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सुई,अन्न का दाना और जल भरा कटोरा.

V2...Value and Vision
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मेरे अज़ीज़ पाठकों/ब्लोग्गेर्स/साथियों
यमुना का प्यार भरा नमस्कार
मेरा 75th  ब्लॉग पर्यावरण दिवस के नाम
theme for world environment day
2013 is

THINK.EAT.SAVE——– REDUCE YOUR FOODPRINT

The story of a vast ocean..
begins with a single drop.
Small seed buried in deep
adorns the land  with crop.
then…………………………….
Why food loss & food waste ???
its time for these  to stop .
Let’s be aware to each grain
to make it anti starvation prop .

REDUCE UR FOOD PRINTTHINK.EAT.SAVE——– REDUCE YOUR FOODPRINT

“जब आदमी के पेट में आती हैं रोटियाँ
आँखें परी रुखों सी लड़ाती हैं रोटियाँ
जितने मज़े हैं सब दिखाती हैं रोटियाँ
पूछा किसी ने यह किसी कामिल फ़कीर से
ये महरोमां हक ने बनाए है काहे के
वह सुन के बोल बाबा खुदा तुमको खैर दे
हमको तो ये नज़र आती हैं रोटियाँ
रोटी ना पेट में हो तो कुछ जतन ना हो
मेले की सैर ख्वाहिशें बागो चमन ना हो
भूखे गरीब दिल की खुदा से लगन ना हो

है कहा किसी ने भूखे भजन ना हो
अल्लाह की भी याद दिलाती हैं रोटियाँ
कपडे किसी के लाल हैं रोटी के वास्ते
बांधे कोई रूमाल है रोटी के वास्ते
जितने हैं रूप सब दिखाती हैं रोटियाँ”

यह मशहूर शेर रोटी के महत्व और भूख के दर्द को बयान करने के लिए काफी है.रोटी,कपड़ा,मकान की तीन मूलभूत आवश्यकताओं में रोटी का ही प्रथम स्थान है.पर गौरतलब बात यह है कि इस रोटी का बंटवारा पूरे विश्व में बेहद असमान है.कहीं पर लोग भूख से बिलबिलाते हुए रोटी को तरस रहे हैं तो कहीं रोटी किसी मुंह का निवाला बनने को तरस रही है.HAVES  की सारी खुशी और HAVES NOT  के संपूर्ण दर्द की दास्तान रोटी से शुरू और रोटी पर ही ख़त्म होती है.

बचपन में जब थाली में भोजन छोड़ती तो माँ समझाती थी ,”भोजन छोड़ने के पहले रेलवे प्लेटफार्म और ट्रैफिक सिग्नल पर भूख से मायूस चहरे भी याद कर लिया करो.”माँ के द्वारा दी गई इस संवेदनशीलता ने रोटी के एक निवाले और अन्न के एक दाने का महत्व बचपन से ही सीखा दिया था.वे गैस पर दूध उबालने के वक्त भी अत्यंत सजग रहती थी कि दूध उबल कर फर्श पर ना फ़ैल जाए.वे हमें दक्षिणभारत के एक संत की कहानी सुनाती थी.उन संत की पत्नी जब भी उन्हें भोजन परोसती वे उन्हें एक कटोरे में जल और एक सुई भी भोजन की थाली के बगल में रखने को कहते थे.कई वर्षों तक जब यह सिलसिला चला एक दिन पत्नी ने इसकी वजह जानना चाही .तब उन्होंने बताया कि अगर तुमसे भोजन परोसने के वक्त या मुझसे भोजन करने के वक्त अन्न का एक भी दाना गिर जाता तो मैं उसे सुई की नोक से उठा,कटोरी के जल में धोकर खा लेता .पर तुमने सदा इतनी सावधानी से भोजन परोसा कि इसकी ज़रुरत ही कभी नहीं पडी.पतिदेव के घर आई तो वहां के संयुक्त परिवार में मत जी द्वारा यह सीखा कि अगर खाद्य पदार्थ या कोई भी वस्तु सीमित मात्रा में उपलब्ध हों तो उसे भी घर के सबसे छोटे से लेकर सबसे बड़ी उम्र के लोगों में किस तरह बाँट देना है कि खाद्य पदार्थ सभी को मिल सके अतः वहां भी अनाज की बर्बादी कभी देखने को नहीं मिली.

