Menu
blogid : 12689 postid : 691192

चलती संसद को आम आदमी घूर रहा![contest]

कलम-पथ
कलम-पथ
  • 183 Posts
  • 1063 Comments

16_YATINDRA jpeg[यतीन्द्र नाथ चतुर्वेदी]
जय हिन्द दिवस पर
यह कैसा शोर!
चलती संसद को
आम आदमी घूर रहा!
आजादी के पवित्र पर्व पर
अराजक खलल डाल रहा!
लोकतंत्र का गला घोटता
शहीदों का अपमान कर रहा!
घर से निकले आफिस को,
शाम तलक सड़कें नाप दिए,
थाम रहा जनहित को
धीरे धीरे भारत रोक रहा!

यह कैसा रास्ता बंद,
यह कैसा भारत बंद,
जिसमे गरीब वंचित होता
आज दिहाड़ी से,
गरीबों के हित के लिए
यह कैसा आन्दोलन,
जहां गरीबों को ही
प्रताड़ित, उत्पीडित किया जाता है,
एक तरफ भीड़ की
उन्मादी अराजकता
सड़क पर बैनर तले,
दूसरी तरफ
आम नागरिक निरीह और बेबस!!

किसी के फल की दुकान लुटी,
तो कई पंसारी लुट गए,
किताब वाला असहज
अपनी किताबो को बिखरते देखता रहा!
सब्जी-वाले, चाय-वाले, खोमचे-वाले,
सहमे-सहमे ही दिन काट लिए!!!

गरीब तो गरीबी लिए सुबह निकला ,
दिनभर की अपनी गरीबी लिए-
स्वयं की भूख के साथ-
शाम को वापस आया-
भूखे परिवार में !!!
बंद की कोइ मर्यादा नहीं होती है,
कोइ संविधान नहीं होता बंद का
जन-जीवन को रोक कर
सड़कगीरों को प्रताड़ित कर
सुशासन नहीं आ सकता
यह हम सभी जानते है
शासन के विरोध का
यह तरीका ही कुशासन है!!!!
थम गई है दिल्ली,
जनहित थाम कर
जनादेश की महा पंचायत
लोकपथ पर फरेब है।
[यतीन्द्र नाथ चतुर्वेदी]

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply