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यकीन नहीं है तो छूकर देखो

V2...Value and Vision
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समाज के किसी भी घटना क्रम से जब राजनीति जुड़ जाती है तो वह घटना अत्यधिक पेचीदा और रहस्यमयी हो जाती है.इसे राजनीति का मायावी प्रभाव कहा जाए या हमारी सोच और समझ का दायरा यह निर्णय करना कठिन है.इस बार भी यही हुआ अनुराधा बाली और गीतिका शर्मा दोनों ही राजनीति रसूख रखने वाले शख्स से जुडी थी .एक ने वैवाहिक सम्बन्ध बनाया तो दूसरी का जुड़ाव जीविकोपार्जन की वज़ह से रहा .अनुराधा बाली जिस तरह से रूप सौंदर्य की लावण्यता की वज़ह से चन्द्रमोहन की अर्धांगिनी बनी उस घटनाक्रम को देखने के बाद कई महत्वपूर्ण बात सामने आती है………..
प्रथम –यह कि बुद्धिमत्ता से तालुकात रखने वाली कुछ महिलाएं अपनी ज़िंदगी से जुडी बेहद महत्वपूर्ण व्यक्तिगत फैसले लेने पर उस बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता को भावावेग में भुला बैठती हैं.

दूसरी बात कि समाज(स्त्री-पुरुष) की एक विचित्र मानसिकता यह है कि राजनीतिक रसूख रखने वाले किसी भी व्यक्ति से अपना सम्बन्ध बताने पर लोग गौरवान्वित होते हैं .कुछ तो इस सम्बन्ध के भरोसे को अलादीन का चिराग समझ हर काम को चुटकी में पूरा हो जाने का दावा करते हैं.

तीसरी बात कुछ महिलाएं अपने शौहर के ऊँचे रुतबे और ओहदे पर होने से इसे status सिम्बल मान कर अपने नात-रिश्तेदार,पड़ोसियों से एक सुरक्षात्मक दूरी बना लेती हैं जो उनके लिए सदैव घातक साबित होता है. इस अकेलेपन का अवसाद और अलगाव उनकी ज़िंदगी को बेमकसद बना देता है जिसकी परिणति समाज के समक्ष इस भयावह रूप में दृष्टिगोचर होता है.

दूसरी घटना में गीतिका शर्मा की भी उम्र(२३ वर्ष) कोई बहुत परिपक्व अवस्था की नहीं थी. इस अवस्था में बच्चे अक्सर पहला गलत काम करते हैं वह कि अपनी बातों को घर के बेहद करीबी रिश्तों से साझा नहीं करते हैं.वे गैरों को तो अपना मान लेते हैं पर अपनों से दूरी बना लेते हैं.दूसरी गलती यह कि जल्द से जल्द सफलता की सीढ़ियों को चढ़ने के क्रम में जिन दुर्गम और अवांछित राहों से गुज़रने का समझौता कर लेते हैं वे उसकी मंजिल के शिखर से बेखबर रहते हैं.उन्हें यह बात समझ नहीं आ पाती कि साहस उचित है पर दुस्स्साहस कदाचित नहीं.

ऐसे किसी भी सम्बन्ध बनाने के पूर्व स्त्रीयों को अपनी बाह्य सुन्दरता के साथ अपनी असीम शक्ति,साहस,बुद्धिमत्ता जैसी आतंरिक शक्तियों पर भी भरपूर भरोसा करना चाहिए .पुरुष में शक्ति है पर स्त्री के असीम शक्ति पुंज से वह हार भी जाता है.मुझे नारायण दत्त तिवारी की पत्नी और बेटे पर फक्र है कि उन्होंने अपना हक कानून के द्वारा साबित करवाया इसमें उन्हें ना तो किसी महिला संगठन की मदद मिली ना ही और किसी अपेक्षित की पर उन्होंने अपनी कानूनी जीत हासिल की.यह उचित भी इसलिए था क्योंकि बच्चे को नाजायज़ मानने वाला समाज माता पिता को नाजायज़ क्यों नहीं मानता जिनकी क्षणिक भावावेग की वासना और लिप्सा एक बच्चे को समाज की नज़र में नए अस्वीकार्य विशेषण से नवाज़ देती है भला उस बच्ची/बच्चे का क्या कसूर है.