साथियों, इस वर्ष जब मैंने विश्व पर्यावरण दिवस की थीम देखी तो माँ के द्वारा सुनाई यह कहानी और अन्न के प्रत्येक दाने के प्रति सजगता की उनकी शिक्षा बेहद प्रासंगिक लगी.भूख मरी की सबसे बड़ी वजह अन्न की बर्बादी ही है. पूरे विश्व में जितना अन्न उत्पादन हो रहा है वह धरती की सात बिलियन जनसंख्या जो 2050  में 9बिलियन हो ,जायेगी की भूख मिटाने को पर्याप्त है.पर दुःख की बात यह है कि एक ताज़ा सर्वेक्षण के अनुसार उत्पादन से अंतिम उपभोक्ता तक पहुँचने की पूरी श्रृंखला में खाद्यान्न का एक तिहाई भाग नष्ट या अपव्यय हो जा रहा है जो करीब 1.3 बिलियन टन के बराबर है.भोजन जिसका मुख्य मकसद मनुष्य की भूख मिटाना और उन्हें स्वस्थ रखना है ,उसका इस तरह नष्ट होना चिंता का विषय है फिर वह चाहे पशुओं को चारे के रूप में दिया जाए या बायो ऊर्जा उत्पादन में प्रयुक्त हो वह अपने असली मकसद को प्राप्त ना होकर भुखमरी के शिकार की संख्या में इजाफा ही करता है.

UN under secretary ,UNEP Executive Director Achim Steiner का कहना है “In a world of 7 billion people set to grow to 9 billion by 2050 wasting food makes no sense-economically,environmentally and ethically….aside from the cost implications,all the land,water,fertilizers and labour needed to grow that food is wasted….not to mention the generation of greenhouse gas emissions produced by food decomposing on landfill and the transport of food that is ultimately thrown away….to bring about the vision of a truly sustainable world,we need a transformation in the way we produce and consume our natural resources.”

अन्न की बर्बादी का प्रथम पहलू (food loss)उत्पादन की गलत तकनीक से होने वाले नुकसान,फसल कटने के उपरान्त उनके उचित संग्रहण की व्यवस्था ना होना,चूहों द्वारा नष्ट होना या खुले में अनाज का सड़ जाना,खाद्य प्रसंस्करण के दौरान उनकी गुणवत्ता और पोषक तत्वों में गिरावट आना या उचित preservative ना प्रयुक्त होने से उत्पादों का समयपूर्व खराब हो जाना और खाद्यान्न वितरण के दौरान सबसे जरूरतमंद अंतिम उपभोक्ता तक इस का ना पहुँच पाने से सम्बंधित है.
अन्न बर्बादी का दूसरा पहलू (food waste)यह है कि खाद्यान्न ,खाद्य आपूर्ति श्रृंखला के अंतिम चरण तक तो पहुँचने में समर्थ हो जाता है पर फिर भी इसके कुछ भाग का उपभोग नहीं हो पाता है. यह अपव्यय होटल, रेस्टोरेंट तथा घरेलू उपभोग में अपशिष्ट भोजन के रूप में देखा जाता है.

भोजन की यह बर्बादी विश्व स्तर पर मानव अधिकार(भोजन का अधिकार)को गंभीर चुनौती है.साथ ही पर्यावरण और अर्थ व्यवस्था के लिए घातक है क्योंकि भोजन बर्बाद होने से उस भोजन के उत्पाद में लगे सभी साधनों मसलन जल,भूमि,ऊर्जा की बर्बादी हो जाती है.

यह भोजन बचाओ मुहिम UNEP,FAO,Messe Dusseldorf तथा UN secretary general’s Zero Hunger Challenge के सम्मिलित सौजन्य से शुरू किया गया है जो क्षेत्रीय से विश्व स्तर तक प्रत्येक व्यक्ति को अन्न के एक-एक दाने के प्रति सजग और संवेदनशील करने की एक व्यापक और प्रसंशनीय पहल है.
भारत विश्व के शीर्ष अनाज उत्पादक देशों में स्थान रखता है.’खाद्यान्न का कटोरा’ कहे जाने वाले भारत देश में भूख से मरने वालों की संख्या विश्व में सर्वाधिक है यह विश्व भूख सूचकांक में 66th  स्थान पर है .अन्न को देवता समझने वाली इस धरा पर भी अन्न की तौहीन आसानी से देखी जा सकती है.किसी शायर ने भूख के इस दर्द को कुछ इस तरहसे जुबान दी है…..

