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आज मेरा जन्मदिन है
22 फरवरी 1987,रात के करीब 2.45 पे एक औरत,जो मेरी माँ है, उसने मुझे नॊ माह की पीड़ा के बाद अपनी कोख से पैदा किया था। पैदा होने पे मै बहुत रोया जैसे और बच्चे रोते है, पर मेरी माँ ने मुझे बताया की तुम और बच्चो से जादा रोये थे। ये सुनकर मै झट से पुछ बैठा, क्यों? पैदा होने पर मै या कोई और बच्चा क्यों रोता है? माँ ने इधर उधर से, भगवान् से जोड़कर उस समय मुझे कुछ बता दिया। पर मै संतुष्ट नहीं था। उसके बाद जीवन मे रोने के कई पल मिले, कभी पापा से पीटने पर कभी चोट लगने पर, कभी कम नम्बर आने पर, नोकरी न लगने पर ,किसी अपने के चले जाने पर, और न जाने क्या क्या ? यहाँरोने के सभी कारणों का मुझे पता था पर पैदा होने के समय का नहीं।
मैंने कई धार्मिक, जानकार और विद्वान लोगो से जानना चाहा की पैदा होने पर मै क्यों रोया ?मै तभी रोता हु, जब व्यक्तिगत तौर पर मुझे कष्ट हो, पर पैदा होने से जुडी बाते मुझे समझ नहीं आती, सभी ने अपने तर्क से जवाब दिया। किसी ने कहा बालक जब इस्वर से अलग होता है तब वो रोता है। कुछ ने कहा की बालक रोकर अपने आने का अहसास देता है, की वो नन्हा बालक है उसकी जिमेदारी अब आपकी है .
ये सारी बाते सही हो सकती है, पर मै क्यों रोया इस बात के जवाब से मै संतुष्ट नहीं था…………..
16 दिसम्बर 2012 एक स्त्री के शरीर , दिमाक, जज्बात का चीर हरण हुआ। मै उस दिन भी बहुत रोया पर उस दिन मुझे पता चला की मै पैदा होने पर क्यों रोया था।
बच्चो की पहली पाठशाला उसके माता-पिता होते है, मेरे भी थे, उन्होंने मुझे अच्छे संस्कार दिये, उसूलो वाला बनाया, अपने पैरो पर खड़ा होना सिखया, पर अपने ही माता पिता से जाती,धर्म की भेदभाव के बाते सुनकर मुझे पता चला की मै पैदा होने पर क्यों रोया था.
विद्यालय ज्ञान का भण्डार है, और गुरु इस्वर का अवतार, यही पर और ऐसे ही गुरु से मुझे अच्छी अच्छी बाते सिखने को मिली।अच्छे संस्कारो और कर्तव्यो की सूचि मुझे पकड़ा दी गयी। नैतिकता का पूरा प्रवचन याद कराया गया।मुझे बताया गया की हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई सब है भाई-भाई,पर दंगे, लड़ाई,जिहाद,धर्म-अधर्म,कत्लेआम देखकर मुझे पता चला की मै पैदा होने पर क्यों रोया था।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अरस्तु ने कहा था। मुझे भी समाज, अडोस-पड़ोस से पता चल गया की ये मेरा घर है, यही मेरा मोहल्ला और यही मेरा समाज है। हमें इसी समाज मे रहना है,पर जब मैंने असंतुलित समाज, गरीब-आमिर की खाई, भिखारी, भूख से बिलखते लोग, औरतो के शोषण को देखा तो मै समझ गया की मै पैदा होने पे क्यों रोया था।
देश, हमारा राष्ट्र, जहा मै रहता हु, ये भी मुझे कही न कही से पता चल ही गया की इसे भारत माँ कहते है। ये जननी है हमारी,यहाँ विभिन्नता है एकता भी पर जब इसकी इज्जत लुटते, कचोटते, इसकी मर्यादाओ को तार-तार करते राजनेताओ को देखा,तो मै समझ गया की मै पैदा होने पर क्यों रोया था।
क्यों रोया था।
नैतिकताकी ईमारततो मैंने कई बार बनायी,
पर न जानेलोग इसेक्यों तोड़ देतेहै?
वास्तविकता को छोड़
वो अँधेरेमे क्यों दोड़तेहै,
एक बालक रोता आता है,
अपने ही नहीं,
सभी के जिन्दगी के रहस्यों को समझ जाताहै,
इसीलिए वो रोता है,
इसीलिए वो रोता है।
आजमेराजन्मदिनहै
यतीन्द्र पाण्डेय
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