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कुछ ने कहा,रिश्ते
होते हैं कांच के मानिंद
सजगता से इन्हें संभालूं
टूटेंगे तो चुभेंगे;लहुलुहान कर देंगे……..
कुछ ने कहा,रिश्ते
होते हैं नन्हे बीज के मानिंद
दिल के ज़मीन उर्वर हो तो
विशाल तरु की काया लेते हैं
वक्त की आंधियां जिसे डिगा नहीं पाती………
मैं कहती हूँ——–
रिश्ते बनाना तो है आसान
रिश्ते तोड़ना तो कहीं ज्यादा आसान
पर निभाना कितना मुश्किल ?????????
कुछ रिश्ते बनते हैं महज़ चंद पलों में
पर ठहर नहीं पाते
ढह जाते हैं भरभराकर
बालू की भीत की तरह
ऐसे सतही रिश्तों की नींव
बाह्य आकर्षण होती है
जैसे बिना बताये जुड़े थे चंद पलों में
वैसे ही मौन हो तोड़ दिए जाते हैं
इनकी टूटने की आवाज़ सुनायी नहीं देती………….
कुछ रिश्ते बनते हैं लम्बे पल में
ये ठहरते भी हैं कुछ अरसों तक
ये बनते हैं एक-दुसरे को इल्तला कर,
महज़ अपनी ज़रूरतों की पूर्ति के लिए
फिर एक मोड़ आता है
ज़रूरतें विराम की ख्वाहिश से छटपटाने लगती हैं
रिश्तों में ठहराव आ जाता है
वे सडांध होने लगती हैं
किसी पोखर के ठहरे पानी की मानिंद
ऐसे रिश्तों की नींव स्वार्थ होती है
अतः ये बेहद कमज़ोर होती है
जैसे बता कर रिश्ते बने थे
वैसे ही बता कर तोड़ भी दिए जाते हैं
जिनके टूटने की गूंज दूर तक सुनायी देती है……………..
एक रिश्ता और बनता है
जांच परख के बाद
देर से बनता है पर अंत तक साथ देता है
इसमें कुछ पाने की तमन्ना तो नहीं होती
पर सर्वस्व लुटाने की गहन चाहत होती है
ऐसे रिश्ते बहुत कम ही बनते हैं
पर अरसों चलते हैं
ये सुख में साथ दें या न दें
पर दुःख में साथ निभाते हैं
ऐसे गहरे रिश्तों की नींव
प्यार,विश्वास और त्याग होती है
जो गहराई से रूहों में समा जाती है
ये रिश्ते टूटते नहीं
साँसों के साथ चलते रहते हैं
क्योंकि इनके टूटने से
साँसे टूट जाती हैं
क्योंकि इनके टूटने से
साँसे टूट जाती हैं……………………….
blessed are those having d relationship of RUH (SOUL)
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