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फिर वही कोप भवन,,कैकेई का रूठना…दशरथ का मनाना..
ओह !!!! त्रेता युग में कैकेई की विवेकहीनता के घने अँधेरे के ऐसे साये का प्रभाव १४ वर्ष तक रहने वाला है और राजा दशरथ के जीवन दीप का लौ तो सदा के लिए बुझ कर इस अँधेरे का साथ निभाने वाला है …यह तो स्वयं राजा दशरथ ने भी ना सोचा था .क्षत्रिय धर्म निभाने की आकुलता राज धर्म निभाने पर कितनी भारी पड़ गई थी .सच है सुन्दर से सुन्दर स्त्री भी अगर विवेकहीन हो जाए तो दिव्य से दिव्य पुरूष भी उस साये में अपनी दिव्यता खो देता है. लगता है पुनः एक बार मंथरा की जीत निश्चित है. ..नहीं…नहीं …ऐसा अब ना होगा !!! वर्त्तमान युग की सीता ने चिंतामग्न हो त्रेता युग को याद किया …नहीं इस बार वह सजग है.कैकेई आज भी उतनी ही विवेकहीन है . जितनी त्रेता युग में थी…..रानी होकर भी उसे राजधर्म और परिवार कल्याण दोनों का ही तनिक भी बोध न था.आज भी उसमें तनिक भी परिवर्तन नहीं आया है.
मंथरा पर क्षोभ कम है वह जानती है मंथरा अपने बुद्धि स्तर को ऊंचा कर ही नहीं सकती तभी तो वह मंथरा है.पर कैकेई हर बार विवेकशून्य क्यों हो जाती है ?? उसे अपनी पद प्रतिष्ठा का सही भान क्यों नहीं हो पाता ? वह मंथरा के भड़काने पर भी अन्य रानियों कौशल्या सुमित्रा से विचार विमर्श क्यों नहीं करती ?यह सोचते सोचते आज की सीता ने अपने दुःख को कौशल्या सुमित्रा से साझा करने का निश्चय किया .वे दोनों ही विवेकी स्त्रियां हैं .उन्होंने आज के दशरथ को निर्णय सुना दिया “राजा आप क्षत्रिय धर्म निभाओ..अपना दिया गया वचन पूरा करो …हम परिवार और समाज धर्म निभाएंगी …हम परिवार के बेटे बहू को वनवास न जाने देंगी “
दशरथ विवश हैं……राम नारी शक्ति के समक्ष हार रहे हैं……और कैकेई वह क्या करे …यहां तो एक से भले दो को साबित करती दो विवेकी स्त्रियां संगठित हैं……और संग सीता की विवेकपूर्ण सूझबूझ …इस त्रिवेणी का प्रवाह इतना तेज कि नया रामायण रच गया…….दिमागी ताकत विवेक और सूझ बूझ से दिल हार गया .
अब कैकेई कभी कोप भवन न जाएगी…सीता सुसंस्कृत है …अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति पूर्णतः सजग ..उसकी विलक्षणता का एहसास कैकेई को हो गया.आखिर वर्त्तमान अयोध्या भी चौदह वर्षों के लिए भी रामराज्य से महरूम क्यों रहे .
सन्देश :
एक शक्ति होती है तलवार की …उससे भी ज्यादा शक्तिशाली है कलम की ताकत …और इन दोनों से बड़ी ताकत होती है स्त्री /नारी के विवेक की ताकत जो समाज को सुन्दर बना देती है.अगर घर समाज देश की नारियां अपने विवेक का प्रयोग करें तो कोई मंथरा कभी उसे भड़का ही ना सकेगी और किसी राम को वनवास जाना न पडेगा ….कोई दशरथ असमय मृत्यु को प्राप्त न होंगे .आप कह सकते हैं “फिर रावण कैसे मारा जाएगा ?? ”
रावण यूँ भी किसी ना किसी के द्वारा और नहीं तो अपने अहंकार के वज़ह से मारा ही जाएगा इसके लिए हर बार राम वनवास क्यों जाएं ??
आओ नारियों !! करें स्वागत
नव वर्ष के इस नव गीत का
विवेकी और बुद्धिमती बन के
निभाएं कर्त्तव्य नव रीत का .
–यमुना पाठक
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