Menu
blogid : 9545 postid : 719657

ज़िंदगी के फ़लसफ़ों में रंगी ‘होली'(contest)

V2...Value and Vision
V2...Value and Vision
  • 259 Posts
  • 3039 Comments

मेरे प्रिय ब्लॉगर साथियों
आप सब को होली की बहुत सारी शुभकामना

ज़िन्दगी रंगों के बिना कितनी अधूरी है,वसंत के आगमन की आहट होते ही प्रकृति अपने पूरे श्रृंगार के साथ हर प्राणी को मदमस्त करने में कोई कसर नहीं छोडती.और फिर वसंत पंचमी से ही दस्तक देती,सारे बंधनों को तोड़ रंगों से सराबोर यह मदमाती होली…..रंगों के पीछे छुपे चेहरे कितने अपने हैं कितने पराये ; होली जाति धर्म के सारे कगारों को तोड़ देती है.
अगर इसे वास्तव में रंगों के महत्व के रूप में खेला जाए तो भारतीय संस्कृति की इन्द्रधनुषी छटा दुनिया के विस्तृत आसमान पर छा जाए पर अफ़सोस….. लोग इस अवसर पर मर्यादा भूलने की गलती कभी-कभी कर जाते हैं जो इस रंगीन पर्व को ज़िन्दगी भर के लिए बेरंग कर जाती है.
पाठकों ,रंगोत्सव की फागुनी बहार पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें और साथ ही इस पर्व को इसकी पूरी आभा,सौंदर्य,मर्यादा के साथ मनाकर इस पर्व का मान बढाएं …

हर तरफ रौनक,ढोल-मंजीरों का शोर-गुल
फिजा में  बिखरे रंग ,ये मस्त वासंती छटा,
आओ इसमें मर्यादा का भी एक रंग घोल दें
ना कभी छाये इस पर अश्कों की काली घटा .

ये कोशिश हो कि किसी रंग केअर्थ न बदलें
उत्साह का लाल रंग कहीं ना हो जाए रक्तिम
कुदरती चमक पीले,हरे,गुलाबी,नीले रंगों की
अमर्यादित हो ना इन्हें कोई कर जाए मद्धिम .

दुआ मेरीयह है कि हर वर्ष की तरह ये होली भी
गुज़रे रंगों की,
बारिश और ढेरों खुशियों के संग
जाति-पाति,धर्मं से उठ,चलो बाँट लें रंगों को,
बँटजाए हर भारतीय में वासंती शुचिता के रंग..

मैं उस पीढ़ी का प्रतीक हूँ जो परम्परावादी और आधुनिकता के दो ध्रुवों के बीच मध्य रेखा को प्रतिबिंबित करता है,आधुनिकता के विशेष रंगों से सराबोर होली का त्यौहार मुझे परम्परागत होली के नॉस्टैल्जिक प्रभाव से अछूता नहीं रखता.फिर भी इस वर्ष आधुनिक तौर तरीके की होली के रंग ने मुझे खासा प्रभावित किया.
अपने घर परिवार यहाँ तक कि लाडली बिटिया से भी दूर रह कर भी अगर होली की रंगीनी फीकी नहीं लगी तो इसमें आधुनिक संचार माध्यमों का बेहद योगदान रहा जिसने रिश्तों के रंगों का एहसास दिला होली के पर्व को एक नयी परिभाषा दे दी.
हमारे इस शहर में होलिका दहन की रात बहुत से बच्चे होलिका की मूर्ति और उसकी गोद में गुड्डे से प्रहलाद को देख कर उत्सुक और आकर्षित हो रहे थे .पहले उन्हें एक लघु विडियो दिखाई गई जिसमें होली की यह प्रतीकात्मक कथा चित्रित थी .बच्चे खासा उत्साहित दिखे और अब मूर्ति का औचित्य भी उन्हें बखूबी समझ आ गया था.

अगले दिन अलसुबह ही इलाहाबाद से बहन का एक सन्देश मिला उसने श्री श्री रविशंकर जी के कथन को भेजा था जो कुछ इस तरह था,“प्रत्येक भाव किसी ना किसी रंग का प्रतीक है…क्रोध लाल रंग का ,ईर्ष्या हरे का,हर्ष पीले का,प्रेम गुलाबी का,विस्तार नीले का, शान्ति श्वेत का ,त्याग केसरिये का,ज्ञान बैंगनी का है.जब सभी रंग स्पष्टता से अलग-अलग दिखे तो ही रंगों का महत्व है.एक साथ मिला देने से ये काले रंग में परिवर्तित हो जाते हैं .इसी प्रकार जीवन में हम विभिन्न रिश्ते में किरदार अदा करते हैं हर रिश्ते और उससे जुडी भावनाएं स्पष्टता से परिभाषित और परिलक्षित होनी चाहिए .भावनात्मक संशय रिश्तों में समस्या उत्पन्न करता है .माँ के रिश्ते में माँ ही होनी चाहिए किसी और रिश्ते के मिश्रण के साथ ही गलतियां आरम्भ हो जाती हैं जो भी रिश्ता निभाएं उसे सम्पूर्णता और स्पष्टता से निभाएं तो होली के रंगों की तरह रंगीनी बनी रहेगी.”

यह सन्देश दिल को छू गया .होली के अवसर पर जब सभी के चेहरे सभी रंगों के मिश्रण से काले बन कर एकरूपता की कोशिश में रिश्तों की मर्यादा लांघने लगते हैं उस खतरे की सम्भावना को सिरे से नकारने के लिए रिश्तों की मर्यादा के महत्व को कितनी सुंदरता से यह सन्देश समझा गया था.

मैंने प्रत्युत्तर लिखा ,“क्या तुम जानती हो इस पर्व पर लोग सफ़ेद वस्त्र ही क्यों पहनते हैं …क्योंकि हम में से प्रत्येक की ज़िंदगी एक कोरे कैनवास की तरह सफ़ेद है खाली …जिस प्रकार अलग अलग रंग कैनवास में बिखरते ही चित्र उभरने लगते हैं उसी प्रकार हमारे अलग अलग रिश्ते जीवन में खूबसूरत रंग बन कैनवास को कोरा रहने से बचा लेते हैं होली के पर्व की यही महत्ता है.”

ज़वाब में एक बड़ी सी स्माइल मिली .
अगला सन्देश एक मित्र का मिला,”अगर खुशियां इंद्रधनुष के रूप में आती हैं तो मैं आपके लिए सबसे चमकीले इंद्रधनुष की प्रार्थना करती हूँ.”

तकनीक विकास के मोबाइल इंटरनेट फेस बुक ,ने दूर दराज़ बैठी इस यमुना को ज़िंदगी के फ़लसफ़ों से भरपूर खूबसूरत रंगों से भिगो दिया था .मुझे हर्ष इस बात का हुआ कि आधुनिकीकरण की इस बदली हुई बासंती बयार ने रंगों को जीवन से जोड़कर इस पर्व को कितना प्रासंगिक बना दिया है.

