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समंदर ऐसा कभी नहीं करता.(कांटेस्ट)

V2...Value and Vision
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समंदर का तट..उस पर शोर मचाती सर पटकती लहरें ….अपनी दूरी का भरसक एहसास कराता दूर तक फैला आसमान…और नीलाभ को स्वयं के दामन में समेटे तरल धरती का नीले आकाश से ही मिलन का झूठा प्रपंच रचता क्षितिज….सब कुछ एक फरेब ..पर फरेब शायद अपने मूल रूप में होने के बावज़ूद भी बहुत लुभाते हैं.तभी तो हर खुशी के मौके पर दीघा के समुद्र तट पर आना पूनम को बेहद पसंद था.यहीं पर उसे एक कॉलेज टूर पर शरद मिला था.१७ वर्ष की अल्हड सी उम्र का वह प्यार आज के युग में बेहद सच्चा साबित हुआ था जब आई.आई एम् से डिग्री लेने के बाद आधुनिक युग के सही सोच वाले युवा की उत्कृष्ट मिसाल देते हुए शरद ने पूनम के माता -पिता से पूनम को जीवन संगिनी बनाने की अनुमति ली थी.और शरद की पूनो घर को दीप्त करने चली आई थी.दो वर्ष के बाद एक नन्ही कली ने उनके घर को महका दिया.उनके घर का प्रत्येक कोना दीघा के समुद्र तट के प्यार का गवाह बन उठता था ऐसा लगता दीघा ने पश्चिम बंगाल की ज़मीन छोड़ उनके घर पर रहना स्वीकार कर लिया है. सच, दोनों का प्यार मानो पूरे वर्ष को शरद पूर्णिमा की रात सा उज्जवल कर देता था.पर किसे पता था कि शरद पूनो की रात इतनी भयावह हो जायेगी…दीघा का समुद्र तट पूरी दुनिया के समुद्र तट को कटघरे में खड़ा कर देगा.
अपने शादी की १५ वीं साल गिरह पर वे हमेशा की तरह दीघा गए .लहरें अचानक ही आक्रामक हो गईं थीं .अचानक एक केकड़ा बच्ची को दिखा भयभीत बच्ची ने आवाज़ लगाईं ,”पापा, देखो ना “लहरों के गर्जन में भी बिटिया की महीन आवाज़ शरद को भीतर तक झकझोर गई,वह दौड़ कर लहरों की बीच गया बिटिया बाहर आ गई थी पर लहरें उसे बहा ले गईं.जिसने सुना वही आह कर बैठा.नियति कठोर होती है ,कुदरत में अप्रत्याशित भी होता है ,पर इतनी कठोरता ,ऐसी अप्रत्याशितता !!!! पूनम मूक थी .समंदर की जलनिधि उसके आंसुओं से और बढ़ रही थी .लहरें अब भी उठ गिर रही थीं पर ये मूक विचार की लहरें थीं ….अपनी जल निधि में वृद्धि करने का क्या यही एक उपाय समंदर को मिला था !!!एक शाम जब सूर्यास्त हो रहा था ,समुद्र तट पर बैठ प्यार भरी बातें करते हुए शरद ने ही कहा था ,” समंदर की लहरें अपने साथ ले गई चीज़ों को वापस अवश्य लौटा देती हैं,”वह सोचती रोती रही , शरद ने कितना बड़ा झूठ बोला था   ‘समंदर ऐसा कभी नहीं करता.’

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