इतिहास गवाह है कि हर युग में स्त्री त्याग ,समर्पण,शक्ति,बुद्धिमता की साक्षात प्रतिमूर्ति रही है पर पुरुष प्रधान समाज ने हमेशा उसे जांचने-परखने और उनकी कर्तव्यनिष्ठा को भुलाने की हिमाकत की है.दूसरी ओर स्वयं स्त्रियों ने ही अपने त्याग ,अपनी वेदना ,अपने समर्पण से स्वस्तित्व की अलग परिभाषा रच दी है .इतिहास के पन्नों पर ऐसे कितने पुरुषों से सम्बंधित इबारतें लिखी हैं जिनकी पत्नियों के त्याग ने ही उन्हें जग को प्रकाशित करने में मदद की पर उन स्त्रियों की लिखित-अलिखित गाथा से वे पन्ने भीगे हैं.अगर आप को यकीन नहीं है तो वे पन्ने छूकर देखो जो उनकी छुपी अश्रुधाराओं से अब तक गीले हैं चाहे वे उर्मिला हों यशोधरा या………….

आज इन्ही भीगे पन्नों की  इबारतों से आपको रु-ब-रु करवाने जा रही हूँ…………….
1

गांधारी क्यों बांधी तुमने आँखों पर पट्टी
इस तरह तुम आज आदर्श तो ना बन सकी
पति की उस नियति और अशक्त अवस्था में
उनकी नेत्र ज्योति क्यों
तुम ना बन सकी ?
2 ……………
अपने चक्षु खुले रख कर अपने बच्चों का
सही मार्गनिर्देशन क्या नहीं कर सकती थी
सौ पुत्रों की माता थी तुम, एक बार सोचो
सुन्दर
सौ इतिहास ना रच सकती थी?
3 ……………
पति की कमजोरी संग कमज़ोर पड़ जाना
यह पति के प्रति सही सहयोग नहीं होता

अपनीशक्ति और संपूर्ण समर्थता से तेरा
ध्रितराष्ट्र से जुड़ना सोचो,कितना सही होता.

4 ………………
द्रौपदी!विचारों, तुमने भी तो की है गलती
क्यों खुद को वहां दांव पर लगने ही दिया
पुरुषों की भरी सभा में थे मौजूद पति भी
फिर क्यों अबला बन चीर हरने ही दिया
5 ……………..
यूँ चुपचाप अपमान का घूंट पी जाना
नारी का धर्मं तो कभी बनता नहीं है

ऐसे पुरुषों के साथ क्यों रहना ही बोलो
जिनमें अपनेपन का मर्म होता नहीं है

6 …………………
सीता,तुम तो अपना सर्वस्व छोड़ कर
पति का साथ देने ही तो वन गयी थी
उस स्वर्ण लंका के चमक से अछूती
राम की याद में ही तो जोगन भई थी

7 ………………
फिर राम ने कैसे ना दिया साथ तेरा
उन विवश,विषाद अश्रु भरे क्षणों में
सामजिक संशय के मर्यादा बोध से
छवि तुम्हारी बिखेर दी रज कणों में
8 ……………….
यशोधरा! तुम्हारे त्याग को ही देखो
इतिहास के किस ग्रन्थ ने याद रखा है
आज जिन महात्मा बुद्ध की गाथा से
प्राचीन इतिहास सुवासित महक उठा है
9 ……………….
मोक्ष प्राप्ति ही करनी थी तो क्यों
बांधा तुम्हारे संग सूत्र विवाह का
चुपचाप धीरे से सघन रात्रि में ही
संग छोड़ा तुम्हारा और राहुल का

10 …………………
देख लो तुम्हे तो उर्मिला के सदृश ही
इतिहास ने पूर्णतः है विस्मृत किया
पूछा उसने भी नहीं अपने स्वामी से
क्यों मुझे जीते-जी यूँ है मृत किया
??
11 …………………
अपने प्रति जिम्मेदारियों का एहसास
उर्मिला भी लक्षमण को ना दिला सकी
पति से चौदह वर्ष जुदाई की कल्पना
उसे भी कैसे और क्यों ना रुला सकी

12 ……………..
सच कहूँ भरे हैं हमारे ऐतिहासिक ग्रन्थ
ऐसी कितनी ही मार्मिक गाथाओं से
यकीन नहीं है तो छूकर देखो पन्ने जो
अब तक भीगे हैं उन छुपी अश्रुधाराओं से
****************

(किसी भी धर्मं या सम्प्रदाय को आहत करना इस blog का उद्देश्य नहीं है. मैं ब्लॉग में उल्लिखित सभी पात्रों की महानता के प्रति पूर्ण आदर और श्रधा रखती हूँ.सिर्फ भाव प्रबलता की अभिव्यक्ति के लिए उन सम्मानित पात्रों का उल्लेख किया गया है.अगर किसी भी आदरणीय पाठक को कोई भी आपत्ति हो तो मैं वह अंश बिना किसी वाद-विवाद या बहस के हटा लेने का वचन देती हूँ,साथ ही क्षमाप्रार्थिनी भी रहूंगी)
धन्यवाद

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