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एक मशहूर शेर है
चिराग घर का हो,महफ़िल का या मज़ार का
हवा के पास कोई मसलहत नहीं होती
यही बात मृत्यु के साथ भी है. राजा हो या रंक ,मौत का बुलावा सब को एक दिन आता है.सबसे अजीब और रहस्यमयी बात तो यह है कि सृष्टिकर्ता ने जन्म का उत्सव मनाने के लिए तो फिर भी नौ महीनों का एक तयशुदा वक्त दिया है पर मौत अक्सर अकस्मात् ही आती है.मृत्युशय्या पर पड़े परिजन,किसी दुर्घटना में घायल किसी अपने की करुण चीत्कार,शरीर के नश्वर होने के चिर सत्य से परिचित कराती है.पर एक आस लगी रहती है कि,काश!!!!!!!!यह बच जाए.दोस्तों कहते हैं कभी-कभी दुआ ही असर दिखाती है.पर कभी-कभी इन क्षणों में सबसे अधिक ज़रूरत होती है रक्त की.यह कहा गया है कि ‘बड़े भाग माणूस तन पावा’.मनुष्य होकर अगर हम दूसरों के काम ना आ सकें तो यह जीवन ही व्यर्थ है.
किसी ने सही कहा है…………
जीना है तो उसी का जिसने ये राज जाना
है काम आदमी का औरों के काम आ जाना
यूँ तो इस ज़माने में हैं लाखों पर मनुष्य वही है
जिसका उद्देश्य है मनुष्य के काम आ जाना
रक्तदान को महादान समझा जाता है .इस दिशा में हमारी एक छोटी सी पहल किसी परिवार के बुझते चिराग में पुनः ज्योति लौटा सकती हैं
दैनिक जागरण के २६ फरवरी २०१२ के अंक में श्री सुब्रत गुहा उर्फ़ केस्टो के विषय में पढ़ा था जो अखबार बांटकर अपना भरण-पोषण करते हैं पर अमूल्य ज़ज्बातों से किसी भी अट्टालिका में रहने वाले अमीर से कई गुना ज्यादा अमीर है क्योंकि वह जहां कहीं भी 0 negative रक्त की आवश्यकता होती है ,मदद के लिए पहुँच जाते हैं अब तक ३९ जान बचा चुके हैं बदले में वह कभी रुपये नहीं लेते पहली बार २० वर्ष की आयु में उसने रक्तदान किया था.समाज सेवा के रास्ते में कोई बाधा ना आये वे इस लिये विवाह बंधन में नहीं बंधे.उनका कहना है मुझे तकलीफ इस बात से होती है कि जो मुझसे खून लेते हैं वे किसी को खून देना नहीं चाहते,अपनों को भी नहीं,मैं लोगों को समझाता हूँ ,”मैं खून देता हूँ मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता आप भी दें,अगर सभी दूसरों की तकलीफ में मदद को कूदेंगे तो असमय मातम कभी कहीं भी नहीं होगा.”
इस दिवस पर एक छोटा सा सन्देश कुछ इस तरह………
कुछ बूंद रक्तदान करने से
क्यों मानव मन घबराता है ?
लेकिन कैसे हिंसक बन वह
जहां-तहां इतना रक्त बहाता है
…………
रक्त की होती नहीं कोई जाति
होता नहीं कोई इसका धर्मं
अपना जब घायल हो तडपे
तभी समझ आता यह मर्म.
……………
जानते हैं बड़े भाग्य से हम
यह मानव योनि पाते हैं
फिर एक-दूजे की मदद से
सदा ही ,पीछे हट जाते हैं .
……………
रक्त का यह सुर्ख लाल वर्ण
एक सुहागन की भी शोभा है
दान करो यही सोच कर कि
चमकाई उस मुख की आभा है
………………
कुछ बूंदें किसी ज़रूरतमंद का
जीवन अमृत सा बन जायेगी
वरना तड़प-तड़प कर काया
मिट्टी में व्यर्थ सन जायेगी.
……………
यह तन है माटी की गुडिया
बननी और फिर टूट जानी है
दूसरों के हित काम आ सको
यह काया तो आनी जानी है
…………….
आगे बढ़ा सशक्त कदम अब
मानवता को कर जाओ गर्वित
करो रक्तदान जैसे सत्कर्म से
कम से कम एक परिवार हर्षित
……………….
वक्त पर रक्त ना मिल पाने से
कितने असमय ही मर जाते हैं
इस महादान का महत्व समझ
यह पुण्य हम भी कर आते हैं.
………………
Every blood donor is a hero(theme 2012)
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