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हर जीवन एक अफ़साना है,हर चेहरे पर कहानी होती है.”(jagran junction forum )

V2...Value and Vision
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“सत्यमेव जयते “मुन्दकोपनिषद से लिया गया आदर्श वाक्य है जिसे भारत देश के राष्ट्रीय प्रतीक में शामिल किया गया है.इस नाम से कार्यक्रम का प्रसारण ही सर्वप्रथम ध्यान आकर्षित करता है.इस कार्यक्रम से ज्यादा आमिर खान के प्रचार प्रसार और उन पर टिप्पणी ने मुझे एक शेर याद दिला दिया……….

“मैं इसे शोहरत कहूँ या अपनी रुसवाई
कि मुझसे पहले हर गली में मेरे अफ़साने गए”

इस कार्यक्रम के ज़रिये जिन समस्याओं से आम जनता को रु-ब-रु करवाया जा रहा है वे जनता के संज्ञान में नहीं हैं; ऐसा कहना बिलकुल गलत है.हर संवेदनशील और विचारशील व्यक्ति इसके समाधान के साथ प्रस्तुत है;यह चाहे उसकी निजी ज़िन्दगी में हो या आस-पास के सामाजिक ज़िन्दगी में.फिर इस कार्यक्रम को प्रसारित करने का औचित्य क्या है?और, सबसे बड़ी बात इसे एक सेलेब्रिटी से जोड़कर किसी नए आकर्षक bottle में पुरानी शराब की प्रस्तुति कहाँ तक ज़रूरी है यह स्पष्ट करना बेहद ज़रूरी है.

प्रिंट मीडिया भी ऐसी कई समस्याओं को अपने स्तर पर समाधान के साथ कई बार प्रस्तुत कर चुका है पर आज भी ऐसे कई लोग हैं जिनके लिए कई कारणों से प्रिंट मीडिया की कोई उपयोगिता नहीं है क्योंकि .कुछ पुरुष महिलाएं साक्षर नहीं हैं,कुछ इतने सुदूर बसे हैं कि उन तक अखबार रोज़ पहुँच नहीं पाता और कुछ साक्षर महिलाएं जिन्हें टी .वी.पर प्रसारित कार्यक्रम अखबार पढ़ने से ज्यादा रुचिकर लगते हैं.ऐसे लोगों के लिए जब दृश्य और श्रव्य साधन के रूप में कोई कार्यक्रम मिलता है तो वे इससे जुड़ना पसंद करते हैं और अगर ऐसे कार्यक्रम किसी प्रभावशाली,सफल शख्शियत से जुड़ जाए तो सोने पर सुहागा,जैसा “कौन बनेगा करोड़पति”कार्यक्रम के साथ हुआ.था.

इसी मंच पर मेरे ब्लॉग “आत्माभिव्यक्ति” की कई कड़ियों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृति,बाल यौन शोषण,कन्या भ्रूण ह्त्या,बाल मजदूर की समस्या,बच्चों के करियर के चुनाव की समस्या,नैतिक अवमूल्यन की समस्या,टूटते विवाह की समस्या,उपेक्षित बुजुर्गों से जुडी समस्या को समाधान के साथ ध्यान में लाने की कोशिश की गयी पर जो बात धुप की तरह स्पष्ट है वह यह कि अपनी बात सुनाने के लिए सफल होना ज़रूरी है ,लोग सेलेब्रिटी की बातों को ध्यान से सुनते हैं .एक बात और यह कि अर्थशास्त्र के अनुसार अगर किसी बात से मौद्रिक मूल्य भी जुडा हो तो वह बात उतनी ही ज्यादा उपयोगी हो जाती है क्योंकि उस पर धन खर्च होते हैं .अगर व्यक्ति उपयोगी है और उसकी उपयोगिता का मौद्रिक मूल्य भी अधिक है तो फिर जनता उसके एक-एक बात पर फ़िदा हो जाती है,उस उपयोगी मूल्यवान व्यक्ति की एक-एक अदा के लोग कायल हो जाते हैं .

