा ३०९ को हटाना स्वागत के योग्य है .आत्महत्या एक ऐसा कदम जो पुरुष स्त्री , ऊँच नीच ,जात पात ,इत्यादि भेदों से पर है उसे रोकना ज्यादा ज़रूरी है.
यह कदम सिर्फ एक ही भेद पर आधारित है …मानसिक/आत्मिक सबलता और निर्बलता. .वक़्त कभी एक सा नहीं रहता है ..

 
लहूलुहान कर जिस वक़्त ने बना दिया था पत्थर मुझे
उस वक़्त को भी इल्म न था कि पत्थर खुदा बन जाएगा

 

 

 

परिवार और समाज की संरचना मज़बूत होगी ,मूल्यपरक समाज होगा ,एक दूजे के प्रति संवेदनशीलता होगी और जीवन सोद्देश्य होगा तो आत्महत्या जैसी घटनाएं स्वयं कम होती जाएँगी जीवन अनमोल है हम स्वयं भी जीएँ और दूसरों को भी ज़िंदगी जीने में मदद करें हमें जीवन जीने का अधिकार है और इसकी रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है.
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

 

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply