Menu
blogid : 12689 postid : 700969

धिक रहा यौवन उघार[contest]

कलम-पथ
कलम-पथ
  • 183 Posts
  • 1063 Comments

b[यतीन्द्र नाथ चतुर्वेदी]
वक्त बदला,
लिबास बदला,
सभ्यता और
संस्कार बदला,
अधिकार बदला,
तन न बदला आदमी का!

असुरक्षित ब्रह्मचर्य अब,
गृहस्थ यायावर हुवा,
वानप्रस्थी खो गए,
संन्यास विचलित है खड़ा!

सौन्दर्य का मेला लगा,
पारखी बाजार लगते,
धिक रहा यौवन उघार,
आसमानों की सर्द सांसे,
संसार बंजर कर रही!

लक्ष्मण रेखा के ऊपर,
कितने यौवन बिखर रहे,
आबादी के चहल-पहल में,
चरित्र युवानी निगल रहे!
[यतीन्द्र नाथ चतुर्वेदी]

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply