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सात गुना दो बराबर चौदह (७*२=१४)कांटेस्ट

V2...Value and Vision
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दो दिन पूर्व एक हल्के-फुल्के गप शप के दौरान मित्र मंडली में से एक ने कहा,”वैलेंटाइन डे और बाल दिवस आपस में सम्बंधित हैं ,कहो कैसे?”सबने लगभग एक साथ कहा ,”वो तो है क्योंकि दोनों १४ तारीख को ही मनाये जाते हैं.”मित्र ने कहा ,”और एक बात यह है कि वैलेंटाइन डे और बाल दिवस के बीच ठीक नौ महीने का अंतर है अर्थात वैलेंटाइन डे असावधानी से मनाये जाने पर बाल दिवस का उपहार मुफ्त में मिल जाता है.“बात मज़ाक में ही कही गई थी पर यह मज़ाक ही होता है जो हर कड़वी से कड़वी बात का भी सम्प्रेषण बहुत ही सरलता और गहनता से करने में सक्षम होता है.’प्रेम’का उत्सव मनाना कोई बुरी बात नहीं पर उत्तेजना,भावावेश,में वैलेंटाइन डे को मनाने की जल्दबाजी कतई उचित नहीं है.रिकॉर्ड बताते हैं कि वैलेंटाइन डे पर सबसे ज्यादा गर्भ धारण के आंकड़े बनते हैं.प्रेम और काम को सिर्फ पश्चिम के देशों से ही जोड़ कर नहीं देखा जा सकता .भारत भूमि वात्सायन के कामसूत्र की रचना और खजुराहो की मूर्तियों की गवाह है.दो महीने पूर्व ही मैं खजुराहो भ्रमण पर गई,यह देश विदेश के पर्यटकों का मुख्य आकर्षण बिंदु रहा है.कुछ पर्यटकों से मैंने पूछा कि वे किस दिलचस्पी से यहाँ आते हैं.ज़वाब कुछ गम्भीर तो कुछ रोमांटिक मिले पर एक बात सब ने स्वीकारी कि वे इन मूर्तियों की शिल्प कला के साथ काम पर भी शोध करने आते हैं .वैसे भी अपनी अप्रतिम गहन सुंदरता के कारण खजुराहो की मूर्तियां काम को प्रदर्शित करती हुई अश्लील बिलकुल नहीं लगतीं.यह मूर्तियां ‘सत्यम शिवम् सुंदरम ‘की अवधारणा पर टिकी हैं मुख्य बात यह कि हम इसके एकांगी पक्ष से अभिभूत होते हैं या सत्यम शिवम् सुंदरम के एकाकार रूप से परिमार्जित होते हैं.इनका निर्माण एक विशेष प्रयोजन से किया गया था जैसा कि गाइड ने बताया कि इन मूर्तियों को इसलिए बनाया गया था क्योंकि युद्ध में अधिकाँश पुरुषों के मारे जाने से पुरुषों के संख्या कम हो गई थी अतः जो बचे थे उन्हें इन मूर्तियों के माध्यम से प्रेरित कर अधिकाधिक स्त्रियों के साथ सम्बन्ध बना कर संतति विकास में योगदान देना था.अर्थात यह स्पष्ट है कि इन मूर्तियों का निर्माण विशेष परिस्थितियों में विशेष उद्देश्य से किया गया था.वैसे भी भारतीय हिन्दू विवाह व्यवस्था काम के संतति पक्ष पर विशेष जोर देती है.

यह सत्य है कि नन्हे जीव से वृहद् प्राणी तक सभी के लिए प्रेम और काम भूख प्यास के सदृश अनिवार्य है पर भूख प्यास के नियम की तरह काम और प्रेम की भी कुछ वर्जनाएं और सिद्धांत हैं जिन्हे पालन करना ज़रूरी है.काम सम्बन्ध बनाने के लिए कम से कम भारत देश में तो मैं विवाह व्यवस्था को अनिवार्य मानती हूँ ऐसा किसी दकियानूसी विचारधारा के वशीभूत नहीं बल्कि भारत देश के सामाजिक ,सांस्कृतिक आर्थिक पृष्ठभूमि के लिए ज़रूरी है .प्रेम जीवन का आधार है पूजा की तरह पवित्र है,भारत भूमि के लिए प्रणयोत्सव की अवधारणा कोई नई बात भी नहीं इसके लिए वैलेंटाइन डे का उधार भी ठीक है पर इस दिन के आड़ में प्रेम काम के सम्बन्ध के परिप्रेक्ष्य में भारतीय संस्कृति में निर्धारित वर्जनाओं से मुंह मोड़ लेना कतई उचित नहीं.भारत जो पहले से ही जनाधिक्य की समस्या,चिकित्सा सुविधाओं की ,कुपोषण,शिशु मृत्यु,प्रसव काल में माता की मृत्यु जैसी समस्या ,आर्थिक विषमताओं से जूझ रहा है वहाँ वैलेंटाइन डे को काम से जोड़कर देखना समस्या को और बढ़ाना ही साबित होगा.
वैवाहिक संस्था के सात अंक,सात फेरे सात वचन का दम इस १४ पर हमेशा भारी पड़ना चाहिए . प्रेम के काम पक्ष या प्रेम की दैहिक भाषा से मैं इंकार नहीं करती पर उचित उम्र,उचित परिवेश में ही यह सुहाता है.दोनों पक्ष सात के बंधन में बंध कर १४ के काम पक्ष को स्वीकार करें .प्रणयोत्सव के काम पक्ष की यही पाक साफ़ परिभाषा है ……

प्रेम का ढाई आखर
कोई तिलिस्म या जादू नहीं
प्रेम का पर्याय सिर्फ प्रेम है
प्रेम खुद की ही परछाई है

प्रेम निःस्वार्थ हो तो
इसके एक अल्पांश मात्र से
विवाह जैसे पारंपरिक सूत्र भी
रक्त संबंधों से ज्यादा
चिरंजीवी हो उठते हैं

खजुराहो के शिल्प सी

होती इसकी सजीवता

छेनी,हथौड़ी के प्रहार से

वे शिल्पें भी कहाँ संकोचित थीं !

मानो अपने शिल्पकार से
कई जन्मों से वे भी परिचित थीं .
यह है असीम प्रेम की दैहिक भाषा
इतनी पवित्र , निशब्द मुखर
कि बस मूक हो जाए
पवित्रता की सर्वोत्कृष्ट परिभाषा .
बस यही तो है
प्रेम की ‘दैहिक भाषा’
ढाई आखर प्रेम के काम पक्ष की
असीम रहस्यमयी शक्ति
और…..
पाक साफ़ परिभाषा.

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