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ये सात झीने,बारीक परदे

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अङ्क सात के महत्व से कोई इनकार नहीं कर सकता.सात फेरे,सात वचन,सात दिन,सात रंग,सात सुर,सप्त ऋषि,सप्त वृतियां,सप्त धातु,सप्त धन्य,सप्त लोक,सप्त सिन्धु,सप्त स्नान,सप्त व्यसन,सप्त गोत्र,भक्ति के सप्त सोपान वगैरह…वगैरह.

आज मैं जिन सात बारीक झीने पर्दों की बात करने जा रही हूँ वे हम सब को उद्वेलित करते हैं,हम इनके आर-पार  देख भी पाते हैं पर स्पष्ट कभी भी नहीं .ये सात झीने परदे हैं…

जीवन, मृत्यु, प्रेम, वक्त, रिश्ते, अनुभव और सत्य.


जीवन

मनुष्य हार के लिए नहीं बना
पर जीवन हार-जीत है ही कहाँ .
जीवन तो एक संगीत है
इसे प्रस्फुटित करने के साज़
जुदा-जुदा हैं
वेणु,ढोल,सितार,वीणा
झांझ,मंजीरे,जल तरंग पर
जीवन की धुनें
बजती हैं अलग-अलग अंदाज़ में
सब बेहद कर्णप्रिय,बेहद मधुर
बस महारत साज पर चाहिए .

मृत्यु

बंद पलकों के कोरों से
उस दिन भी छलके थे आंसू
जब तुम्हारे मौत की कल्पना ने
तपा दिया था मुझे
सूनी पलकों के कोरों पे
ठिठक गए हैं वे आंसू
तुम्हारे मृत शरीर की शीतलता ने
बर्फ बना दिया है मुझे
शायद ये शुरुआत है मृत्यु को
सहजता से लेने की.

प्रेम

ज़िंदगी की ज़द्दोज़हद में
कहाँ सूख जाती हैं प्रेम की दरिया
वो कौन सी मरूभूमि है
जो सोख लेती है बूँद-बूँद
जब तक मालूम होता है पता
दरिया मरूभूमि में तब्दील हो जाती है
अच्छा होता जो ये सूखती नहीं
अपितु मरूद्यान का सृजन कर जाती
कम से कम प्रेम का कुछ अंश तो
शेष बचा पाती.

वक्त

बुलंद होता है तो बस
एक ही शय— ‘वक्त’
चिर सत्य
‘समय बलवान होता है

तभी तो…
एक वक्त आता है कि
बड़ी ही सहजता से मानने लगते हैं
वो सारी बातें जिन का
कभी पूरी सशक्तता से
विरोध किया करते थे हम .

अनुभव

अनुभव क्या है ??
ज़िंदगी के बगीचे से
चुने हुए फूल
दर्द का एहसास देते
चुभते हुए कांटे
महत्व तो इनका तब है
जब जीवन सुवास बन जाए
उनका क्या कहूँ जिनके लिए
अनुभव एक ‘कंघे’ समान
मिलता भी है तब
जब सर के सारे बाल झड जाते हैं
फिर भी निराशा क्यूँ
पश्चाताप,ग्लानि क्यूँ
इतनी संवेदनशीलता तो हो
कि कंघे से औरों के
केश संवार सके .

सत्य

क्यों मिलती है ज़िंदगी
टुकड़ों-टुकड़ों में
कितना कठिन होता है
इन बिखरे टुकड़ों को समेटना
इन्हें मिलाकर एक
संपूर्ण सार्थक आकृति बनाना
कितना भी जतन करो
टूटे ,बिखरे टुकड़ों में से कुछ
गुम हो ही जाते हैं
और ज़िंदगी की विकृति
कठोर सत्य बन
मुंह चिढा जाती है.

रिश्ते

रिश्ते वन के वृक्ष नहीं
जो बस यूँ ही बढ़ते जाएं
जल,मिट्टी की कुदरती कृपा पर
पल्लवित-पुष्पित होते जाएं
रिश्ते होते हैं…
वाटिका के पुष्पदार पौधे
चाहिए इन्हें विशेष देख-रेख
हर रिश्ता…….
अपने स्वभाव,गुण,प्रकृति अनुसार
देख-भाल चाहता है
ज़रुरत है उसे मिले
उसके ही अनुरूप प्यार और दुलार.

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