एक भूख सह कर मरा है,दूसरा गोलियां
बताओ किसे शहीदे वतन कहा जाए ??

एक अनुमान के अनुसार देश में २० करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें दिन में भोजन मिल पायेगा कि नहीं इसकी कोई गारैंटी नहीं .हम क्षुधा तृप्त लोगों में से कुछ संवेदनहीन लोगों के कारण आवाम का हर सात में से एक व्यक्ति भूखा सोने को मजबूर है.क्योंकि क्षुधा तृप्त लोगों को इस भूख के दर्द का अंदाज़ा ही नहीं हो पाता है …..सच ही कहा गया है…

होती है प्यास क्या उनसे पूछते हो क्यों
जिस नाव ने सूखा हुआ दरिया नहीं देखा…

भूख की समस्या को सुलझाए बिना सामाजिक और आर्थिक विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती और अन्न की बर्बादी को प्रत्येक स्तर पर रोकना ही इस समस्या के लिए राम बाण औषधि है .पर्यावरण दिवस के इस मुहिम को समझने और इसमें सहयोग देने के लिए क्षुधा तृप्त वर्ग को ही पहले पहल करनी होगी…

रात अंधेरी है, चलो चाँद उगा लें
जो पहरे पर हैं ,ज़रा उन्हें जगा लें
रोशनी कितनी है, फुर्सत में कभी तय करना
पहले आंधी में ,चिराग सम्हाल लें.

किसी शायर के उपरोक्त अलफ़ाज़ आज की भागम भाग भरी ज़िंदगी में भोजन की आदतों के प्रति भी प्रत्येक स्तर पर सजग और संवेदनशील होने के लिए व्यक्तिगत तौर पर समाधान के लिए प्रेरित करते हैं.हम इस मुहिम में कैसे शामिल हों यह विचारणीय तथ्य है…..

1)      खाद्यान्न उत्पादन प्रक्रिया को बेहद कुशल बनाया जाए. इस क्रम में उत्तम बीज रोपण के साथ उपयुक्त सिंचाई,अनुकूल खाद तथा फसल रख-रखाव की आवश्यकता है.आज हरित क्रान्ति नहीं बल्कि सदाबहार क्रान्ति की ज़रुरत है ताकि कृषि मानसून का जुआ बन दम ना तोड़ सके.यह “अथक प्रयास;सुनहरी फसल’ के रूप में पूरी धरा पर अपनाई जाए.एक रक्षणीय और पोषनीय कृषि जिससे उपज की मात्रा और स्तर दोनों बरकरार रहे.हरित क्रान्ति के जनक डा.एम्.एस.स्वामीनाथन का कहना है कि किसी खाद्य फसल को बोने के वक्त जमीन की हालत और जल की ज़रुरत ,खाद का उचित उपयोग और फसल चक्र को ध्यान में रखना चाहिए.” इस प्रकार हम शुरुआती दूर से ही अन्न बचाने की दिशा में पहलकर सकते हैं.
2)    फसल कटाव के समय अन्न बर्बाद ना हो और संग्रहण,भडारण की उचित व्यवस्था हो ताकि अनाज चूहों के द्वारा नष्ट ना हो ना ही खुले में भीग कर बर्बाद हो .अनाज अगर गोदामों में रखने की जगह ना हो तो उसे खुले या नमी में बर्बाद होने की बजाय सस्ती दर पर ज़रूरतमंदों को दे दिया जाना चाहिए.अन्न भंडारण की उचित व्यवस्था की कमी की वज़ह से भारत में ही पिछले 10 वर्षों में 10 लाख टन अनाज बेकार हो गया .करीब एक करोड़ लोगों को एक साल तक इससे भोजन मिल सकता था.
3)    खाद्य प्रसंस्करण के दौरान उचित तकनीक अपनाई जाए ताकि खाद्यान्न के गुणात्मक पोषक तत्वों का नुकसान ना हो.धान जैसी फसल का प्रसंस्करण कर भंडारण करने से 60-70 % जगह बच सकेगी जिसमें अतिरिक्त अनाज को सुरक्षित संग्रहण किया जा सकता है.
4)    खाद्यान्न वितरण प्रणाली सुव्यवस्थित तथा पारदर्शी हो ताकि जीवन स्तर के अंतिम सोपान पर खड़े बेहद ज़रूरतमंद की झोली तक भी वह अनाज पहुँच सके.
कुल मिला कर हमें इतना संवेदनशील और सजग होना पडेगा कि …..