ऐसे कार्यक्रम दिखाने हैं तो ये अवश्य ध्यान रखा जाए कि घटनाएं सच्चाई पर आधारित हों,सिर्फ टी आर पी बढाने के लिए विवादास्पद घटनाएं या व्यक्तियों को प्रस्तुत ना किया जाये,अन्यथा कार्यक्रम की सफलता संदिग्ध हो सकती है.

हाँ,जैसा कि आमिर खान ने कहा ” बात सीधे दिल पर लगे तो बात का असर होता है”
तो एक बात मैं भी कहना चाहती हूँ कि इस समाज के वे लोग जो बेहद विचारवान ,सजग और संवेदनशील हैं उनके लिए ऐसे कार्यक्रम के कोई मायने नहीं क्योंकि वे हर बात को पहले ही दिल पर लगा कर समाधान के साथ परिवर्तन ला चुके होते हैं.और जो पूर्णतः विचारहीन ,असंवेदनशील और बेपरवाह हैं उनके लिए भी ऐसे कार्यक्रम की संजीदगी किसी काम की नहीं क्योंकि वे इसे महज़ मनोरंजन के दृष्टिकोण से देखेंगे.हाँ, एक तीसरा वर्ग ज़रूर है जो इस जनतंत्र के भीड़तंत्र का हिस्सा है,जो समस्याओं से कभी स्थायी तो कभी अस्थायी रूप से प्रभावित होता रहता है स्वयं को उससे जुड़ा मानता है और बदलाव चाहता है.इस वर्ग को ऐसे कार्यक्रम झकझोरते हैं , सफल शख्शियत द्वारा प्रस्तुति वाकई इनके दिल पर लगती है पूछिये क्यों?क्योंकि आम व्यक्ति को तो वह भीड़तंत्र का ही हिस्सा मानते है तो भला उनकी बातों से क्या सरोकार? अरे ज़नाब ,”घर की मुर्गी दाल बराबर” वाली कहावत नहीं याद है?

ऐसे कार्यक्रम पहली बार दिखाए जा रहे हैं यह भी कहना गलत है.मैं आपकी जानकारी के लिए बताना चाहूंगी कि लोक सभा टी.वी चैनल में हर बुधवार प्रातः नौ बजे “gender discourse “नाम से एक कार्यक्रम आता है जिसमें अत्यंत प्रभावशाली ढंग से इस तरह की समस्या से लोगों को रु-ब-रु कराया जाता है.पर दुःख की बात यह है कि ऐसे शिक्षाप्रद चैनल को अल्प संख्या में ही दर्शक मिलते हैं.

अब मैं दो एपिसोड में दिखाए जाने वाली समस्या पर बात करती हूँ .बहुत संभव है कि आगे के एपिसोड में घरेलु हिंसा,बलात्कार ,आत्महत्या की बढ़ती प्रवृति,उपेक्षित बुजुर्गों,करियर चयन का दबाव,तलाक या टूटते विवाह ,दहेज़ प्रथा ,कार्य स्थलों पर महिला यौन उत्पीडन तथा दुर्व्यवहार ,विवाहेतर सम्बन्ध जैसे मुद्दे भी उठाये जा सकते हैं .

पहली समस्या कन्या भ्रूण ह्त्या से जुडी थी. लगभग हर राज्य की सरकारों ने और केंद्र सरकार ने कन्याओं के कल्याण लिए कोई न कोई कार्यक्रम (एक बेटी के माता पिता को उनकी इकलौती संतान की पढ़ाई के लिए सुविधा) और योजना की शुरुआत की है.और किसी राज्य से अगर इस कार्यक्रम को देखने के बाद संज्ञान लेने की बात आती हैं तो यह महज़ औपचारिक प्रतिक्रिया ही कही जायेगी.सरकार के कानून तब तक प्रभावी नहीं होंगे जब तक जनता विचारवान होकर स्वयं ही समस्या का समाधान अपने स्तर पर ना देगी.आज कई दम्पति एकल संतान के रूप में बेटी को स्वीकार कर रहे हैं क्योंकि वे जानते और समझते हैं कि सुख-दुःख का सम्बन्ध संतान के लिंग पर निर्भर नहीं करता है.यह अपने भविष्य की योजनागत तैयारी और मानसिक रूप से की गयी तैयारी पर निर्भर होता है.
दूसरी समस्या बाल यौन शोषण से जुडी थी.उस कार्यक्रम की कुछ बातें बहुत प्रभावशाली ढंग से आमिर के द्वारा कही गयी .जैसे
“हर बच्चे को हम बड़ों को आदर देना बचपन से ही सीखाते है पर इससे ज्यादा हमें हर किसी के व्यवहार का आदर करना उन्हें सीखाना चाहिए.”
“अपने बच्चों के साथ मजबूती से जुड़े रहे,उन्हें यह पता रहना चाहिए कि हम उनकी बात गंभीरता से सुन रहे हैं और उन पर विश्वास करते हैं.”
अब महत्वपूर्ण बात यह कि अगर शोषण करने वाला बालिग़,बड़ा,बुज़ुर्ग है तो सज़ा उचित और बिलकुल जायज़ है पर अगर हमउम्र या कोई साथी ही दुसरे साथी का शोषण कर रहा हो तो????????

आमिर ने समस्या का महज़ एक ही पक्ष सामने लाया.
मैं यह बात इस मंच से इसलिए रख रही हूँ क्योंकि मेरा सामना ऐसी ही एक समस्या से आज से चार वर्ष पूर्व हुआ था जहां छठी कक्षा के मेधावी विद्यार्थी को उसका ही सहपाठी जो दो वर्ष फेल होने की वज़ह से उसी कक्षा में रह गया था यौन उत्पीडन कर रहा था.बात तब सामने आयी जब उस पीड़ित विद्यार्थी को शारीरिक और मानसिक दोनों ही समस्या का सामना करना पडा.अब इस घटना में दोनों विद्यार्थियों के भविष्य की चिता करनी पड़ेगी.हम सब ने व्यवस्थापक से कहकर बड़ी उम्र के विद्यार्थी को आगे की एक कक्षा में प्रवेश दिला कर उसे athelete में व्यस्त कराया क्योंकि वह फेल होने की कुंठा को गलत तरीके से निकाल रहा था.वह हर रात इतना थक जाता था कि उसे नींद आ जाती थी.और अपने मनपसंद खेल से जुड़कर वह रचनात्मक रूप से सक्रिय हो गया था.दुसरे विद्यार्थी को गलत बातों का यथासमय विरोध करने की councilling दी गयी और समझाया गया कि मेधावी का अर्थ सिर्फ अच्छे अंक लाना ही नहीं बल्कि सही वक्त पर सही निर्णय लेना भी होता है.
शिक्षकों को भी अप्रत्यक्ष रूप से सन्देश दिया गया कि वे किसी विद्यार्थी को छूकर बात ना करें ,पिता,भाई या दोस्त ना बनकर एक सही शिक्षक बनकर ही अपने विद्यार्थियों का दिशा निर्देशन करें.विद्यार्थियों को एक आम सभा कर कई मूल्य परक बातों के साथ यह समझाया गया कि हर रिश्ता अपने नाम के अर्थ तक ही सीमित होकर सुन्दर बनता है,और अगर कोई रिश्ता अपने नाम और अपनी परिभाषा की सीमा का उल्लंघन करे तो यथासमय इसका पुरजोर विरोध करें.