चूँकि पति देव के कई मित्र घर पर सपरिवार आने वाले थे अतः सूखे और हर्बल गुलाल के साथ मैं तैयार हो गई.एक शाम पूर्व ही माँ के साथ गुझिया भरने की बात याद करते हुए पिछले कई वसंत की मिठास भरती कई गुझिया मैं तैयार कर रख चुकी थी.आधुनिक सौंदर्य और स्वास्थ्य सजगता का सबसे अच्छा परिणाम यह रहा कि पतिदेव के सभी मित्रों की पत्नी हर्बल गुलाल लेकर सूखी होली खेलने के मूड से ही आई थीं प्राय सभी सामाजिक रूप से भी सजग हैं अतः जल व्यर्थ करने का प्रश्न ही नहीं था.हम सब ने मिल कर एक शाम पूर्व ही निश्चय कर लिया था कि शीतल पेय या शराब बिलकुल नहीं इस्तेमाल होगा .अतः सभी के घरों के अनुसार मैं ने भी घर की बनी दूध ठंडाई,शिकंजी और लस्सी से होली का आनंद लिया.पारिवारिक रिश्तों से दूर इन रिश्तों में मर्यादित रूप से मनाई होली का भी अपना एक आनंद होता है.घर -घर जाकर सौंदर्य ,स्वास्थ्य ,पर्यावरण सजगता और चेतना का सशक्त उदाहरण देते हुए हम सब करीब चार घंटों तक सूखी और प्राकृतिक होली की रंगीनियों में डूबे रहे.
घर वापस आते ही फोन पर ढेरों मिस्ड कॉल देखे .सबसे पहले बिटिया रानी को कॉल किया.चहकती हुई बोली,”माँ ,यहाँ पानी की किल्लत है अतः हमने सूखी होली खेली हाँ ,थोड़ा बूट पोलिश भी इस्तेमाल किया था कल मैथ्स का पेपर है बाय….और हंसते हुए एग्जामिनेशन फ्रेंडली बिटिया ने फोन काट दिया.हालांकि अगले एक दिन के बाद किसी अभिभावक के फोन से उसने मुझे एक बहुत ही सुन्दर फ़ोटो भेजा जिसमें उसकी सभी सहेलियों ने हथेली में रंग लगा कर उसे एक कोरे कागज़ पर कलाकृति के रूप में सजा दिया था . मैंने सोचा ….चलो अच्छा है बच्चे अपनी जिम्मेदारी और अपने जीवन में रिश्तों के महत्व को भी समझते हैं ….और मुझे बेहद दार्शनिक होने से बचाया …बंगाल से मेरी एक मुस्लिम सहेली के कॉल ने ,”कि रे जोमुना,भालो ना आमार होली तो शेष हो गेछे (वहाँ एक दिन पूर्व ही होली मना लेते हैं) और फिर मेरे बँगला भाषा के अल्प ज्ञान का मान रखते हुए कहा,”तुम्हे पता है हम सब ने रेन डांस में सामूहिक स्नान कर घर के जल की बचत कर ली है.पहले रंगीन पानी में रेन डांस हुआ फिर साफ़ पानी में बहुत ही आनंद आया .अब घर पर रंग हटाने में मेहनत भी कम लगेगी और जल भी कम लगेगा.मैंने कहा,”वाह !क्या बात है होली भी खेल लिया और जल भी बचा लिया .”आधुनिक युग के इस रेन डांस चलन ने भी मुझे खासा प्रभावित किया.सच है आधुनिकता विवेक पूर्ण ढंग से अपनाई जाए तो जीवन में कितने रंग बिखेर देती है.बशीर बद्र साहब के एक शेर को मन स्वयं ही ट्विस्ट कर गया .मूल शेर है “हिन्दू भी मज़े में है ,मुसलमान भी मज़े में है .इंसान परेशान है यहाँ भी वहाँ भी.”
मैंने थोड़ा परिवर्तन किया ….

हिन्दू भी रँगे हैं मुसलमान भी रँगे हैं

होली है मन रही यहाँ भी वहाँ भी

वर्त्तमान युग में जहां इंसान खून के रंग में भी भेद कर लेता है वहाँ यही एक त्यौहार है जो आपसी रिश्तों की दूरी को पाटने के लिए एक सेतु का काम कर रहा है…जाति,वर्ण,लिंग,भाषा की विद्वेष भरी संकीर्णता की सारी होलिकाएं होली की पूर्व संध्या में भस्म हो जाती हैं और अगली सुबह रिश्तों के सभी रंग जीवन के वर्तुलाकार गति में शुभ्र श्वेत से दिखाई देने लगते हैं.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply