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हमदम,तेरे साथ चलूँ तो….

V2...Value and Vision
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SDC12354अनुपम जागरण मंच की दुनिया से जुडी मेरी प्रिय बहनों,
आज हरितालिका तीज के शुभावसर पर आप सबों के सुखद दाम्पत्य और अखंड सौभाग्यवती रहने की सुखद कामना के साथ यमुना का प्यार भरा नमस्कार.

विवाह संस्था और पारिवारिक मूल्यों पर मेरी गहरी आस्था और अटूट विश्वास है.हरितालिका तीज का यह निर्जला व्रत पत्नी अपने पति की मंगल कामना के लिए रखती हैं.हालांकि देश के कुछ राज्यों बिहार,झारखण्ड,छत्तीसगढ़ ,मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में प्रचलित इस व्रत का महिमा मंडन देश के इन्ही राज्यों के साथ पंजाब,हरियाणा में भी प्रचलित व्रत करवा चौथ की तरह हिन्दी सिनेमा ,धारावाहिक इत्यादि द्वारा ना होने के कारण बहुत कम लोग ही इससे परिचित हैं पर फिर भी  तीज के रूप में उपासना आज भी इन राज्यों की माटी में सोंधी महक के रूप में समाई है.आप के मस्तिष्क में सहज ही एक प्रश्न उठ गया होगा-“पति अपनी पत्नियों के लिए ऐसा कोई व्रत क्यों नहीं रखते ?”यही प्रश्न मुझसे एक नवविवाहिता ने भी पूछा.मेरा मानना है कि पति जो घर से बाहर अपने परिवार के सुख-सुविधाओं के लिए दिन भर भटकता है ,जोखिम उठाता है क्या यह उसके व्रत की एक बानगी नहीं ?व्रत का सीधा अर्थ किसी गहरे संकल्प से भर जाना होता है.फिर वह अच्छे मार्ग पर बढ़ने का,जीवन को सर्वोत्तम ढंग से जीने का या अपने कार्य को निष्ठां पूर्वक करने का हो सकता है.इस नज़रिए से पति प्रत्येक दिन व्रत रखता है क्योंकि वह प्रतिदिन अपने परिवार के सुचारुपूर्ण ढंग से रोजी-रोटी की व्यवस्था का संकल्प करता है.जो काम काजी महिलाएं हैं ;व्रत उपवास उनकी आस्था का प्रश्न है पर वे कामकाजी महिलाएं और गृहणी भी प्रतिदिन एक व्रत से गुज़रती हैं और वह है अपने परिवार के साथ-साथ अपने जीवन को भी सर्वोत्तम बनाने का व्रत(संकल्प).
क्या है मान्यता-
इस व्रतोत्सव के लिए कहा जाता है कि जब भगवान शिव को पाने के लिए माँ पार्वती तपस्या रत हो गई तो पुत्री के कठोर तप को देख राजा हिमालय ने देवर्षि नारद से परामर्श कर बेटी का विवाह भगवान विष्णु से करने का निर्णय लिया.भगवान शिव को अपना वर मान चुकी माँ पार्वती को इस बात की जानकारी होने पर बहुत दुःख हुआ. उन्होंने मन की पीड़ा अपनी सखियों से कही.पिता की नज़रों से पार्वती को बचाने के लिए सखियों ने उन्हें घने जंगल में छुपा दिया जैसे किसी का हरण किया जाता है ठीक उसी तरह सखियों ने माँ पार्वती को छुपाया..हरण होने के कारण ही इस व्रत को हरितालिका कहा जाता है.इस दौरान माँ पार्वती ने वन की एक कन्दरा में शिव की प्रतिमा बना उनका पूजन किया.उस दिन भाद्र पद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि थी .पार्वती जी ने निर्जला व्रत करते हुए दिन-रात शिव की आराधना की. उनकी सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर भगवन शिव प्रकट हुए और उन्होंने पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार करने का वर दिया.तभी से यह व्रतोत्सव मनाया जाता है .
मैं वर्त्तमान में पति द्वारा पत्नी को वेतन दिए जाने जैसे बेमानी फैसले के मद्देनज़र जब हरितालिका तीज जैसे पारंपरिक व्रत-त्योहारों का आकलन करती हूँ तो समाज के बदलते परिवेश में विवाह संस्था के विकृत होते स्वरुप पर क्षुब्ध भी होती हूँ.पर यह फैसला समाज के बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा क्यों लिया गया यह भी गौर करने वाली बात है.अनुराग बसु की मूवी ‘बर्फी’के कुछ प्रारम्भिक शब्द“आज का प्यार ऐसा,दो मिनट नूडल्स जैसा,फेस बुक पर पैदा हुआ,कार में हुआ ये ज़वां,कोर्ट में जाकर मर गया”आज के प्रेम की विकृत सच्चाई को बताती है.पर कुछ स्थितियों में पति द्वारा पत्नी को वेतन दिए जाने का यह फैसला निहायत ज़रूरी भी है क्योंकि……….