उस बेसब्र शख्श की भूख का अंदाजा लगा सकें
जिसकी नज़र कुतों की रोटियों पर भी टिकती है….
.

अब बात आती है उपभोक्ता के पहल की… अन्न की बर्बादी रोकने के लिए भोजन ग्रहण करते वक्त छह” क “(कहाँ,कब,क्या,कैसे,क्यों और कितना )का सिद्धांत अपनाया जाए भोजन के गुणात्मक पहलू के साथ भोजन ग्रहण करने का स्थान,समय,परिवेश,भोज्य वस्तुओं की प्रकृति तथा रस ,भोजन करने की शैली तथा प्रक्रिया के अनुसार भोजन सेवन के प्रति सजगता भोजन अपव्यय से बचाती है.भोजन पकाना भी एक ध्यान और अभ्यास है उसे पूरी तन्मयता से करने से उसे ग्रहण करने वालों का चित्त स्वयं ही भोजन के प्रति सजग हो जाता है.यह पूर्णतः सत्य कहा गया है “to prepare the food is to prepare yourself.to refine the food is to refine your own practise.”

1)     कहाँ— सबसे पहले यह ध्यान रखना चाहिए कि भोजन स्थान विशेष की जलवायु के अनुसार ही हो.प्रसिद्ध अँगरेज़ लेखक आल्दुआस हक्सले ने अपनी भारत यात्रा से सम्बंधित पुस्तक में लिखा है“भारत में आये अँगरेज़ शाषक भूखे भारतीयों पर अपना रॉब जमाने के लिए ही दिन में पांच बार भोजन करते थे.वरना ठन्डे मुल्क से आये अंग्रेजों को भारत जैसे गरम देश में इतना खाने की कोई ज़रुरत ही नहीं थी.”पर दुःख की बात यह है कि हम भारतीयों ने बगैर सोचे समझे उनके दिखावे को अपनी आदत में शामिल कर उसे भोजन शैली बना लिया.भोजन स्थानीय होना भी अच्छा है.इससे परिवहन के दौरान खाद्यान्न बर्बादी से बचा जा सकेगा.इसी प्रकार अगर होटल में भोजन करने के दौरान या विवाह समारोह(जहां मुफ्त भोजन उपलब्ध होता है) इत्यादि में भोजन ग्रहण कर रहे हों तो भी भोजन अत्यंत किफायती अंदाज़ में लेना चाहिए ताकि अधिकाधिक लोग भोजन ग्रहण कर सकें और भोजन का अनावश्यक उपभोग ना हो.
2)    कब— जब अच्छी भूख लगी हो तभी भोजन ग्रहण करना चाहिए और भूख से थोड़ा कम ही खाना चाहिए.महर्षि चरक भोजन को अग्निहोत्र सा मानते हैं जो सिर्फ दो बार ही आवश्यक है सुबह और शाम .इससे भी हम भोजन की बचत करने की दिशा में योगदान दे सकेंगे .
3)    क्या— भोजन सात्विक हो जिससे यह हमारे मन को भी जल्द तृप्त कर सकेगा, स्थानीय हो ताकि दूर दराज से लाने के लिए साधनों के अनावश्यक उपयोग को रोक कर पर्यावरण की सुरक्षा में सहयोग दे सकेगा .ओर्गानिक भोजन जिसमें रसायन का इस्तेमाल ना हुआ हो सर्वाधिक अच्छा होता है.भोजन का सजगता पूर्वक चुनाव इसकी बर्बादी को कम कर देता है.
4)   कैसे –भोजन शांत चित्त ,एकाग्रचित्त होकर करना चाहिए.भोजन ग्रहण करने के दौरान टी.वी देखना,नेट सर्फिंग करना ,यंत्रचालित होकर भोजन ग्रहण करना या बात चीत करते रहने से आवश्यकता से ज्यादा भोजन लेने की संभावना बढ़ जाती है जो भोजन का अपव्यय ही है.भोजन ग्रहण के  पूर्व मंत्रोच्चारण की वैदिक पद्धति भी ईश्वर के प्रति कृतज्ञता है’हे प्रभु !जो दिया;बहुत दिया” त्वदीयं ही वस्तु गोविन्दम त्वदीयं ही समर्पयामि ”
