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प्रिय ब्लॉगर साथियों
यमुना का प्यार भरा नमस्कार
इस दुर्गा अष्टमी को मैं जब बहुत ध्यान से माँ की सुन्दर मनमोहिनी मूरत निहार रही थी …तभी सहसा उस अद्भुत छवि वाली मूरत गढ़ने वाले मूर्तिकार का ध्यान अाया .मैंने सोचा कोई भी मूर्तिकार चाहे वह बहुत सुन्दर ही क्यों ना हो कभी भी अपनी सूरत को पत्थर लकड़ी या मिट्टी में नहीं उकेरता .बल्कि वह सुन्दरतम की कल्पना(सत्यम शिवम सुंदरम ) कर मूरत को गढ़ता है.यह कितनी सुन्दर बात है.हम सभी अपने आप को कहीं ना कहीं आरोपित करते रहते हैं ….क्या हम भी अपने व्यक्तित्व से हट कर सर्वोत्तम सुन्दरतम की कल्पना कर समाज को सबसे अच्छा देने की कोशिश नहीं कर सकते !!!!
हम कभी ना कभी हालातों से हार कर अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं .साहित्यकारों कवियों लेखकों के द्वारा पुरस्कार लौटाया जाना भी इसी हताशा को दर्शाता है .कलम तलवार से शक्तिशाली है इस बात को झुठलाते ये कुछ बुद्धिजीवी लोग दिवंगत कालबुर्गी के कार्य को आगे क्यों नहीं बढ़ाते !!! असहिष्णुता का माहौल है तो जिस कलम के लिए उन्हें अवार्ड मिला उसी कलम की ताकत को बेहतरी के लिए क्यों नहीं इस्तेमाल करते ???? यह तस्वीर में लिखी पंक्तियाँ उसी मनस्थिति को बयान कर रही हैं . ऐसे बुद्धिजीवियों के लिए हमारा एक ही सन्देश है की हमें एक मूर्तिकार की तरह सोचना होगा जो सिर्फ सुन्दरतम को ध्यान में रख कर अपने काम को अंजाम देता है .प्रत्येक पूजा के बाद मूरत विसर्जित हो जाती है फिर भी मूर्तिकार प्रत्येक वर्ष सबसे सुन्दर मूरत बनाने की कोशिश में जुट जाता है .काश हमारे कुछ चुनिंदा बुद्धिजीवी अवार्ड लौटाने से पूर्व एक बार मूर्तिकार से भी सीखने की कोशिश करते .!!!!!!!!!!!!!!!
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