१) कुछ गैरजिम्मेदार पति अपनी कमाई का कुछ हिस्सा शराब,पार्टी या अपने अवैध संबंधों पर खर्च करने से बाज़ नहीं आते ऐसे में दिन भर समर्पण और त्याग की देवी बनी पत्नियों के लिए यह सकारात्मक कदम है .

२) पति की मृत्यु की दुखद घटना के बाद परिवार वाले पुत्र की कमाई और उसके बैंक जमा पूंजी को किसी ना किसी दांव-पेंच से काम क्रिया में लगाने का बहाना बना विधवा को उससे वंचित कर आर्थिक दृष्टि से मजबूर कर देते हैं.यह वक्त उस विधवा के लिए इतना दुखद होता है रुपये-पैसे के विषय में वह अपनी सोच की दिशा निर्धारित नहीं कर पाती,जिसका बेजा लाभ रिश्तेदार उठा लेते हैं.ऐसे बुरे वक्त में तात्कालिक ज़रूरत के लिए कम से कम उसके खाते में जमा पूंजी सहायक हो सकेगी.

३) जो दंपत्ति विवाह व्यवस्था को एक समझौता और घुटन भरा बंधन मान कर दाम्पत्य जीवन की ज़द्दोज़हद में उलझे होते हैं उनके लिए यह फैसला स्वागत के योग्य हो सकता है .

जिन दम्पत्तियों के संबंधों का अटूट भवन आपसी विश्वास की नींव और भरोसे की छत के साथ खडा होता है उन्हें ऐसे किसी भी फैसलों का कभी भी इंतज़ार नहीं रहता क्योंकि उनके आपसी रिश्ते इस सुदृढ़ भवन में बेहद महफूज़ होते हैं.

“हमदम तेरे साथ चलूँ तो……”इस हरितालिका तीज के शुभावसर पर इन्ही मधुर संबंधों की अभिव्यक्ति है.इसे जीवन भर हर वह विवाहिता एहसास करती है जिसे ईश्वर ने जीवन साथी के रूप में एक विवेकी व्यक्ति का उपहार दिया है.

तुम साथ हो तो मुझे सम्पूर्णता का एहसास होता है
जीवन के हर एक मोड़ पर पर्व सा उल्लास होता है.
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तुम्हारा साथ जीवन को सुवासित झोंकों से भरता है
तेरे सिवा दूजा ना कोई ,इस दिल दर्पण में बसता है
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आँखें मैं बंद करूँ जब भी, वही तेज़ कदमों की चाल
शरारती नयन तेरे और दमकते माथे पर बिखरे बाल
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एक थिरकन नख से शिख को,मादक लय दे जाती है
तुम्हारी पद चाप तुम्हारे आने का,दस्तक दे जाती है.
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चहरे पर फ़ैली वही चिर परिचित, मोहक सी मुस्कान
चारों तरफ उड़ती नज़रें, उनसे भी ज्यादा चौकस कान
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सबकी निगाहें तेरे सुदर्शन व्यक्तित्व पर सिमट जाती हैं
बुरी नज़रों से बचाने की इच्छा अमरबेल सी लिपट जाती है
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और फिर जब कभी भी मेरा यह मन उदास हो जाता है
तुम्हारे साथ का स्मरण ही एक सुखद सांझ हो जाता है
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जीवन की उबड़-खाबड़ और पथरीली इन राहों पर
संग बिताए पल-पल की उन भूली-बिसरी यादों पर
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तेरे सानिध्य की यादें ही ,मुझे मलहम सी लगती हैं
भावनाएं मेरी फिर तो अनकहे शब्दों में भी सजती हैं
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क्या कहूँ जीवन की डगर है कठिन मुझे जिस पर
विचारवान हो चलना है बहुत सम्हल-सम्हल कर

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तेरा भरोसा इस डगर को भी आनंद से भर देता है
दामन खुशियों से भरकर,दुःख
मेरे सारे  हर लेता है
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दुनिया सारी संग भी हो ,तेरी जुदाई पर खलती है
इस सूनेपन को भी तेरी सुधियाँ ही आकर भरती हैं
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एक सच्चा सा दिल ही तेरा ,सब पर भारी पड़ता है.
सब हो पर तेरे बिन मुझे ,यह जीवन खाली लगता है.
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सब के साथ चलती हुई मैं, कुछ दूर ही थक जाती हूँ
हमदम तेरे साथ चलूँ तो, सीढियां भी चढ़ जाती हूँ.
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तेरे बिन मेरी पहचान तो किसी हुजूम में खो जाती है
प्रियतम तेरा साथ है तो यमुना वजूद में हो पाती है.
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तेरा साथ पाकर तो हर जगह मैं ही मैं नज़र आती हूँ
हाथ तेरा पल भर छूटे तो मृगछौने सी सहम जाती हूँ
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अनगिनत सितारों के बीच बस एक चन्दा ही काफी है
जैसे एक सूर्य की रश्मियाँ धरा पर उजाला फैलाती हैं

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वैसे इस जीवन की राहों पर, हमसफ़र ही सच्चा साथी है
बिन जिसके तूफानी थपेड़ों से, टूटी जीवन की नैया जाती है.
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