महिला और बाल विकास कृषना तीरथ जी ने भी कहा है कि सर्वेक्षण बताते हैं कि १३ राज्यों के ३३ % बच्चों ने स्वीकार किया कि वे यौन शोषण का शिकार हुए हैं.ये आंकड़े और भयावह भी हो सकते हैं.राज्य सभा में protection of children against sexsual offence bill pass हुआ है जिसके अनुसार ऐसे अपराधियों के लिए विशेष कोर्ट और आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया जा रहा है पर सजा के निर्धारण और कानून बनाने के साथ नैतिक मूल्यों,मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर विचार ,और सही शिक्षा और सोच का प्रचार-प्रसार जन-जन तक होना ज़रूरी है.

निष्कर्ष रूप में अगर देखा जाए तो इस कार्यक्रम में पूर्ण संवेदनशीलता से इनकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि येः अत्यंत संवेदनशील समस्याओं से जुड़ा कार्यक्रम है.जिनसे निजात पाना हर सभ्य,स्वस्थ और शिक्षित समाज की प्रथम कोशिश है.फिर इससे निजात पाने के लिए उसे चाहे ग्लैमर का सहारा लेना हो या workshop करना पड़े .साम,दाम,दंड भेद कोई भी तरीका अपनाया जा सकता है. ;दशों दिशा से फेंके तीरों से कौन सा तीर निशाने पर लग जाए कहा नहीं जा सकता क्योंकि हमारा समाज कई विसंगतियों का उदाहरण है जिसमें शिक्षित-अशिक्षित,साक्षर-निरक्षर,अमीर-गरीब,जैसे विरोधाभासी तत्त्व मौजूद हैं.

अपनी सफलता,प्रभावशाली व्यक्तित्व और मजबूत पहचान के बलबूते अगर कोई ऐसी समस्या को आम जनता से जुड़कर उनके दिल पर बात को लगाने को तैयार है तो इस में बुराई क्या है और उसे समाज के प्रति उसकी ज़वाबदेही और उपयोगिता के लिए सही मौद्रिक मूल्य क्यों ना मिले?अगर यह बाजारवाद है तो इसका तहे दिल से स्वागत है क्योंकि यही बाजारवाद कोका कोला,चिप्स,घटिया रियल्टी शो के लिए भी करोड़ों रुपये खर्च करता है .अगर बाजारवाद कुछ सशक्त मुद्दों से जुड़ा है और अपने इन मुद्दों से जनता को सजग करने में कुछ अंशों में भी सफल हो जाए तो फिर किसी को आपत्ति ही क्यों हो??????????
इस कार्यक्रम का प्रस्तुतीकरण प्रभावशाली और सहज है जो आमिर की आम जनता से जुड़ने की कोशिश के वज़ह से है.सर्वाधिक आकर्षित करने वाला तत्त्व है कार्यक्रम के अंत में जुड़ा गीत संगीत जैसे ओ री चिरैया………. और दुसरे एपिसोड का गीत भी दिल को छूता है.

ऐसे उद्देश्यों की पूर्ति में उस शखशियत की निजी ज़िन्दगी की बेहद निजी घटनाओं पर ध्यान देने का भी क्या औचित्य है?????????

“कौन ग़मों से खाली है इस दौर में मुझको बतलाओ
हर जीवन एक अफ़साना है,हर चेहरे पर कहानी होती है.”

ऐसा हमेशा संभव नहीं होता कि किसी कार्यक्रम से जुडी समस्याओं पर बात करने वाला व्यक्ति निजी तौर पर किसी भी समस्या से जुड़ा ना हो.क्योंकि………..

एक मशहूर शायर ने खूब कहा है

“जो देता है ज़माने को रोशनी की झलक
उस आफताब के अन्दर भी कुछ अँधेरा है.”

तो अँधेरे की तह तक जाने की क्या ज़रूरत है ?क्या यह ज़रूरी नहीं कि हम रोशनी की झलक से अपने हिस्से की रोशनी लेकर अपनी ज़िन्दगी के साथ-साथ अपना आस-पास भी रोशन करें?????????

सभी दोस्तों से एक महत्वपूर्ण बात
aapke ब्लॉग पर pratikriyaaein submit नहीं हो paa रही हैं कई बार असफल कोशिश की .

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