या ” ॐ सहनाववतु सहनो भुनक्तु सहवीर्यं करवावहे
तेज्स्विनामाधित्मस्तु माविद विशावाहे
ॐ शान्ति ॐ शान्ति ॐ शान्ति”
ये कृतज्ञता हमें थाली में अन्न का एक दाना भी छोड़ने से बचा लेती है.
5)   क्यों— यह समझना और सजग रहना ज़रूरी है कि हम भोजन जीवन के लिए कर रहे हैं या भोजन के लिए जी रहे हैं.भोजन उतना ही ग्रहण करना उचित है जो हमें तन-मन से स्वस्थ रखे.आज की पीढी कभी मौज-मस्ती के लिए तो कभी एकाकीपन दूर करने के लिए भोजन वह भी फास्ट फ़ूड का सहारा ले रही है जो अनजाने ही उनमें अनावश्यक रूप से भोजन ग्रहण करने की आदत को विकसित होने में सहायक हो रहा है और कई भूखे के निवाले इस आदत की बलि चढ़ रहे हैं.जब हम जीने के लिए भोजन ग्रहण कर रहे हैं तो दूसरों को भी जीने का अधिकार देना हमारी संवेदनशीलता का सुन्दर उदाहरण होगा.
6)   कितना— भोजन की मात्रा परिणात्मक और गुणात्मक दोनों ही दृष्टिकोण से विचारणीय है.भोजन की मात्रा आदर्श होने के साथ उसके पोषक तत्वों की भी जानकारी हमें अधिक भोजन से रोक सकती है और वह अतिरेक भोजन जिससे हम बच जाते हैं वह किसी अन्य भूखे के मुंह का निवाला बन सकती है.भोजन करने का उद्देश्य पेट भरना नहीं बल्कि मन तृप्त करना भी होना चाहिए.भोजन इतनी ही मात्रा में हो जो हमें स्वस्थ रख सकने के लिए काफी हो.बाज़ार से भी हम उतना ही खरीदें जितने की ज़रुरत है,सेल,छूट इत्यादि के चक्कर में अनावश्यक भोज्य पदार्थ नहीं खरीदना चाहिए.जल्द खराब होने वाले खाद्य पदार्थ खरीदते वक्त तो अत्यधिक किफायती होने की आवश्यकता है.

ईश्वर भजन पूजन के वक्त भी दूध बहाना या फिर प्रसाद के नाम पर अनावश्यक रूप से अन्न की बर्बादी को रोकना होगा ताकि ज़रुरत मंदों को वह दूध और अनाज उपलब्ध हो सके .

इस प्रकार हम अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य को भोजन के चुनाव और मात्रा के प्रति सजग और संवेदनशील बना कर भोजन की बर्बादी से बच सकते हैं.आइये मिल-जुल कर    THINK.EAT.SAVE——– REDUCE YOUR FOODPRINT    को तहे दिल से स्वीकार करें और विश्व स्तर पर भूख के दर्द को कुछ इस तरह से समझें…..(गोपाल प्रसाद नीरज जी की पंक्तियाँ उद्दृत कर रही हूँ )

चलो एक ऐसा भी मज़हब बनाया जाए
जहां इंसान को सिर्फ इंसान बताया जाए
हर दिल में एक दूजे के लिए दर्द हो इतना
रहे गर पड़ोसी भूखा तो हमसे भी सोया ना जाए.
रहे गर पड़ोसी भूखा तो हमसे भी सोया ना जाए.

(datas from net
thanx)

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